उत्तर प्रदेश में गन्ने का दाम 425 रुपये तक पहुंचा, चीनी मिलों के सामने केन प्राइस वार की स्थिति
कोल्हू और खांडसारी इकाइयां किसानों को 425 से 450 रुपये प्रति क्विंटल तक गन्ने का भाव देने लगे हैं। इससे चीनी मिलों को गन्ना जुटाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और पड़ोसी उत्तराखंड में चीनी मिलें गन्ने की पर्याप्त आपूर्ति के लिए जूझ रही हैं। इस साल देखने में गन्ने की फसल ठीक-ठाक लग रही है, लेकिन किसानों और उद्योग के जानकारों का कहना है कि उत्पादकता पिछले साल से करीब 10 फीसदी कम है। इस स्थिति में पिछले कुछ दिनों में गन्ने का दाम बढ़ने लगा है और यह राज्य सरकार द्वारा चालू पराई सीजन (2025-26) के लिए तय राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को पार कर गया है।
यूपी में कई गुड़ और खांडसारी इकाइयां 400 से 425 रुपये प्रति क्विंटल तक के दाम पर गन्ना खरीद रही है। ऐसे में केन प्राइस वार की स्थिति पैदा हो गई है। इसके चलते जहां कई चीनी मिलों के सामने गन्ना आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है। वहीं राज्य के चीनी उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी के अनुमानों का सही साबित होना भी मुश्किल लग रहा है।
उत्तर प्रदेश के शामली जिले के ऊन में ‘हंस हेरिटेज जैगरी’ नाम से आधुनिक गुड़ कारखाने के संस्थापक कृष्णा पाल सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल गन्ने की उपलब्धता को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी गुड़ इकाई ने गन्ने का भाव 380 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। उनका कहना है कि इस साल गन्ने की फसल देखने में अच्छी लग रही है, लेकिन उसमें शुगर कंटेंट अपेक्षा के अनुरूप नहीं बन पाया है। इसके चलते गन्ने का वजन और चीनी या गुड़ की रिकवरी दोनों कम रही हैं। गन्ना जुटाने के लिए कोल्हू और खांडसारी इकाइयों को बेहतर रेट देना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि गन्ने की कमी के चलते हम अपनी यूनिट को केवल 12 घंटे ही चला रहे हैं। हालांकि गुड़ का दाम 38 रुपये प्रति किलो से घटकर 34 रुपये प्रति किलो आ गया है लेकिन करीब 14 फीसदी रिकवरी के चलते अभी बेहतर दाम देने की स्थिति में हैं।
मेरठ जिले में स्थित एक चीनी मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल गन्ने का भाव बढ़ने के बावजूद पर्याप्त गन्ना आपूर्ति सुनिश्चित करना मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि चीनी मिलों के बीच अधिक से अधिक पेराई करने की होड़ मची है। गन्ने की उपलब्ध को लेकर पैदा स्थिति के लिए वे रोग व मौसम के कारण गन्ने की पैदावार में आई गिरावट तथा कोल्हू व खांडसारी इकाइयों से मिल रही प्रतिस्पर्धा को मुख्य वजह मानते हैं। उन्होंने कहा कि हम आपूर्ति के एक सप्ताह के भीतर गन्ना मूल्य का भुगतान कर रहे हैं।
पिछले दो साल में गन्ने के एसएपी में बढ़ोतरी नहीं होने और गन्ना कटाई की लागत 55 से 60 रुपये प्रति क्विटंल पहुंचने से गन्ने रकबे में भी गिरावट आई है। गन्ने की खेती से कई किसानों का मोहभंग होने के कारण पश्चिमी यूपी के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली जैसे जिलों में एग्रो-फॉरेस्ट्री की ओर बढ़ता रुझान भी चीनी मिलों के लिए चुनौती बन रहा है।
उत्तर प्रदेश से सटे उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में लिब्बरहेड़ी को गुड़ उद्योग के हब के तौर पर जाना जाता है। लिब्बरहेड़ी के गन्ना किसान राहुल लोहान बताते हैं कि कोल्हू गन्ने का भाव 430 से 450 रुपये प्रति क्विंटल तक दे रहे हैं। तुरंत भुगतान के कारण भी बहुत से किसान कोल्हू को गन्ना दे रहे हैं, जबकि चीनी मिलों को गन्ना जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। पहले जहां किसानों को चीनी मिल की गन्ना पर्ची के लिए इंतजार रहता था, वहीं अब पर्ची की कोई समस्या नहीं है।
हरिद्वार जिले के बहादरपुर जट्ट क्षेत्र के किसान ऋषिपाल सिंह का कहना है कि गन्ने के लिए मजदूर न मिलना और बीते वर्षों में रेट न बढ़ने के कारण किसानों का रुझान पॉपलर और यूकेलिप्टिस जैसी एग्रो-फॉरेस्ट्री फसलों की ओर बढ़ा है। इससे भी चीनी मिलों के सामने गन्ने की कमी की समस्या गंभीर होने वाली है। इस साल कोल्हू पर 400 से 425 रुपये का रेट आम हो गया है। पहले जहां चीनी मिलों पर गन्ने से भरी ट्रॉलियों की लंबी कतारें लगी रहती थीं, वैसा अब नजर नहीं आता। जबकि कोल्हू पर गन्ने के ढेर लगे हैं।
गौरतलब है कि इस साल उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (SAP) पिछले साल के मुकाबले 30 रुपये बढ़ाकर 400 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। जबकि उत्तराखंड में गन्ने का एसएपी 405 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। हालांकि पिछले दो वर्षों के दौरान दोनों राज्यों में गन्ने का भाव नहीं बढ़ने और फसल में रेड रॉट जैसी बीमारियों के प्रकोप के कारण गन्ना उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है। यही कारण है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चीनी मिलों को समय से पहले पेराई सत्र समाप्त करना पड़ा था। मौजूदा हालात को देखते हुए इस साल स्थिति और गंभीर हो सकती है।

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