अरहर दाल के बढ़ते दाम महंगाई के लिए खड़ी करेंगे नई मुसीबत, इन कदमों के बावजूद काबू में नहीं आ रही कीमत

अरहर (तूर) दाल के दाम पिछले करीब दो महीने में 30-40 रुपये तक प्रति किलो बढ़ चुके हैं। खुदरा बाजार में इसकी कीमत 160-170 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में कीमतों में और वृद्धि संभव है जिसका असर सीधे महंगाई की वृद्धि दर पर पड़ेगा। घरेलू बाजार में अरहर की कीमतों को काबू में रखने की सरकार की तमाम कोशिश नाकाम साबित हो रही है।

अरहर दाल के बढ़ते दाम महंगाई के लिए खड़ी करेंगे नई मुसीबत, इन कदमों के बावजूद काबू में नहीं आ रही कीमत
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूूद अरहर दाल की कीमतें नियंत्रण में नहीं आआ रही हैं।

अरहर (तूर) दाल के दाम पिछले करीब दो महीने में 30-40 रुपये तक प्रति किलो बढ़ चुके हैं। खुदरा बाजार में इसकी कीमत 160-170 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में कीमतों में और वृद्धि संभव है जिसका असर सीधे महंगाई की वृद्धि दर पर पड़ेगा। घरेलू बाजार में अरहर की कीमतों को काबू में रखने की सरकार की तमाम कोशिश नाकाम साबित हो रही है।

कमजोर मानसून के चलते खरीफ फसलों के उत्पादन पर असर पड़ने की भी आशंका अभी से जताई जाने लगी है। उत्पादन घटने का सबसे ज्यादा असर चावल की कीमतों पर पड़ सकता है। जबकि गेहूं की कीमतें अभी से बढ़ने लगी हैं। देश की खाद्य सुरक्षा में इन दोनों अनाजों का प्रमुख योगदान है। ऐसे में सरकार को यह डर सता रहा है कि खाद्य उत्पादों की कीमतें काबू में नहीं रही तो खुदरा महंगाई फिर से सिर उठाने लगेगी। अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर चुनावों पर पड़ेगा क्योंकि इस साल के अंत तक कई राज्यों में विधानसभा के और अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं।

7.90 लाख टन घटा अरहर का घरेलू उत्पादन

दरअसल, इस साल सरकार अरहर की कीमतों को लेकर शुरुआत से ही परेशान है। इसकी सबसे बड़ी वजह अरहर के उत्पादन में बड़ी कमी होना है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक अरहर का उत्पादन घटकर 34.30 लाख टन रह गया है। जबकि लक्ष्य 45.50 लाख टन का रखा गया था। 2021-22 की तुलना में उत्पादन में 7.90 लाख टन की कमी आई है। 2021-22 में अरहर का उत्पादन 42.20 लाख टन रहा था। हालांकि, देश में अरहर की कुल खपत घरेलू उत्पादन की तुलना में ज्यादा है और इसकी पूर्ति आयात से की जाती है।

15 लाख टन से ज्यादा आयात की जरूरत

म्यांमार और पूर्वी अफ्रीकी देशों से बड़ी मात्रा में अरहर का आयात होता है लेकिन इस साल घरेलू उत्पादन घटने को देखते हुए निर्यातक देशों ने दाम बढ़ा दिए हैं। इसके अलावा आयातकों द्वारा विदेशों में ही अरहर की जमाखोरी करने की भी खबरें हैं। 2021-22 में देश में 7.6 लाख टन अरहर का आयात हुआ था और 2022-23 में उत्पादन 7.90 लाख घट गया। इस लिहाज से देखें तो करीब 16 लाख टन आयात की गुंजाइश बनी। इतनी बड़ी मात्रा में आयात की जरूरत की वजह से ही आयातकों, स्टॉकिस्टों और बड़े दाल कारोबारियों को इसमें खेल करने का मौका मिल गया। इसलिए सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद घरेलू कीमतें काबू में नहीं आ रही हैं।  

दाम काबू में रखने को सरकार ने उठाए ये कदम   

  • उत्पादन में कमी को देखते हुए सरकार ने इस साल जनवरी में अच्छी गुणवत्ता वाले 10 लाख टन अरहर का आयात करने का फैसला किया।
  • 3 मार्च, 2023 को एक अधिसूचना जारी कर साबूत अरहर पर लगने वाले 10 फीसदी आयात शुल्क को हटाकर शुल्क मुक्त आयात का फैसला किया गया। हालांकि, अरहर दाल पर 10 फीसदी आयात शुल्क बरकरार रखा गया।
  • अरहर के नियमित आयात के बावजूद बाजार में उस तुलना में उपलब्धता नहीं होने को देखते हुए सरकार ने 28 मार्च, 2023 को अरहर के स्टॉक की निगरानी के लिए अतिरिक्त सचिव निधि खरे की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति बना दी। जमाखोरों और सटोरियों पर अंकुश लगाने के लिए यह कदम उठाया गया। यह समित राज्य सरकारों के सहयोग से स्टॉक की नियमित निगरानी कर रही है।
  • इसके दो दिन बाद 30 मार्च, 2023 को सरकार ने दाल आयातकों को निर्देश दिया कि वे अपने पास उपलब्ध सभी स्टॉक की पारदर्शी तरीके से स्टॉक घोषणा पोर्टल पर नियमित जानकारी दें।
  • 2 जून, 2023 को अरहर (तूर) और उड़द दाल पर स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला किया गया ताकि बाजार में उपलब्धता बढ़ाई जा सके।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और बाजार में उपलब्धता बढ़ाने के लिए 6 जून, 2023 को अरहर, उड़द और मसूर की सरकारी खरीद सीमा 40 फीसदी को पूरी तरह से हटाने का फैसला किया गया। 2023-24 के लिए किए गए इस फैसले के तहत दाल किसान अब इन तीनों दालों की पूरी उपज सरकारी खरीद केंद्रों पर बेच सकते हैं।         
  • 7 जून, 2023 को सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की जिसमें दलहन फसलों के एमएसपी में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी की गई। मूंग का एमएसपी 803 रुपये बढ़ाकर 8558 रुपये प्रति क्विंटल और अरहर का एमएसपी 400 रुपये बढ़ाकर 7000 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। उड़द के एमएसपी में 350 रुपये की वृद्धि की गई जिसके बाद यह 6950 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है।

सरकार के इन कदमों के बावजूद अरहर दाल की कीमतें अनियंत्रित होती जा रही हैं। यह महंगाई के लिए नई मुसीबत बन सकता है। भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। दुनिया के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 24 फीसदी है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र में देश के कुल दलहन उत्पादन का 70 फीसदी उत्पादन होता है।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!