पंजाब में भीषण बाढ़ के पीछे जलवायु परिवर्तन और पश्चिमी विक्षोभ प्रमुख कारण

जलवायु परिवर्तन और पश्चिमी विक्षोभ की बढ़ती सक्रियता से पंजाब भीषण बाढ़ की चपेट में है। भारी बारिश के कारण नदियां उफान पर हैं और लाखों एकड़ फसल डूब गई। बड़े पैमाने पर नुकसान सामने है।

पंजाब में भीषण बाढ़ के पीछे जलवायु परिवर्तन और पश्चिमी विक्षोभ प्रमुख कारण

पंजाब कई दशकों की भीषण बाढ़ का सामना कर रहा है। राज्य के नौ जिलों और एक हजार से अधिक गांवों में बाढ़ की तबाही रावी और ब्यास नदी के कैचमेंट एरिया में अप्रत्याशित और भारी बारिश के चलते आई है। मानसून सीजन में सामान्य रूप से चार पश्चिमी विक्षोभ यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आते हैं, लेकिन इस बार इनकी संख्या 15 तक पहुंच गई है। इसके चलते हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सामान्य से 70 फीसदी अधिक बारिश हुई है। यही नहीं, बारिश अभी थमी नहीं है, जिसके चलते रावी और ब्यास नदियों में पानी का बढ़ा हुआ स्तर जारी है। इस वजह से इन दोनों नदियों के आसपास का पंजाब का इलाका बाढ़ में डूब गया है। पंजाब के 22 में से 9 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, जिनमें तरनतारन, अमृतसर, फाजिल्का, फिरोजपुर और संगरूर शामिल हैं।

नेशनल रेनफेड अथॉरिटी के पूर्व चेयरमैन और चंडीगढ़ स्थित सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (CRRID) के एडवाइजर, डॉ. जे. एस. सामरा ने रूरल वॉयस को बताया कि इस समय पंजाब की करीब तीन लाख एकड़ फसल पानी में डूबी हुई है। इसमें अधिकांश धान की फसल है, जबकि कुछ हिस्सों में कपास और चारे की फसलें हैं। इस बाढ़ से लगभग एक हजार करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है। वहीं, यमुना के कैचमेंट एरिया में भी भारी बारिश के चलते हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने के कारण बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। दिल्ली में यमुना नदी पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही।

डॉ. सामरा ने बताया कि सामान्य से तापमान में एक डिग्री की वृद्धि होने पर हवा में नमी का स्तर लगभग 7 फीसदी बढ़ जाता है। इस समय तापमान सामान्य से दो डिग्री अधिक है, जिससे हवा में नमी का स्तर करीब 15 फीसदी तक बढ़ गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि बारिश की बूंदों का आकार सामान्य 2 मिमी से बढ़कर 4 मिमी तक हो गया है। बूंदें भारी होने के कारण जब बादल आगे बढ़ते हैं तो हिमालय उन्हें रोकता है और पानी तेजी से बरसता है। सामान्य रूप से बारिश की तीव्रता 5 सेंटीमीटर प्रति घंटे होती है, लेकिन इस बार यह 10 सेंटीमीटर प्रति घंटे तक पहुंच गई है। यह स्थिति क्लाउडबर्स्ट जैसी है और फ्लैश फ्लड के रूप में सामने आ रही है। अधिक काइनेटिक एनर्जी से गिरता पानी पहले से गीली और नरम हो चुकी मिट्टी व चट्टानों को मडस्लाइड में बदल रहा है। यह सारी स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती है।

डॉ. सामरा के अनुसार, दोनों नदियों पर बने बांधों में ओवरफ्लो होने के कारण अधिक पानी छोड़ा जा रहा है। सामान्य तौर पर रेड लाइन तक पानी आने पर ही बांध से पानी छोड़ा जाता है, लेकिन इस बार अचानक बहुत अधिक पानी आने से बांधों से एक साथ ज्यादा पानी छोड़ना पड़ा, जिसका नतीजा भयानक बाढ़ के रूप में सामने आया है। वह बताते हैं कि दो साल पहले 2023 में सतलुज में अधिक पानी आने से मानसून की शुरुआत में ही बाढ़ की स्थिति बनी थी। हालांकि, उस साल जल्दी पानी उतर जाने से किसानों को दोबारा फसल बोने का मौका मिल गया था। लेकिन इस साल स्थिति अलग है क्योंकि फसल को दोबारा बोने का अवसर नहीं है। कई जगह धान की फसल पर पांच फीट तक पानी खड़ा है, जिससे भारी नुकसान की आशंका है।

डॉ. सामरा का कहना है कि आने वाले दिनों में इस तरह की असामान्य घटनाएं और बढ़ सकती हैं। साथ ही, बारिश का भौगोलिक पैटर्न भी बदल रहा है। इसी कारण लद्दाख और राजस्थान जैसे ठंडे या शुष्क रेगिस्तानी इलाकों में बाढ़ आई है, जबकि केरल और पूर्वोत्तर जैसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस साल कम बारिश हुई है।

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