कृषि मंडियों में 5 रुपये से नीचे गिरे आलू के दाम, लागत भी नहीं निकाल पा रहे किसान
उत्तर प्रदेश और हरियाणा के आलू उत्पादक क्षेत्रों में किसानों की उपज 5 रुपये किलो से नीचे बिकने की स्थिति आ गई है, जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
देश के प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों में नई फसल की आवक शुरू होते ही आलू के दामों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियों में आलू के भाव इतने नीचे आ गए हैं कि किसानों के लिए अपनी लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। कई मंडियों में आलू का भाव 300 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गया है।
उत्तर भारत की बड़ी मंडियों में अधिक आवक और कम मांग के कारण कीमतों में तेज गिरावट देखी जा रही है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र और अंबाला की मंडियों में सफेद आलू का भाव 300-400 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गया है, जबकि लाल आलू 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा है। यही आलू उपभोक्ताओं को 20 रुपये किलो से कम रेट पर नहीं मिल पा रहा है।
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद और हापुड़ जिले की मंडियों में नया आलू 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बिक रहा है। पुराने आलू की स्थिति और भी खराब है, जिसे कई किसान कोल्ड स्टोरेज से निकालने तक का जोखिम नहीं उठा रहे हैं। फर्रुखाबाद की सातनपुर मंडी में अच्छी किस्म का नया आलू 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रहा है, जबकि पिछले साल इसी समय इसका भाव करीब 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक था।
फर्रुखाबाद के मोहम्मदाबाद ब्लॉक में आलू की गिरती कीमतों से परेशान होकर एक किसान ने अपनी दो बीघा आलू की फसल को ट्रैक्टर से जुतवा दिया। किसान का कहना है कि आलू के दाम इतने गिर गए हैं फिर भी सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। हापुड़ में कोल्ड स्टोरेज का किराया आलू की कीमत से अधिक होने के कारण किसान अपना माल स्टोरेज में छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। पिछले साल किसानों को आलू की अच्छी कीमतें मिलने से काफी फायदा हुआ था, नतीजतन इस साल किसानों ने अधिक आलू उगाया।

चढ़ूनी ने सीएम सैनी को लिखा पत्र
हरियाणा में किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश की अधिकांश मंडियों, विशेषकर पंचकूला, सिरसा, सोनीपत, यमुनानगर, अंबाला, पिपली और शाहाबाद आदि में सफेद आलू के भाव लगातार गिर रहे हैं। ये भाव किसानों की उत्पादन लागत से काफी नीचे चले गए हैं। वहीं, लाल आलू का भाव अपेक्षाकृत अधिक बना हुआ है, जिसके कारण मंडियों का औसत या मॉडल भाव ऊपर दिख रहा है। इसी औसत के आधार पर सफेद आलू उत्पादक किसानों को भावांतर भरपाई योजना से बाहर किया जा रहा है, जिससे उन्हें सीधा नुकसान हो रहा है।
भाकियू (चढ़ूनी) ने मांग की है कि सरकार आलू के लिए भावांतर भरपाई योजना को तुरंत लागू किया जाए, अलग-अलग किस्मों (लाल, डायमंड और सफेद) के लिए अलग भाव निर्धारण किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 800 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए।
यूनियन ने यह भी आरोप लगाया कि आलू की फसल मंडियों में आने के बावजूद पोर्टल पर किसानों द्वारा पंजीकृत फसल का सत्यापन अब तक पूरा नहीं हुआ है। इसके कारण ई-खरीद पोर्टल पर कोटा जारी नहीं हो पा रहा और मंडियों में ऑनलाइन गेट पास नहीं कट रहे हैं, जिससे किसानों को मजबूरी में औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है।

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