महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार और आरबीआई का आपूर्ति प्रबंधन पर जोर

कच्चे तेल की कम कीमतों के बावजूद महंगाई जल्दी कम होने वाली नहीं है। यह सरकार के लिए लगातार चुनौतियां पैदा कर रही है। हालांकि, ऐसा देखा गया है कि ध्रुवीकृत राजनीति में मुद्रास्फीति कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, लेकिन चुनिंदा क्षेत्रों में इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए, सरकार द्वारा निर्यात प्रतिबंधों को लेकर और अधिक उपाय किए जाने की उम्मीद है, जबकि आरबीआई कम से कम चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरों में कोई कटौती करने नहीं जा रहा है।

महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार और आरबीआई का आपूर्ति प्रबंधन पर जोर

लोकसभा चुनाव से पहले व्यापारियों के लिए गेहूं के स्टॉक लिमिट को घटाकर आधा करना,  मार्च 2024 तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, गन्ने के जूस से एथेनॉल बनाने पर अंकुश लगाना और डी-ऑयल राइस ब्रान के निर्यात पर रोक लगाना महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार के आपूर्ति पक्ष प्रबंधन उपायों में से एक है। भारतीय रिजर्व बैंक भी ''खाद्य कीमतों में अनिश्चितताओं'' का हवाला देते हुए ऊंची ब्याज दर को कम करने को तैयार नहीं है।

हालांकि, खुदरा महंगाई अपने शिखर से काफी नीचे आ गई है और नवंबर 2023 में यह 5.56 फीसदी रही है। फिर भी, यह आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। सरकार और आरबीआई दोनों को परेशान करने वाली बात खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि है। नवंबर में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक 8.70 फीसदी रही है।

महाराष्ट्र में प्याज उत्पादक निर्यात प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं गेहूं और चावल पर निर्यात प्रतिबंध के खिलाफ सुगबुगाहट है। आपूर्ति प्रबंधन के लिए सरकार के पास इन हस्तक्षेपों के अलावा और कोई विकल्प बचा नहीं है। ये उपाय केवल निर्यात पाबंदियों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें दालों का उदार आयात भी शामिल है। आपूर्ति बढ़ाने के लिए इस साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच करीब 20 लाख टन दालों का आयात किया गया है। इसके बावजूद दालों की खुदरा महंगाई 20.23 फीसदी पर बनी हुई है। इसी तरह, निर्यात प्रतिबंधों के बावजूद नवंबर 2023 में अनाजों की महंगाई दर 10.27 फीसदी दर्ज की गई है। मगर वसा और खाद्य तेलों की कीमतों में नरमी आई है। समग्र रूप से देखें तो खुदरा महंगाई बढ़कर आरबीआई के अनुकूल स्तर से ऊपर पहुंच गई है।

अच्छी बात यह है कि सरकार और आरबीआई दोनों यह अच्छी तरह से जानते हैं कि मुद्रास्फीति का दबाव मानसून के असमान प्रसार के कारण खरीफ उत्पादन में गिरावट की वजह से है। आरबीआई ने 8 दिसंबर को अपनी मौद्रिक नीति में स्पष्ट तौर पर कहा, ''खाद्य कीमतों में अनिश्चितताओं के साथ-साथ प्रतिकूल आधार प्रभावों से नवंबर-दिसंबर में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होने की संभावना है। अल नीनो की स्थिति के साथ-साथ खरीफ फसल की आवक और रबी की बुवाई में प्रगति पर नजर रखने की जरूरत है। अनाज के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक और अंतरराष्ट्रीय खाद्य कीमतों में नरमी के साथ-साथ सरकार द्वारा  आपूर्ति पक्ष में सक्रिय हस्तक्षेप से खाद्य कीमतों के दबाव को नियंत्रण में रखा जा सकता है।''

आरबीआई की मौद्रिक नीति के बयान में अनाज के पर्याप्त बफर स्टॉक के माध्यम से सरकार द्वारा आपूर्ति पक्ष के उपायों पर जोर दिया गया था। खैर, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उत्पादन परिदृश्य को देखते हुए यह एक चुनौती बनी रहेगी। रूरल वॉयस ने खाद्यान्न उत्पादन में कमी को उजागर करने वाली कई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार, खरीफ चावल का उत्पादन लगभग चार फीसदी घटकर 10.6 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया है। इसी तरह, रबी फसलों, मुख्य रूप से गेहूं की बुवाई में देरी के कारण उत्पादन अनुमान बहुत अच्छे नहीं हैं।

संक्षेप में कहें तो कच्चे तेल की कम कीमतों के बावजूद महंगाई जल्दी कम होने वाली नहीं है। यह सरकार के लिए लगातार चुनौतियां पैदा कर रही है। हालांकि, ऐसा देखा गया है कि ध्रुवीकृत राजनीति में मुद्रास्फीति कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, लेकिन चुनिंदा क्षेत्रों में इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए, सरकार द्वारा निर्यात प्रतिबंधों को लेकर और अधिक उपाय किए जाने की उम्मीद है, जबकि आरबीआई कम से कम चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरों में कोई कटौती करने नहीं जा रहा है।

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