रूरल वॉयस विशेषः ओपन सी केज फिश फार्मिंग से लीजिए 50 गुना तक अधिक मछली उत्पादन

केज सिस्टम का उपयोग समुद्र के अलावा नदियों, बड़े जलाशयों और तलाब में भी किया जा सकता है। इसमें समान्य मछली पालन की तुलना में उत्पादन अधिक होता है। एक केज पर लगभग तीन लाख रुपए का खर्च आता है। एक केज आठ से दस साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है

देश में इस समय हर साल लगभग एक करोड़ चालीस लाख टन मछली उत्पादन होता है। मछलियों की मांग देखते हुए साल 2030 तक एक करोड़ 80 लाख टन मछलियों का उत्पादन करने की जरूरत है। यानी मछली उत्पादन लगभग 50 लाख टन बढ़ाना होगा। लेकिन समुद्री मछली पकड़ने का स्तर लगभग 35 लाख टन सालाना पर स्थिर है। इसलिए अब समुद्र में मछली पालन को बढ़ाना जरूरी है। समुद्र में केज यानी पिंजड़ा बनाकर मछली पालन करना एक बेहतर विकल्प रूप में उभर रहा है। इसे ओपेन सी केज फिश फार्मिंग कहते हैं। सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) रीजनल सेंटर विशाखापत्तनम के प्रमुख डॉ. शुभदीप घोष ने ओपेन सी केज फार्मिंग तकनीक और फायदे के बारे में रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

ओपन सी केज कल्चर में गोल या चौकोर आकार का तैरता हुआ केज यानी पिंजरा होता है। यह फ्लोटिंग फ्रेम, जाल और हाईडेंसिटी पॉलिथीन से बना होता है। डॉ घोष ने बताया कि समुद्र में मछली पालन के लिए दो प्रकार का केज इस्तेमाल करते हैं। पहला, जो पानी में एक ही जगह पर स्थिर रहता है और दूसरा, पानी में तैरने वाला। यह केज छह मीटर लंबा, चार मीटर चौड़ा और चार मीटर गहरा होता है। लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है। फ्रेम में तीन जाल का उपयोग किया जाता है। एक जाल केज के अन्दर होता है जिसमें मछली का पालन किया जाता है। दूसरा जाल केज के चारों तरफ लगाया जाता है जिससे समुद्री जीव जन्तुओं से मछलियों को बचाया जा सके। तीसरा जाल केज के ऊपर होता है ताकि कि पक्षियों से मछलियों की रक्षा की जा सके।

डॉ शुभदीप ने कहा कि केज सिस्टम का उपयोग समुद्र के अलावा नदियों, बड़े जलाशयों और तलाब में भी किया जा सकता है। इसमें समान्य मछली पालन की तुलना में उत्पादन अधिक होता है। एक केज पर लगभग तीन लाख रुपए का खर्च आता है। एक केज आठ से दस साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉ घोष के अनुसार केज सिस्टम में ज्यादा डिमांड और अधिक मूल्य वाली मछलियों जैसे, इंडियन कैम्पनों, सिल्वर कैम्पनों, कोबिया, सैनेपर और सीबास जैसी मछलियों का पालन किया जाता है। बाजार में इनका लगभग 350 रुपए तक दाम मिलता है। उन्होंने बताया कि गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल तक समुद्र तटीय राज्यों में इस विधि से मछली पालन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस समय तीन हजार दो सौ केज द्वारा समुद्र में मछली पालन किया जा रहा है। इस तकनीक के माध्यम से हर साल लगभग 10 हजार टन मछली उत्पादन किया जा रहा है।

डॉ घोष ने बताया कि केन्द्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही मत्स्य संपदा योजना में ओपन सी केज सिस्टम पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इस तकनीक को बढ़ावा देने लिए सरकार की तरफ से 40 से लेकर 60 फीसदी तक सब्सिड़ी का प्रावधान है।

ओपन सी केज फार्मिंग तकनीक से मछली पालन कर रहे विशाखापत्तनम के किसान अनिल कुमार कर्णम ने बताया कि वे पांच साल से मछली पालन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से परम्परागत मछली पालन की तुलना में प्रति यूनिट उत्पादन 50 गुना ज्यादा है। 

भारत की 8,118 किमी लंबी तटीय रेखा है। देश के 66 तटीय जिलों के 3433 गांवों के 40 लाख लोग मछली करोबार से जुड़े हुए हैं। इनके रोजगार और देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए समुद्र में ओपेन केज सिस्टम से मछली पालन करना एक बेहतर विकल्प है। इस तकनीक में मछली की ग्रोथ तेजी से और अधिक होती है।

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