‘फोर्टिफाइड चावल एनीमिया और थैलेसीमिया के मरीजों के लिए हानिकारक है’ की लेबलिंग पर हुई कार्रवाई बताए केंद्र, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया है कि फोर्टिफाइड चावल के पैकेट पर लेबलिंग के जरिये यह बताया जाना चाहिए कि सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए यह हानिकारक है। खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2018 के प्रावधान का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों के तहत ऐसे उपभोक्ताओं को इससे अवगत कराना जरूरी है। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने और इस संबंध में की गई कार्रवाई के बारे में कोर्ट को सूचित करने को कहा है।

‘फोर्टिफाइड चावल एनीमिया और थैलेसीमिया के मरीजों के लिए हानिकारक है’ की लेबलिंग पर हुई कार्रवाई बताए केंद्र, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया है कि फोर्टिफाइड चावल के पैकेट पर लेबलिंग के जरिये यह बताया जाना चाहिए कि सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए यह हानिकारक है। खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2018 के प्रावधान का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों के तहत ऐसे उपभोक्ताओं को इससे अवगत कराना जरूरी है। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने और इस संबंध में की गई कार्रवाई के बारे में कोर्ट को सूचित करने को कहा है।

शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा, "भारत सरकार की ओर से पेश वकील यह बताएंगे कि याचिका में इस संबंध में की गई शिकायत के बारे में क्या कदम उठाए गए हैं और क्या याचिकाकर्ताओं की ओर से पहले से ही दिए गए अभ्यावेदन पर कोई कार्रवाई की गई है। इस संबंध में चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर किया जाए। चार सप्ताह के बाद इसे तुरंत सूचीबद्ध करें।''

राजेश कृष्णन और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिकाओं में फोर्टिफाइड चावल की बोरियों पर अनिवार्य लेबलिंग करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2018 के खंड 7(4) का पालन की मांग की गई है।

इस खंड के अनुसार, सूक्ष्म पोषक तत्व आयरन से भरपूर भोजन के प्रत्येक पैकेज पर यह लिखा होना चाहिए कि "थैलेसीमिया से पीड़ित लोग चिकित्सकीय देखरेख में ले सकते हैं और सिकल सेल एनीमिया वाले व्यक्तियों को आयरन-फोर्टिफाइड खाद्य उत्पादों का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।" फोर्टिफिफाइड चावल, दूध और नमक जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों में उनकी पोषण सामग्री में सुधार करने के लिए आयरन, आयोडीन, जिंक और विटामिन ए और डी जैसे प्रमुख विटामिन और खनिजों को अलग से शामिल किया जाता है।

इस बीच, अलायंस फॉर होलिस्टिक एंड सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (आशा) और राइट टू फूड कैंपेन ने एक बयान में दावा किया है कि दो राज्यों के किए गए दौरे में उनकी टीमों ने पाया कि बिना किसी जांच या चिकित्सकीय पर्यवेक्षण के आयरन चावल का अंधाधुंध वितरण किया जा रहा था और हीमो-ग्लोबिनोपैथियों के मरीजों को इस बात का पता ही नहीं था कि यह चावल उनके लिए हानिकारक है।

बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार की ओर से भी राज्य सरकारों को इस चेतावनी के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया गया है। यह देखते हुए कि मध्याह्न भोजन जैसी कुछ योजनाओं में चावल को खुले या पके हुए रूप में वितरित किया जा रहा था। इस बारे में कोई लिखित या मौखिक चेतावनी नहीं थी। यह केवल बोरियों पर धुंधले अक्षरों में दिखाई दे रही थी। इसके अलावा, ऐसे मरीजों को कोई वैकल्पिक आयरन मुक्त चावल उपलब्ध नहीं कराया जा रहा था।

सिंथेटिक आयरन फोर्टिफाइड चावल खाने वाले सरकारी खाद्य योजनाओं के लाभार्थी ज्यादातर गरीब नागरिक हैं जो सब्सिडी वाले भोजन पर निर्भर हैं। उनके लिए आयरन फोर्टिफाइड चावल अनिवार्य हो गया है क्योंकि वे खुले बाजार से अन्य (गैर-फोर्टिफाइड) चावल खरीदने में सक्षम नहीं हैं। इस कार्यक्रम का विस्तार 15 राज्यों में एक पायलट योजना के पूरा होने या स्वतंत्र रूप से और कठोरता से मूल्यांकन करने से पहले हुआ। एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया है कि पायलट प्रोजेक्ट का मूल्यांकन 2022 के अंत में किया जाना था, लेकिन आज तक कोई मूल्यांकन उपलब्ध नहीं है।

जनहित याचिका में याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 7(4) का अनुपालन करे और चेतावनियां उपलब्ध कराए जो सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचे। उन्होंने यह भी मांग की कि ऐसे रोगियों के लिए गैर-फोर्टिफाइड चावल उपलब्ध कराया जाए।

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