कार्बन कैप्चर की गति बेहद धीमी, 2.5 डिग्री बढ़ सकता है वातावरण का तापमान, कृषि के लिए खतरा बढ़ेगा

वर्ष 2050 तक विश्व स्तर पर नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर साल 700 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने की जरूरत है। इस समय कार्बन कैप्चर की दिशा में जो कदम उठाए गए हैं, उनसे 2050 तक सालाना 200 करोड़ टन कार्बन ही वातावरण से हटाया जा सकेगा। अगर मौजूदा स्थिति जारी रही तो वातावरण का तापमान औद्योगीकरण की शुरुआत होने से पहले की तुलना में 2.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जबकि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने का लक्ष्य है।

कार्बन कैप्चर की गति बेहद धीमी, 2.5 डिग्री बढ़ सकता है वातावरण का तापमान, कृषि के लिए खतरा बढ़ेगा

जलवायु परिवर्तन से भले ही भारत समेत दुनिया भर में कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा हो, लेकिन अभी तक इसे रोकने के लिए उठाए गए कदम अपर्याप्त हैं। वर्ष 2050 तक विश्व स्तर पर नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर साल 700 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने की जरूरत है। इस समय कार्बन कैप्चर की दिशा में जो कदम उठाए गए हैं, उनसे 2050 तक सालाना 200 करोड़ टन कार्बन ही वातावरण से हटाया जा सकेगा। अगर मौजूदा स्थिति जारी रही तो वातावरण का तापमान औद्योगीकरण की शुरुआत होने से पहले की तुलना में 2.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जबकि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने का लक्ष्य है। कार्बन क्रेडिट्स डॉट कॉम ने वुड्स मैकेंजी रिसर्च के हवाले से प्रकाशित रिपोर्ट में यह बात कही है।

इसमें कहा गया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के महत्वपूर्ण लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें सदी के मध्य तक सालाना 700 करोड़ टन कार्बन कैप्चर करना पड़ेगा। कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) कॉन्फ्रेंस में वुड्स मैकेंजी के प्रतिनिधि ने कहा, हमें अपनी इंडस्ट्री और पावर सेक्टर से बड़ी मात्रा में कार्बन कैप्चर करने की जरूरत है। सिर्फ ग्रीन इलेक्ट्रिफिकेशन अथवा ऐसे विकल्पों से यह संभव नहीं है। वातावरण का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने तक सीमित रखने के लिए हमें जमीनी स्तर पर तत्काल कदम उठाने पड़ेंगे।

साभारः https://carboncredits.com/

वुड्स मैकेंजी इस समय हर साल 140 करोड़ टन सीसीयूएस क्षमता की मॉनीटरिंग कर रही है। इसमें कार्बन कैप्चर, ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज समेत हर तरह के प्रोजेक्ट शामिल हैं। इसमें सबसे अधिक 33% हिस्सेदारी अमेरिका की है। उसके बाद इंग्लैंड की 14 प्रतिशत, कनाडा की 12 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया की 6 प्रतिशत, रूस की पांच प्रतिशत और चीन की सिर्फ दो प्रतिशत है। भारत समेत अन्य देशों का हिस्सा 17% है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ सीसीयूएस प्रोजेक्ट आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं, लेकिन अगर उनके मुनाफे में आने का इंतजार किया गया तो जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करना अधिक मुश्किल हो जाएगा। जलवायु परिवर्तन के असर से जो संकट पैदा होंगे उसके आर्थिक नुकसान ज्यादा होंगे।

संयुक्त राष्ट्र के आईपीसी तथा अन्य महत्वपूर्ण संगठनों का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन कम करने और वातावरण का तापमान बढ़ने से रोकने में सीसीयूस की बड़ी भूमिका है। इसे कैप्चर करना पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है। सीसीसीयूएस कार्बन हटाने की एक टेक्नोलॉजी है। हाल के वर्षों में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों के निवेशकों ने इसमें काफी रुचि दिखाई है।

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