जरूरी कदम उठाए जाएं तो खेती में भी तैयार होंगे यूनिकॉर्न

कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित होने वाले मिलेनियल की तेजी से बढ़ती संख्या है। इसका एक स्पष्ट संकेत 2020 में देखने को मिला था। पिछले साल 20 से ज्यादा एग्रीटेक स्टार्टअप ने इक्विटी, वेंचर डेट और पारंपरिक डेट के जरिए 12.5 करोड़ डॉलर जुटाए। भारत की 41.49 प्रतिशत कामकाजी आबादी कृषि क्षेत्र में ही लगी है।

जरूरी कदम उठाए जाएं तो खेती में भी तैयार होंगे यूनिकॉर्न

भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में एक है। भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से भी एक है। युवा इस देश को एडवांटेज की स्थिति में लेकर आए हैं। इसका एक सबूत कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित होने वाले मिलेनियल की तेजी से बढ़ती संख्या है।

इसका एक स्पष्ट संकेत 2020 में देखने को मिला था। पिछले साल 20 से ज्यादा एग्रीटेक स्टार्टअप ने इक्विटी, वेंचर डेट और पारंपरिक डेट के जरिए 12.5 करोड़ डॉलर जुटाए। भारत की 41.49 प्रतिशत कामकाजी आबादी कृषि क्षेत्र में ही लगी है। बाकी कामकाजी आबादी उद्योग और सर्विस सेक्टर में लगभग समान रूप से बंटी हुई है। देश की 53 प्रतिशत आबादी रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है। 

एग्री टेक्नोलॉजी (एग्रीटेक) सेक्टर में इनोवेशन काफी बढ़ा है, लेकिन हर साल पारंपरिक किसानों की संख्या घटती जा रही है। हम अक्सर खबरें पढ़ते हैं कि कैसे मोटी तनख्वाह पाने वाले मिलेनियल ने नौकरी छोड़ खेती में हाथ आजमाया। लेकिन इस कहानी के दूसरे पक्ष को कम लोग ही देखते हैं। उचित सप्लाई चेन के अभाव में ये मिलेनियल हतोत्साहित हो जाते हैं। तो, मिलेनियल को कृषि की ओर आकर्षित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।

हमें कृषि क्षेत्र में बेहतर रेगुलेशन और मदद की जरूरत है ताकि युवा इस ओर आएं और बेहतर काम कर सकें। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार मिलेनियल सबसे संगठित पीढ़ियों में एक हैं। वे चाहते हैं हर काम करने का एक तरीका होना चाहिए, जबकि हमारी कृषि सप्लाई चेन में इसका नितांत अभाव है। हमें ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत है जो खेती को पेशे के रूप में अपनाने में मिलेनियल की मदद करे। ठीक उसी तरह जैसे ईकॉमर्स कंपनियों ने सामान बेचने और उनकी ट्रेडिंग करने वाले लाखों आंत्रप्रेन्योर को जन्म दिया है।

कुछ एग्रीटेक स्टार्टअप हैं जिन्होंने सप्लाई चेन प्लेटफॉर्म बनाया है ताकि खेती करने और उपज बेचने में मदद मिले- चाहे वह ऑर्गेनिक हो, प्राकृतिक हो या कॉमर्शियल हो। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच बेहतर जुड़ाव की जरूरत है। इससे न सिर्फ मौजूदा, बल्कि भावी किसान भी प्रेरित होंगे और उनकी आमदनी बढ़ेगी। सरकार की मदद मिले तो बिजनेस के तौर पर कृषि वास्तव में मुनाफे का काम है, लेकिन पारदर्शिता की कमी और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के अभाव में अनेक लोग इस पेशे से दूर हो जाते हैं।

आजकल उपभोक्ता खाने-पीने की सेहतमंद चीजों की मांग करने लगे हैं। यह उन मिलेनियल किसानों के लिए अच्छी बात है जो स्वाद, क्वालिटी और परंपरा के मामले में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। एग्रीटेक स्टार्टअप वनबास्केट.इन का आकलन है कि यह अपने टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म के जरिए आने वाले वर्षों में 50 लाख नए किसानों को अपनी पहचान बनाने में मदद करेगा। यह उनके यूनिक प्रोडक्ट और डिजिटल ठिकाने की वजह से होगा।

भारत में खेती करने लायक 15 करोड़ हेक्टेयर जमीन है। इस लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है।  विश्व कृषि उपज में भारत 10 प्रतिशत योगदान करता है। देश की जीडीपी में कृषि और संबद्ध क्षेत्र की 14% (2019-20 में 276 अरब डॉलर) हिस्सेदारी है। इसके बावजूद इस सेक्टर में अभी तक एक भी यूनिकॉर्न (वैल्यूएशन एक अरब डॉलर या अधिक) नहीं तैयार हुआ है। देश की रीढ़ कहे जाने वाले कृषि क्षेत्र को कैसे बेहतर बनाया जाए, इस पर संवाद शुरू करने और नए बदलावों को अपनाने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता है।

(मधुसूदन रेड्डी,  वनबास्केट के संस्थापक हैं, लेख में विचार उनके निजी हैं)

 

Subscribe here to get interesting stuff and updates!