सहकारिता में सुधार: सुशासन, पारदर्शिता और समृद्धि की नई दिशा

भारत में सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ऐतिहासिक सुधार लागू किए जा रहे हैं। 97वां संविधान संशोधन, सहकारिता मंत्रालय की स्थापना और बहु-राज्य सहकारी अधिनियम में संशोधन जैसे कदमों ने शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाया है। सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना और पीएसीएस को बहुउद्देशीय संस्था बनाने के प्रयास ग्रामीण समृद्धि और समावेशी विकास की दिशा में अहम साबित हो रहे हैं।

सहकारिता में सुधार: सुशासन, पारदर्शिता और समृद्धि की नई दिशा

संविधान के 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जो 15 फरवरी 2012 से लागू हुआ। इसमें तीन प्रमुख प्रावधान किए गए। ये हैं: (क) संविधान के भाग III के अनुच्छेद 19(1)(ग) में ‘सहकारी समितियां’ शब्द जोड़कर सहकारी समितियां बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया, (ख) सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 43बी जोड़ा गया और (ग) सहकारी समितियों के गठन, नियमन और उन्हें बंद करने के प्रावधानों के साथ भाग IXबी मे ‘सहकारी समितियां’ जोड़ा गया। 

इसे कानूनी चुनौती का भी सामना करना पड़ा। गुजरात उच्च न्यायालय ने 22 अप्रैल 2013 के अपने फैसले में कहा कि संविधान (97वां) संशोधन अधिनियम, 2011 द्वारा अनुच्छेद 243जेडएच से 243जेडटी वाले भाग IXबी को सम्मिलित करना संविधान के अनुच्छेद 368(2) के कारण अधिकारों से परे है। इस अनुच्छेद के तहत संशोधन को ज्यादातर राज्य विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक है। फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि यह निर्णय संविधान (97वां) संशोधन अधिनियम, 2011 के अन्य भागों को प्रभावित नहीं करेगा। हालांकि, एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई 2021 को अपने बहुमत निर्णय में माना कि भारत के संविधान का भाग IXबी केवल मल्टी-स्टेट सहकारी समितियों से संबंधित है। यह निर्णय मोदी सरकार द्वारा ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन को साकार करने के लिए 6 जुलाई 2021 को एक नए सहकारिता मंत्रालय के गठन के ठीक बाद आया।

नए मंत्रालय के गठन से सहकारी क्षेत्र में सुधारों पर ध्यान केंद्रित हुआ। सरकार की पहल समावेशी रही है और सहकारी समितियों के समूचे पारिस्थितिकी तंत्र को इसमें शामिल किया गया है। इसमें पैक्स (PACS) के लिए आदर्श उपनियम (मॉडल बायलॉज) बनाना भी शामिल है ताकि पारिस्थितिकी तंत्र का आधार मजबूत किया जा सके। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है कि इन आदर्श उपनियमों को सभी राज्य सरकारों ने अपनाया है। राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 में भी फाउंडेशन को मजबूत बनाना पहला रणनीतिक मिशन स्तंभ है। इन सुधारों ने पैक्स को बहुद्देश्यीय व्यावसायिक संस्थाओं में बदलने की एक व्यवस्था प्रदान की। मंत्रालय पैक्स के दरवाजे तक उत्पादों (जैसे अनाज भंडारण, मेडिकल स्टोर, एलपीजी वितरण आदि) और सेवाओं (सीएससी, अतिरिक्त शाखाएं खोलना) का एक विविध पोर्टफोलियो लेकर आया। इस तरह उन्हें अपने गांवों की भौगोलिक सीमाओं से परे सोचने के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें जीईएम (GEM) प्लेटफॉर्म पर लाकर तथा कई ई-बाजारों से जोड़कर संभावनाओं की एक नई दुनिया के साथ जोड़ा गया। नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (NCEL) और नेशनल कोऑपरेटिव ऑर्गेनिक्स लिमिटेड (NCOL) जैसे राष्ट्रीय फेडरेशन प्राथमिक समितियों के उत्पादों को वैश्विक बाजारों में भी ला सकते हैं।

इसके बाद मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज एक्ट, 2002 में संशोधन के माध्यम से व्यापक सुधार किए गए, जिसे केंद्र सरकार ने 3 अगस्त 2023 को औपचारिक रूप से अधिसूचित किया। मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज (संशोधन) एक्ट 2023 ने बहु-राज्य सहकारी समितियों में गवर्नेंस को मजबूत करने, पारदर्शिता बढ़ाने, जवाबदेही बढ़ाने और चुनावी प्रक्रिया में सुधार आदि के प्रावधान किए। बहु-राज्य सहकारी समिति नियम 2002 में भी संशोधन किया गया और संशोधित नियमों को 4 अगस्त 2023 को अधिसूचित किया गया। ये बदलाव सुधारों के प्रति सरकार की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। समय के साथ सहकारी समितियों में गवर्नेंस काफी कमजोर हो गया था। इसलिए इन सुधारों का मुख्य फोकस गवर्नेंस में सुधार और जवाबदेही लाना है ताकि सहकारी सदस्यों को अधिकतम लाभ मिल सके।

सहकारी चुनाव प्राधिकरण का गठन सबसे बड़ा गवर्नेंस सुधार 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243के में विधि प्रदत्त किसी प्राधिकरण या निकाय द्वारा सहकारी चुनाव के संचालन में मतदाता सूची तैयार करने के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिए प्राधिकरण की स्थापना की परिकल्पना की गई है। बहु-राज्य सहकारी समितियों के लिए एमएससीएस अधिनियम की धारा 45 के अंतर्गत एक सहकारी चुनाव प्राधिकरण (सीईए) की स्थापना गवर्नेंस में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन रहा है। इस प्राधिकरण का गठन एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम है। यह प्राधिकरण एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसे बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत समितियों के चुनाव कराने का कार्य सौंपा गया है। इसकी भूमिका में सदस्यों की सटीक मतदाता सूची बनाए रखना और समय पर चुनाव सुनिश्चित करना शामिल हैं। पहले समितियां स्वयं चुनाव कराती थीं, जिनमें अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता था। इस प्राधिकरण की शुरुआत के साथ यह प्रक्रिया कहीं अधिक पारदर्शी हो गई है। संशोधित अधिनियम ने बोर्ड में दो महिलाओं और एक अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य के लिए आरक्षण का भी प्रावधान किया है। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में सामाजिक समावेशन और कमजोर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित होती है।

सहकारी समितियों में चुनाव में पारदर्शिता
नई व्यवस्था के तहत प्रत्येक चुनाव कार्यक्रम को प्राधिकरण की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है। जिला कलेक्टर रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किए जाते हैं, और उनके साथ एक या एक से अधिक सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (एआरओ) होते हैं, जो राज्य सहकारी विभाग के अधिकारी होते हैं। कलेक्टर चुनाव संबंधी एक सूचना जारी करते हैं, जिसे समिति के कार्यक्षेत्र के समाचार पत्रों में भी प्रकाशित किया जाता है, ताकि सदस्यों को जानकारी मिल सके। इसके अतिरिक्त, चुनाव संबंधी सभी जानकारी समिति को अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करानी होती है। बहु-राज्यीय समितियों के सदस्य दो या तीन अलग-अलग राज्यों से संबंधित होते हैं, इसलिए पहले उन्हें अक्सर यह भी पता नहीं होता था कि चुनाव कब हो रहे हैं। यह पारदर्शी प्रक्रिया चुनाव में लोकतंत्र और भागीदारी को बढ़ावा दे रही है। प्राधिकरण की प्रमुख गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक मासिक नोट केंद्रीय रजिस्ट्रार की वेबसाइट (https://crcs.gov.in) पर भी उपलब्ध है।

कोऑपरेटिव सोसाइटी के बोर्ड का कार्यकाल पहले तीन से पांच वर्षों के बीच होता था, जिसे अब अधिनियम के तहत समान रूप से पांच वर्ष निर्धारित कर दिया गया है। यह एकरूपता बोर्ड के कामकाज में स्थिरता लाने और सुचारू बनाने में मदद करती है। एक और महत्वपूर्ण संशोधन यह है कि बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह अगला चुनाव होने तक बना नहीं रह सकता। इस तरह अब नए चुनाव अनिवार्य हो गए हैं। पहले कई समितियां कई वर्षों तक बिना चुनाव के काम कर रही थीं। कुछ सोसाइटी में तो आखिरी चुनाव नौ साल पहले हुए थे। अब चुनाव अनिवार्य हो जाने से जवाबदेही बढ़ी है। सदस्य अपने प्रबंधन से सवाल पूछने लगे हैं, जिससे शासन व्यवस्था में भी मजबूत आ रही है।

अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में चुनौतियां
इसमें तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा है:
(क) सोसाइटी के उपनियमों में संशोधन में देरी - जब 2023 में संशोधन अधिनियम लागू हुआ, तो सभी सोसाइटियों को छह महीने के भीतर उसके मुताबिक अपने उपनियमों में संशोधन करना आवश्यक था। लेकिन दो साल बाद भी कई सोसाइटियां ऐसा करने में विफल रही हैं। अनुपालन सुनिश्चित करना पहली बड़ी चुनौती है।
(ख) अधिकृत शेयर पूंजी - किसी सहकारी संस्था में सदस्यता के लिए शेयर धारण करना आवश्यक है। शेयरधारक ही मतदान कर सकते हैं या चुनाव लड़ सकते हैं। नॉमिनल सदस्य, जिनके पास शेयर नहीं भी हो सकते हैं, वे समिति की सेवाओं का लाभ तो उठा सकते हैं, ऐसे सदस्यों को चुनाव लड़ने और मतदान का अधिकार नहीं होता। दूसरे, सहकारिता के सिद्धांतों के अनुसार सदस्यों को समान रूप से योगदान देना और पूंजी को लोकतांत्रिक तरीके से नियंत्रित करना आवश्यक है। निर्धारित नियमों या स्थापित सिद्धांतों से अलग चलना कठिनाइयां पैदा करता है।
(ग) उपनियमों में अस्पष्टताएं - कई समितियों के उपनियमों में निम्नलिखित महत्वपूर्ण पहलुओं पर स्पष्टता का अभाव है:
(i) निर्वाचित होने वाले निदेशकों की संख्या: कुछ उपनियमों में न्यूनतम सात और अधिकतम 21 निदेशकों की अनुमति है। उपनियमों में निदेशकों की संख्या की एक रेंज बताने वाले ऐसे प्रावधान चुनावों के दौरान जटिलताएं पैदा करते हैं, क्योंकि चुनाव अधिसूचना में एक निश्चित संख्या की आवश्यकता होती है। ऐसी अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए ऐसे उपनियमों में संशोधन आवश्यक है।
(ii) निदेशक पद के लिए पात्रता: निर्वाचन अधिकारियों द्वारा नामांकन को अनावश्यक रूप से अस्वीकार किए जाने से बचने के लिए चुनाव लड़ने के स्पष्ट मानदंड या योग्यताएं निर्दिष्ट की जानी चाहिए।
(iii) निर्वाचन क्षेत्र का गठन और मतदान प्रक्रियाएं: यदि इन्हें स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया या निर्वाचन क्षेत्र का गठन न्यायसंगत नहीं है, तो चुनाव के दौरान विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। ये प्रावधान स्पष्ट होने चाहिए, क्योंकि निर्वाचन अधिकारी अक्सर ऐसे प्रश्न उठाते हैं जिनका उत्तर समितियां संतोषजनक ढंग से नहीं दे पाती हैं।
(iv) न्यूनतम स्तर के उत्पादों या सेवाओं का उपयोगः सदस्यों के लिए न्यूनतम स्तर की सेवाओं का लाभ उठाना आवश्यक है। इसे स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया जाना चाहिए क्योंकि इसकी अवहेलना करने पर समिति की सदस्यता समाप्त हो सकती है। कई उपनियमों में अक्सर इसका अभाव देखा गया है।
(घ)  चुनाव अनुरोध प्रस्तुत करने में देरी - बोर्ड के कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले चुनाव अनुरोध प्रस्तुत करना सोसाइटी के सीईओ और चेयरमैन की संयुक्त जिम्मेदारी है। लेकिन अक्सर इसमें देरी हो जाती है, जिससे चुनाव प्रक्रिया पूरी न होने के कारण बोर्ड के न होने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कई मामलों में केंद्रीय रजिस्ट्रार को आम सभा की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) बुलाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ता है। किसी सदस्य की मृत्यु, इस्तीफा, अयोग्यता या बोर्ड से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से होने वाली आकस्मिक रिक्ति की स्थिति में सीईओ से अपेक्षा की जाती है कि वह एक सप्ताह के भीतर प्राधिकरण को सूचित करें। जवाबदेही तय करने के लिए ऐसी समय-सीमा निर्धारित की गई है।

चुनाव संचालन में प्रगति
11 मार्च 2024 को सहकारी चुनाव प्राधिकरण (सीईए) की अधिसूचना जारी होने के बाद से लगभग 160 चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं, जबकि लगभग 60 समितियों में चुनाव अभी जारी हैं। अनुमान है कि आने वाले समय में प्राधिकरण को एक वर्ष में 250-300 समितियों के चुनाव कराने पड़ सकते हैं। हालांकि प्राधिकरण के बारे में सदस्यों में जागरूकता लगातार बढ़ रही है। चुनाव संचालन के लिए आवश्यक विवरण और फैक्टशीट प्रदान करने के लिए समितियों से पत्रों और ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा रहा है। इन सुधारों से गवर्नेंस में उल्लेखनीय सुधार होने की उम्मीद है।

सहकारिता में पेशेवरों की आवश्यकता
सहकारिता क्षेत्र को सही कौशल और दृष्टिकोण वाले पेशेवरों की आवश्यकता है। कॉरपोरेट व्यवस्थाओं के विपरीत, सहकारिता में सहयोग और सामूहिक विकास की भावना की आवश्यकता होती है। इस मानसिकता को पोषित करने के उद्देश्य से समर्पित पेशेवर तैयार करने के लिए सरकार ने त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की है। कोऑपरेटिव मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के फैकल्टी सदस्यों को भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है। सोसाइटी के सचिवों, कोषाध्यक्षों, निदेशकों और पदाधिकारियों के लिए गहन प्रशिक्षण का प्रस्ताव रखा गया है। उदाहरण के लिए, प्रत्येक निदेशक को अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए अनिवार्य रूप से 15-दिवसीय इंडक्शन कार्यक्रम से गुजरना होगा।

सहकारी संरचना के सभी स्तरों के लिए प्रशिक्षण अब आवश्यक है ताकि लोगों में अवसरों की उचित व्यावसायिक समझ हो, सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन मिले और सहकारी व्यवसायों का सफल प्रबंधन सुनिश्चित हो सके। पैक्स का डिजिटलीकरण और डेटा को एक ही प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित करने से दक्षता आती है, लेकिन साइबर सुरक्षा के पहलुओं से निपटने और उचित सुरक्षा उपाय बनाने आदि के लिए मैनपावर की आवश्यकता हो सकती है।

निर्यात में बढ़ती रुचि के साथ सहकारी समितियां भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं। हालांकि, निर्यात के लिए कड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों और निर्यात प्रोटोकॉल का ज्ञान आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि केले या आम का निर्यात करना है तो सहकारी समिति को आयातक देश की फाइटो-सैनिटरी आवश्यकताओं को समझना होगा और उसके अनुसार कृषि पद्धतियां अपनानी होंगी। त्रिभुवन विश्वविद्यालय के विशेष पाठ्यक्रम इस प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं। सहकारी बैंकिंग और ऋण समितियों को जोखिम प्रबंधन, नकदी प्रवाह प्रबंधन और अधिशेष निधि के निवेश में भी विशेषज्ञता की आवश्यकता है। इसके लिए राज्यों के सभी सहकारी संस्थानों को एक छत्र के नीचे आना होगा, विश्वविद्यालय से संबद्ध होना पड़ेगा, मानक पाठ्यक्रमों का पालन करना होगा और देश भर में एक समान कौशल विकास प्रणाली स्थापित करनी होगी।

सहकारिता को एक नई दिशा
एक समय ऐसा भी था जब सहकारिता के विकास की गति काफी धीमी पड़ गई थी। हालांकि नए मंत्रालय के गठन के साथ, प्रधानमंत्री और सहकारिता मंत्री के नेतृत्व में, कम समय में ही बहुत प्रगति हुई है। सहकारिता क्षेत्र को अब नई दिशा और गति मिली है। साथ ही, सदस्यों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। सहकारी समितियों में सकारात्मकता की भावना बढ़ रही है और सदस्यों को विश्वास है कि वे और भी बड़े लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। मुख्य ध्यान आर्थिक विकास पर है। यदि सहकारी सदस्यों की आय में मामूली वृद्धि भी हो सके तो यह राष्ट्र की प्रगति में एक बड़ा योगदान होगा। 
(लेखक कोऑपरेटिव इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरपर्सन हैं। यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

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