बकाया भुगतान पर ब्याज को लेकर यूपी सरकार की चुप्पी, क्या सुप्रीम कोर्ट में तय होगा गन्ना किसानों का हक

कानूनी रूप से गन्ना आपूर्ति के 14 दिन के बाद बकाया की गणना शुरू हो जाती है क्योंकि किसानों को 14 की अवधि के भीतर किसान को भुगतान मिलना चाहिए। इसके बाद किसानों को बकाया पर ब्याज मिलने का प्रावधान है। लेकिन अभी किसानों को बकाया पर ब्याज का भुगतान नहीं हो रहा है

बकाया भुगतान पर ब्याज को लेकर यूपी सरकार की चुप्पी, क्या सुप्रीम कोर्ट में तय होगा गन्ना किसानों का हक

अगर आपका किसी के उपर बकाया हो और तय अवधि के छह माह और साल भर तक उसका भुगतान न हो तो आपको यह उम्मीद तो होगी ही कि वह ब्याज समेत मिलेगा और यह उम्मीद तब और पुख्ता हो जाती है जब ब्याज मिलना कानूनी हो। लेकिन यह उम्मीद हमेशा पूरी हो इसकी कोई गारंटी नहीं है। उत्तर प्रदेश के करीब 40 लाख गन्ना किसान इस उम्मीद के पूरा नहीं होने के गवाह हैं। राज्य की चीनी मिलें साल दर साल गन्ना किसानों को तय अवधि के भीतर भुगतान नहीं करती हैं और उसके चलते बकाया हजारों करोड़ रुपये में होता है। कानूनी रूप से गन्ना आपूर्ति के 14 दिन के बाद बकाया की गणना शुरू हो जाती है क्योंकि किसानों को 14 की अवधि के भीतर किसान को भुगतान मिलना चाहिए। इसके बाद किसानों को बकाया पर ब्याज मिलने का प्रावधान है। लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है। पिछले सप्ताह ही उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा ने एक प्रेस वक्तव्य में स्वीकार किया कि चालू पेराई सीजन (2020-21) का चीनी मिलों के उपर गन्ना किसानों का बकाया करीब एक तिहाई बकाया है। राज्य के पेराई के आंकड़ों के मुताबिक यह राशि करीब दस हजार करोड़ रुपये बनती है। पिछले सीजन (2019-20) के अंतिम दिन 30 सितंबर,2020 को राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 8447 करोड़ रुपये था। जिसका भुगतान कुछ चीनी मिलों ने जनवरी, 2021 तक किया। यानी चीनी मिलें किसानों को गन्ना आपूर्ति करने के छह माह या उससे बाद तक भी भुगतान करती हैं। जबकि 2017 के विधान सभा चुनावों के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में राज्य के किसानों को कहा था कि उनको गन्ने का भुगतान 14 दिन की तय अवधि में सुनिश्चित किया जाएगा। राज्य में भारी बहुमत से भाजपा की सरकार बनी जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। सरकार और मंत्री यह तो बताती है कि किसानों को उनके कार्यकाल में कितना गन्ना मूल्य भुगतान किया है लेकिन यह नहीं बताती कि बकाया पर ब्याज भी मिलता है या नहीं। इस मामले में पिछली अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व वाली राज्य की समाजवादी पार्टी सरकार और मौजूदा सरकार में कई समानताएं हैं।

बहरहाल अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और कोरोना महामारी नियंत्रण में रहती है तो हो सकता है कि अगले एक दो माह में गन्ना किसानों के ब्याज पर मामला साफ हो जाए। असल  में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर ब्याज करीब 2500 करोड़ रुपये था। ब्याज की यह गणना जनवरी, 2014 के इलाहबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शुरू हुई थी। जिसे उनकी सरकार ने सार्वजनिक हित (पब्लिक इंटरेस्ट) में माफ कर दिया था। गन्ना आयुक्त की सिफारिश पर कैबिनेट ऐसा सरकार सकती है, इसका राज्य में प्रावधान है। लेकिन उसके बाद ब्याज माफ करने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। मौजूदा राज्य सरकार को इस पर न्यायालय का निर्देश भी आया। उसके बाद मौजूदा भाजपा सरकार ने कहा कि ब्याज का भुगतान किया जा सकता है लेकिन केंद्र के कानून के मुताबिक किसानों को बकाया पर 15 फीसदी ब्याज मिलना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि मुनाफे वाली  चीनी मिलें 12 फीसदी की दर से ब्याज दें और घाटे वाली चीनी मिलें 7 फीसदी की दर से ब्याज दें। यह बात अलग है कि राज्य सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया कि किसानों की कितनी राशि ब्याज के रूप में चीनी मिलों पर बकाया है।

करीब डेढ़ साल पहले राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह ने अपने संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि राज्य सरकार को ब्याज माफ करने का हक नहीं मिलना चाहिए। कोरोना के चलते अभी तक इस पर सुनवाई नहीं हो पाई है। उम्मीद है कि अगले एक दो माह में इस पर सुनवाई हो तो स्थिति साफ हो जाएगी। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि गन्ना किसानों को रिकार्ड भुगतान का दावा करने वाली राज्य सरकार ब्याज की राशि पर चुप है। वैसे अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य सरकार द्वारा तय किया जाने वाला राज्य परामर्श मूल्य  (एसएपी) तीन सीजन तक फ्रीज रखा था और केवल दो बार उसमें बढ़ोतरी थी। उसी लीक पर चलते हुए मौजूदा योगी सरकार ने भी पहले सीजन 2017-18 में  गन्ने के एसएपी में दस रुपये प्रति क्विवंटल की बढ़ोतरी की थी और उसके बाद की तीन सीजन से उसे फ्रीज कर रखा है। यानी गन्ना उत्पादन की तमाम लागतों में बढ़ोतरी के बावजूद किसानों की फसल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। दाम के बारे में पिछले दिनों रुरल वॉयस के एक सवाल के जवाब में राज्य के  गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा ने कहा था कि हमारा जोर गन्ना भुगतान पर है।

असल में गन्ना किसानों को जिस तरह से देरी से भुगतान होता है उसमें वह भी अब केवल भुगतान की सोचते हैं और ब्याज शायद उनकी उम्मीद में शुमार ही नहीं हो रहा है। वी.एम. सिंह ने इस मसले पर बात करते हुए रुरल वॉयस से कहा कि मुझे उम्मीद है कि मई, 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जिस तरह गन्ने के एसएपी तय करने के राज्य सरकार के अधिकार को जायज ठहराते हुए गन्ना किसानों के हक में फैसला दिया था, ब्याज के मामले में भी किसानों के हक में फैसला आएगा। यह जायज भी है जब किसान क्रेडिट कार्ड के भुगतान में देरी हो जाती तो किसानों को ब्याज छूट नहीं मिलती है और उन्हें अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। तो फिर चीनी मिलें किसानों को बकाया पर ब्याज क्यों नहीं देंगी। राज्य सरकार की लापरवाही से ही किसानों को ब्याज नहीं मिल रहा है। जिस दिन ब्याज मिलना शुरू हो जाएगा उस दिन के बाद किसानों के गन्ना भुगतान का बकाया भी कम हो जाएगा क्योंकि मिलों को अहसास होगा कि उनको ब्याज का बोझ सहना पड़ेगा। अभी उनको लगता है कि वह ब्याज भुगतान से बची हुई है।  

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