टमाटर को ज्यादा दिनों तक रखा जा सकेगा सुरक्षित, वैज्ञानिकों ने फलों के पकने को नियंत्रित करने का खोज निकाला तंत्र

गूदेदार फलों को पकाने में एथिलीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए तंत्र की समझ (ऐसी मोलेक्यूलर रेगुलेटरी घटनाओं का बेहतर ज्ञान) होना प्रभावी जैव-तकनीकी रणनीतियों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। फलों के स्वाद, पिगमेंट इकट्ठा होना और फलों के जीवन जैसे पकने के गुणों में सुधार के लिए इस तंत्र को समझना जरूरी है।

टमाटर को ज्यादा दिनों तक रखा जा सकेगा सुरक्षित, वैज्ञानिकों ने फलों के पकने को नियंत्रित करने का खोज निकाला तंत्र

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तंत्र खोज निकाला है जो फलों, खासकर टमाटर में पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है यानी टमाटर को लंबे समय तक सहेज कर रखा जा सकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम के मुताबिक, तंत्र (मैकेनिज्म) को समझने और एथिलीन जैव-संश्लेषण (बायोसिंथेसीस) को रोकने से यह संभव है।

गूदेदार फलों को पकाने में एथिलीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए तंत्र की समझ (ऐसी मोलेक्यूलर रेगुलेटरी घटनाओं का बेहतर ज्ञान) होना प्रभावी जैव-तकनीकी रणनीतियों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। फलों के स्वाद, पिगमेंट इकट्ठा होना और फलों के जीवन जैसे पकने के गुणों में सुधार के लिए इस तंत्र को समझना जरूरी है।

लंबे समय तक फलों को रखने वाली किस्में कटाई के बाद परिवहन और भंडारण के दौरान फलों और सब्जियों के नुकसान को कम कर सकती हैं। इस तरह की बेहतर किस्मों से जहां किसानों को उनकी उपज की ज्यादा कीमत मिलेंगी, वहीं ताजा और गुणवत्ता वाले ऐसे कृषि उत्पादों से उपभोक्ता भी लाभान्वित होंगे। पकने में एथिलीन की भूमिका को देखते हुए टमाटर में इसके जैव-संश्लेषण और सिग्नलिंग का अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है। हालांकि, एथिलीन-प्रेरित पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले आनुवंशिक नियंत्रण तंत्र को पूरी तरह से समझा जाना अभी बाकी है। शोधकर्ताओं ने अब इस पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।

नया शोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय के डॉ. राहुल कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण के. शर्मा के संयुक्त नेतृत्व में पौधा वैज्ञानिकों की एक टीम ने संरक्षित तंत्र की पहचान की है जो एथिलीन जैव-संश्लेषण को रोककर टमाटर के पकने को नियंत्रित करता है। टीम ने पाया कि कई नहीं पकने वाले म्यूटेंट जो आम तौर पर परिपक्व नहीं होते हैं, ज्यादा मात्रा में मिथाइलग्लाइऑक्सल (एमजी) को जमा करते जाते हैं जो जहरीला होता है। श्वसन और प्रकाश संश्लेषण जैसी कई सेल्युलर प्रक्रियाओं से यह बनता रहता है। जानवरों और पौधों दोनों में गैर-एंजाइम के रूप में प्रोटीन को काम करने से रोकने के लिए एमजी को जाना जाता है। शोध के दौरान यह पाया गया कि कच्चे टमाटर के म्यूटेंट में एमजी डिटॉक्सिफिकेशन एंजाइम प्रणाली का अभाव था।

इसके बाद वैज्ञानिकों की टीम ने पकने वाले सहयोगी ग्लाइऑक्सालेस एंजाइम (एसआईजीएलवाईआई4) की मदद से ओवर-एक्सप्रेशन और जीन-साइलेंट लाइनें विकसित की और दिखाया कि इस जीन के काम नहीं करने से पकने के चरणों में भारी मात्रा में एमजी जमा होता रहा। इसने फलों को पकने से बाधित किया और इन फलों ने नहीं पकने वाले म्यूटेंट के पकने वाले फेनोटाइप को फेनोकॉपी किया। जांच से पता चला है कि मिथाइलग्लाइऑक्सल एथिलीन जैव-संश्लेषण के मेथियोनीन सिंथेज (एमएस) और एस-एडेनोसिल मेथियोनीन सिंथेज (एसएएमएस) जैसे प्रमुख एंजाइमों को ग्लाइकेट्स और बाधित करता है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से फलों का पिगमेन्टेशन और सेल मेटाबॉलिस्म (सेल चयापचय) प्रभावित होता है।

एमजी का ज्यादा मात्रा में जमा होना कई नहीं पकने या अधपके टमाटर के म्यूटेंट से पता चलता है कि सामान्य रूप से पकने वाली प्रक्रिया के लिए रेगुलेटेड एमजी डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर इस अध्ययन से फलों के पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के एक तंत्र का पता चला है। इससे गूदेदार फलों को जल्दी पकने से रोकने और ज्यादा समय तक उन्हें इस्तेमाल लायक रखने में मदद मिलेगी। शोध के निष्कर्षों की नवीनता और महत्व के कारण "एथिलीन जैव-संश्लेषण को रोककर टमाटर के फलों को पकने से रोकना" नाम से यह शोध हाल ही में प्लांट फिजियोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। अमेरिका के अमेरिकन सोसायटी ऑफ प्लांट बायोलॉजिस्ट द्वारा प्रकाशित प्लांट फिजियोलॉजी शीर्ष वैज्ञानिक पत्रिकाओं में से एक है।

इस शोध टीम में दिल्ली विश्वविद्यालय से. अरुण के शर्मा, प्रिया गंभीर, विजेंद्र सिंह, उत्कर्ष रघुवंशी, अद्वैत परीदा और श्वेता शर्मा शामिल हैं। जबकि नई दिल्ली स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के प्रो. सुधीर के. सोपोरी और हैदराबाद विश्वविद्यालय के डॉ. राहुल कुमार एवं स्तुति कुजूर शामिल हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, कारोबार और स्टार्ट-अप में विशेषज्ञता रखते हैं।)

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