जीएम सरसों को मंजूरी कृषि विकास को गति देने वाला कदम

हाल में सरकार ने जीनोम एडिटेड फसलों की सुरक्षा के आकलन के दिशानिर्देश जारी किए। साथ ही जीएम सरसों की पर्यावरण रिलीज की अनुमति दी। यह शोध एवं वैज्ञानिक समुदायों को बढ़ावा देने के साथ खेती के विकास के लिए भी सकारात्मक कदम है, जिसका फायदा अंततः किसानों को मिलेगा। इस कदम से ना सिर्फ अत्याधुनिक रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा बल्कि हमारे किसानों को फसलों की बेहतर किस्में भी उपलब्ध होंगी

जीएम सरसों को मंजूरी  कृषि  विकास को गति देने  वाला कदम

विज्ञान प्रदत्त इनोवेशन ने पूरी दुनिया में विकास के एजेंडे में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। यह परिवर्तन हर सेक्टर में है। पिछले दिनों महामारी के दौरान समाज पर विज्ञान और नई टेक्नोलॉजी के प्रभाव को मानव जगत ने महसूस किया। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) को हासिल करने में भी टेक्नोलॉजी एक महत्वपूर्ण कारक है। यह जरूरी है कि हम अपनी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को गति प्रदान करने के लिए टेक्नोलॉजी में भी तेजी से विकास करें।

हरित क्रांति से लेकर अब तक कृषि के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के अनेक इस्तेमाल देखने को मिले हैं। हमारे किसानों को गेहूं और चावल की अधिक पैदावार वाली किस्में उपलब्ध हुईं। उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई प्रणाली तथा अन्य तकनीकी प्रगति का भी फायदा खेती को मिला। इसका असर किसानों की बढ़ी हुई आमदनी, गरीबी और भूख में कमी तथा बेहतर खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के रूप में सामने आया। उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि से देश ना सिर्फ अनाज का बड़ा उत्पादक बना बल्कि बड़ा निर्यातक भी बन चुका है, जबकि एक समय भारत इनका आयात करता था।

हमारे किसानों को तकनीकी विकास से किसी भी तरह वंचित न रहना पड़े, इसके लिए शोधकर्ता प्रौद्योगिकी में निरंतर हो रहे बदलावों के अनुरूप खेती में भी बदलाव लाने के लिए कठिन प्रयास करते रहे हैं। आज भारत में एक विकसित कृषि एवं बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च और डेवलपमेंट इकोसिस्टम है जो दक्ष शोधकर्ताओं और अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में क्षमता निर्माण पर फोकस करता है। नीतिगत वातावरण भी नए इनोवेशन में अधिक जोखिम के प्रति फेवरेबल है। यह इंडस्ट्री और अकादमिक जगत को साथ लाने के लिए पीपीपी मॉडल को बढ़ावा देने पर काम कर रहा है। साथ ही यह एक वाइब्रेंट और मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी बढ़ावा दे रहा है।

हाल में सरकार ने जीनोम एडिटेड फसलों की सुरक्षा के आकलन के दिशानिर्देश जारी किए। साथ ही जीएम सरसों की पर्यावरण रिलीज की अनुमति दी। यह शोध एवं वैज्ञानिक समुदायों को बढ़ावा देने के साथ खेती के विकास के लिए भी सकारात्मक कदम है, जिसका फायदा अंततः किसानों को मिलेगा। इस कदम से ना सिर्फ अत्याधुनिक रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा बल्कि हमारे किसानों को फसलों की बेहतर किस्में भी उपलब्ध होंगी।

जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी में प्रचुर संभावनाएं हैं। इसे कम से कम 71 देश अभी तक अपना चुके हैं और 29 देशों में 20 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में जीएम फसलों की खेती हो रही है। मानव और पर्यावरण सुरक्षा दोनों लिहाज से इन टेक्नोलॉजी की क्षमता स्थापित हो चुकी है। ये किस्में बेहतर उत्पादकता, बायोटिक और एबायोटिक स्ट्रेस रेजिस्टेंस, बेहतर पोषण और जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता दिखा चुकी हैं।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने 25 अक्टूबर 2022 को बहुप्रतीक्षित फैसला किया। उसने ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड DMH-11 और बारनेस, बारस्टार तथा बार जीन वाले पैरंटल लाइन 3.6 और modbs 2.99 को पर्यावरण रिलीज की मंजूरी दी। इससे नए पैरंटल लाइन और नई हाइब्रिड किस्मों का विकास हो सकेगा। यह फैसला उत्पादकता बढ़ाने और पोषण क्वालिटी सुधारने में बड़े पैमाने पर मददगार साबित होगा, खासकर यह देखते हुए कि भारत अपनी 55 से 60% खाद्य तेल की जरूरत आयात से पूरा करता है। इस बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए जीएम सरसों हाइब्रिड सबसे अच्छा विकल्प है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रो. दीपक पेंटल और उनकी टीम ने 3 दशक से अधिक की रिसर्च के बाद जो जीएम सरसों की किस्म विकसित की है वह पहली खाद्य फसल है जिसे भारत में पर्यावरण रिलीज की मंजूरी मिली है। इससे पहले भारत में सिर्फ एक जीएम फसल, 2002 में बीटी कॉटन को स्वीकृति मिली थी। आज करीब 80% कपास किसान बीटी कॉटन की ही खेती करते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक जेनेटिकली मॉडिफाइड बीटी कॉटन की खेती से भारत में रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल 37% कम हुआ है, फसल की उत्पादकता 22% बढ़ी है और किसानों का लाभ भी 68% बढ़ गया है।

जीएम सरसों लाइन और हाइब्रिड DMH-11 को भारत में कई सख्त बायोसुरक्षा परीक्षणों से गुजरना पड़ा है। जीएम सरसों हाइब्रिड DMH-11 की उत्पादकता पारंपरिक किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर 25 से 30% अधिक है। बायो सुरक्षा परीक्षण के दौरान किए गए फील्ड ट्रायल में हाइब्रिड डीएमएच 11 को सरसों की मौजूदा वैरायटी वरुणा की तुलना में 28% और क्षेत्रीय किस्मों की तुलना में 37% अधिक उपज वाला पाया गया। सरसों स्वपरागण वाला पौधा है और  इस टेक्नोलॉजी से काफी बेहतर हाइब्रिड किस्म की सरसों विकसित की जा सकती है।

जीएम सरसों में 3 ट्रांस जीन हैं। बार जो एक मार्कर जीन है और पौधों में बास्ता हर्बिसाइड का प्रतिरोध पैदा करता है, बारनेस जो पुरुष गुण को खत्म (मेल स्टर्लिटी- MS) करता है और बारस्टार जो फर्टिलिटी रिस्टोर (RF) करता है। इन्हें मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टेरियम बेसिलस एमाइलोलिक्वेफेशियंस से लिया गया है। इन तीनों जीन को पहली बार रेपसीड में इस्तेमाल किया गया था और उससे हाइब्रिड बीज तैयार किया गया। रेपसीड में MS और RF लाइन तथा उनके हाइब्रिड 1996 में कनाडा में जारी किए गए और तब से वहां इसका उत्पादन हो रहा है। अमेरिका में यह 2002 में और ऑस्ट्रेलिया में 2007 से हो रहा है। बेहतर MS और RF सिस्टम उपलब्ध होने से ज्यादा उत्पादन वाले हाइब्रिड तथा बेहतर तेल और खली वाले हाइब्रिड आगे तैयार किए जा सकते हैं।

मार्च 2022 में सरकार का जीनोम एडिटेड फसलों की सुरक्षा से संबंधित गाइडलाइंस जारी करना भी काफी महत्वपूर्ण कदम था। यह इस बात का महत्वपूर्ण संकेत था कि हम खेती में सुधार के लिए नई टेक्नोलॉजी की तरफ बढ़ रहे हैं ताकि हमारी खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की मांग को पूरा किया जा सके।

हाल के समय में मानव जगत ने जो सबसे बड़ा संकट देखा, वह कोविड-19 महामारी है। हालांकि उससे भी बहुत कुछ हमने सीखा है। हमने विज्ञान आधारित इनोवेशन के महत्व और समाज पर उसके प्रभाव को समझा। हमने एक मजबूत और वाइब्रेंट शोध की ताकत तथा आपसी सहयोग को भी देखा। इन सबने मिलकर हमें घरेलू स्तर पर विकसित दवाओं और वैक्सीन पोर्टफोलियो के जरिए कोविड-19 से लड़ने में मदद की। यह सीख दूसरे क्षेत्रों, खासकर खेती के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। हमें बेहतर किस्म की फसलों के लिए एक मजबूत और प्रभावी इकोसिस्टम तैयार करने की जरूरत है ताकि हम अपनी बढ़ती खाद्य एवं पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों को वह इकोसिस्टम उपलब्ध करा सकें।

कृषि में जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग इस तरह की टेक्नोलॉजी से जुड़ी प्रगति काफी अग्रगामी कदम है। हमने न सिर्फ बेहतर किस्म की फसलें विकसित की हैं बल्कि प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी, टूल और प्रोसेस भी विकसित किया है जो हमें कम समय में ज्यादा अच्छी किस्में विकसित करने में मदद करते हैं। कृषि के क्षेत्र में इस त्वरित प्रगति (एक्सीलरेटेड एग्रीकल्चर एडवांसमेंट) से बेहतर उत्पादकता और पोषण की जरूरत पूरी करने में मदद मिलती है। यही नहीं, इसकी मदद से देश निर्यात करने में भी सक्षम होता है। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सही कदम है।

(डॉ रेणु स्वरूप, भारत सरकार के विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग की पूर्व सचिव हैं)

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