2029-30 में देश में दालों की मांग 3.26 करोड़ टन रहने का अनुमान

सभी दालों को मिलाकर देखें तो 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 786 किलो दालों का उत्पादन हुआ था जो 2020-21 में 885 किलो हो गया। 2021-22 में इसके 888 किलो प्रति हेक्टेयर रहने का अनुमान है

2029-30 में देश में दालों की मांग 3.26 करोड़ टन रहने का अनुमान

वर्ष 2021-22 मई देश में 2.67 करोड़ टन दालों की मांग थी। इसके 2029-30 तक 3.26 करोड़ टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक 2021-22 में देश में 2.69 लाख करोड़ टन दालों का उत्पादन हुआ। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बुधवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। 2029-30 में दालों की मांग का आकलन नीति आयोग की तरफ से गठित वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है।

जहां तक दालों की उत्पादकता की बात है तो हाल के वर्षों में तूर यानी अरहर दाल की उत्पादकता में कोई खास फर्क नहीं आया है। 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 913 किलो अरहर का उत्पादन होता था जो 2018-19 में घटकर 769 किलो रह गया। 2020-21 में यह फिर 914 किलो प्रति हेक्टेयर दर्ज हुआ है। हालांकि चने की उत्पादकता बढ़ी है। 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 974 किलो चने का उत्पादन हुआ था जो 2020-21 में बढ़कर 1192 किलो हो गया।

उड़द की कुल उत्पादकता इस दौरान 632 किलो प्रति हेक्टेयर से घटकर 538 किलो रह गई। मूंग की उत्पादकता 500 किलो प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 601 किलो पहुंच गई। मसूर की उत्पादकता बढ़ी है। 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 838 किलो मसूर का उत्पादन हुआ था जो 2020-21 में बढ़कर 1017 किलो हो गया। सभी दालों को मिलाकर देखें तो 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 786 किलो दालों का उत्पादन हुआ था जो 2020-21 में 885 किलो हो गया। 2021-22 में इसके 888 किलो प्रति हेक्टेयर रहने का अनुमान है।

केंद्र सरकार की स्कीम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन को लागू करने वाला कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय गेहूं, चावल और मोटे अनाज के साथ दालों का उत्पादन बढ़ाने पर भी फोकस कर रहा है। इसके लिए रकबा बढ़ाने के अलावा उत्पादकता बढ़ाने की भी कोशिश की जा रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-दाल के तहत किसानों को क्लस्टर प्रदर्शनी, बीज वितरण, अधिक उत्पादकता वाले बीजों के उत्पादन, खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी, पानी बचाने वाली तकनीक के इस्तेमाल, पोषक तत्वों के प्रबंधन जैसे कार्यों के लिए इंसेंटिव दिया जा रहा है।

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