मध्यप्रदेश: सूखे की मार झेल रहे मंडला के आदिवासी किसान

सूखे की मार ने मंडला के आदिवासी किसानों की खेती और पशुपालन दोनों को संकट में डाला। सिंचाई सुविधाएं न होने से खेती सिर्फ बरसात पर निर्भर है। रोजगार की तलाश में लोग इंदौर, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की ओर पलायन को मजबूर

मध्यप्रदेश: सूखे की मार झेल रहे मंडला के आदिवासी किसान
सभी फोटो: सतीश भारतीय

मध्यप्रदेश का मंडला जिला एक आदिवासी क्षेत्र है, जहां ग्रामीण अंचलों में लोग वनों और वनोपज आधारित आजीविका पर निर्भर हैं। पीढ़ियों से यहां के आदिवासी समुदाय चटाई, रस्सी, पत्तल और बर्तन जैसे उत्पाद बनाकर जीवनयापन करते आए हैं। साथ ही कृषि भी लोगों की जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है।

लेकिन खेती आसान नहीं है—यह पानी, बिजली और बीज जैसे कई संकटों से घिरी हुई है। इन सभी में सबसे गंभीर चुनौती है सूखा, जिसने आदिवासी किसानों की आजीविका पर गहरा असर डाला है।

बिछिया तहसील के हालात 

मंडला जिले की बिछिया तहसील के धरमपुरी, करंजिया, रीठी, भाग, किसली, राजो कटंगा और भानपुर जैसे गांव सूखे की मार झेल रहे हैं। किसान सुभाष धुर्वे बताते हैं, "सूखे के कारण खेत खाली पड़ रहते हैं। हम सिर्फ बारिश पर निर्भर फसलें ले पाते हैं। खेती न हो पाने से जीवन यापन मुश्किल होता जा रहा है।" 

आगे राजमोहन सहित कई अन्य किसान मिलते हैं। राजमोहन बताते हैं, "हमारी पांच एकड़ में से तीन एकड़ जमीन खाली पड़ी है। कहने को तो 5 एकड़ जमीन है लेकिन पानी नहीं होने से जमीन होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है।" 

बिछिया तहसील में पत्तल बेचते आदिवासी 

किसान सुकल सिंह मरकाम कहते हैं, "मेरे पास एक एकड़ जमीन है, लेकिन सिंचाई की सुविधा न होने से उसमें भी खेती नहीं हो पा रही है। सोचता हूं कि और जमीन ठेके पर लेकर खेती करूं मगर नुकसान के बारे में सोचकर डर जाता हूं।"

आगे हमारी मुलाकात विमला मार्को और अनिता धुर्वे से होती है। विमला बताती हैं कि सिंचाई की सुविधा न होने से केवल बरसात की फसल ले पाते हैं।

सूखे पड़े खेत दिखाता बरखेड़ा गांव का आदिवासी युवा किसान

सिंचाई का संकट

विमला मार्को आगे कहती हैं, "हमारे इलाके में हालोन डेम भी बना हुआ है, जिसमें काफी पानी रहता है। लेकिन यह पानी दूसरे क्षेत्रों के लिए जाता है। यदि डेम का पानी हमें दिया जा सके तो सूखे के हालात बदल सकते हैं। यदि लिफ्टिंग सिस्टम से खेतों तक पानी पहुंचाया जाए तो सूखे की समस्या कम हो सकती है।" 

अनिता धुर्वे खेती के साथ-साथ मवेशियों को चराने का काम करती है। वे कहती हैं कि सूखे के कारण लोग बड़ी तकलीफ झेलते हैं। पशुओं को पानी पिलाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है। वहीं, खेत सूखे पड़े रहते हैं।

बिछिया में हालून डेम के पास निकली एक नहर

महान सिंह धुर्वे बताते हैं कि खेती के संसाधन जुटाना छोटे किसानों के लिए आसान नहीं होता। इसलिए बहुत से लोग रोजगार की तलाश में इंदौर, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। वह आगे कहते हैं किसूखे के कारण लोग अपने मवेशी—गाय, बैल, भैंस तक बेचने को मजबूर हो गए हैं।

पंचम सिंह धुर्वे कहते हैं, "सूखा सिर्फ खेती को ही बर्बाद नहीं करता है, यह हमारे लगाए पेड़-पौधों को भी बढ़ने नहीं देता। हरियाली और खुशहाली दोनों सूखने लगती हैं।"

मंडला में सूखे की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सवाल यह है कि क्या कभी इन आदिवासी इलाकों में सूखा खत्म होगा? या फिर आदिवासी किसान इसी तरह अपनी कृषि आधारित आजीविका को खोते रहेंगे?

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