खुले बाजार में गेहूं बिक्री का फैसला अगले सीजन में सरकारी खरीद का खर्च कम करने की कोशिश

बाजार की ऊंची कीमतों ने हालात को बदल दिया है। सरकारी काउंटर अप्रैल में खरीद के समय किसानों का स्वागत करते दिख सकते हैं। दूसरी तरफ किसान यह सोचकर सरकारी खरीद केंद्रों पर जाने से मना कर सकते हैं कि खुले बाजार में उन्हें अनाज की अधिक कीमत मिल जाएगी

खुले बाजार में गेहूं बिक्री का फैसला अगले सीजन में सरकारी खरीद का खर्च कम करने की कोशिश

इस साल गेहूं की कहानी कुछ अलग दिख रही है। तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल को पार करने के बाद अभी मंडियों में इसकी कीमत 2700 से 2800 रुपए प्रति क्विंटल चल रही है। उत्तर और पश्चिमी भारत के लोगों के भोजन का मुख्य हिस्सा, गेहूं की लगातार ऊंची कीमत ने सरकार की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। इसने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को खुले बाजार में 30 लाख टन गेहूं बेचने का निर्देश दिया है। जाहिर है कि इसका मकसद कीमतों को नियंत्रित करना है। इस समय रेगुलर वैरायटी का आटा 35 रुपए किलो के भाव बिक रहा है।

सरकार की परेशानी दो वजहों से है। पहला, खुदरा महंगाई जो कम होने लगी थी वह फिर से बढ़ सकती है, और दूसरा, जब हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा अन्य राज्यों में अप्रैल के दूसरे हफ्ते में गेहूं की नई फसल आएगी तब उसे बफर स्टॉक के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर गेहूं खरीदना पड़ेगा। अभी गेहूं का एमएसपी 2125 रुपए प्रति क्विंटल है। राशन दुकानों की जरूरतें पूरी करने के लिए केंद्रीय पूल में कम से कम 240 लाख टन गेहूं होना चाहिए।

किसान संगठन भले ही एमएसपी को कानूनी दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस साल हालात कुछ अलग रहने के आसार हैं। सरकार की प्रमुख खरीद, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन एजेंसी एफसीआई 2125 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी के भाव पर गेहूं खरीद कर खुश होगी, दूसरी तरफ किसानों को खुले बाजार में एमएसपी से अधिक का भाव मिल सकता है।

आमतौर पर हम किसानों को एमएसपी पर ऊपज खरीदे जाने की मांग करते और सरकार की तरफ से टालमटोल का रवैया अपनाना देखते रहे हैं। लेकिन बाजार की ऊंची कीमतों ने हालात को बदल दिया है। सरकारी (एफसीआई) काउंटर अप्रैल में खरीद के समय किसानों का स्वागत करते दिख सकते हैं। दूसरी तरफ किसान यह सोचकर सरकारी खरीद केंद्रों पर जाने से मना कर सकते हैं कि खुले बाजार में उन्हें अनाज की अधिक कीमत मिल जाएगी।

ऐसे में सरकार के पास एमएसपी से अधिक कीमत चुकाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाएगा। इसे मंडी की भाषा में आमतौर पर बोनस कहा जाता है। निश्चित तौर पर यह किसानों के लिए अच्छी स्थिति होगी, लेकिन केंद्र सरकार के राजस्व पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा। बजट प्रावधान चाहे जो हो, वैसी परिस्थिति में 2023-24 में खाद्य सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो सकती है। इस वर्ष भी खाद्य सब्सिडी 1.46 लाख करोड़ रुपए के बजट प्रावधान की तुलना में काफी अधिक रहने की उम्मीद है। यह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के कारण होगा।

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, कृषि तथा वित्त मंत्रालय के बड़े अधिकारी निश्चित रूप से इन बातों का अनुमान लगा रहे होंगे। गेहूं और आटा की कीमतें नीचे लाने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसे अगले सीजन में सरकारी खरीद का खर्च कम करने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। सरकार ने दो कदम उठाए हैं। पहला, वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है और दूसरा, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने खुले बाजार में 30 लाख टन गेहूं जारी करने की घोषणा की है।

फिलहाल सरकार गेहूं के दाम में गिरावट को लेकर बेचैन दिख रही है। उसे उम्मीद है कि 1 अप्रैल से अगला खरीद सीजन शुरू होने से पहले दाम कम हो जाएंगे। इस सीजन में पिछली बार के 339.8 लाख हेक्टेयर की तुलना में थोड़ा ज्यादा, 341 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई है। हालांकि अगले 2 महीने में मौसम की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। उपभोक्ता हित के नाम पर सरकार गेहूं के दाम नीचे लाने के लिए और प्रयास कर सकती है, क्योंकि तब उसे खाद्य सब्सिडी में भी बचत होगी। अगर एफसीआई को एमएसपी से अधिक दाम पर अनाज खरीदना पड़ा तो खाद्य सब्सिडी भी बढ़ेगी। बहरहाल, किसानों के लिए वर्षों बाद ऐसा सुनहरा मौका आया है जब उन्हें अपनी उपज की अच्छी कीमत मिल रही हो।

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