जीरा के भाव ने रचा इतिहास, पहली बार 50 हजार रुपये के पहुंचा पार

जीरा की तेजी के पीछे कम उत्पादन के अलावा घरेलू और वैश्विक बाजार में इसकी बढ़ती मांग भी है। जानकारों का कहना है कि अधिक मांग की वजह से कीमतों में लगातार तेजी दर्ज की जा रही है। भारत में कम उपज की वजह से वैश्विक कीमतें भी प्रभावित होंगी। जीरा उत्पादन में भारत विश्व में पहले नंबर पर है। भारत में गुजरात और राजस्थान में ही जीरा का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। गुजरात की ऊंझा मंडी में भी जीरा का भाव 45 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है।

जीरा के भाव ने रचा इतिहास, पहली बार 50 हजार रुपये के पहुंचा पार

पिछले महीने बेमौसम बारिश की वजह से जीरे की फसल भी प्रभावित हुई है। इसकी वजह से उत्पादन में कमी आई है। इसका असर जीरे के भाव पर दिखने लगा है। राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता मंडी में सोमवार को जीरा ने इतिहास रच दिया। देश की किसी मंडी में पहली बार जीरा 9,000 रुपये की सबसे बड़ी उछाल दर्ज करते हुए 50 हजार रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। वहीं देश की सबसे बड़ी जीरा मंडी गुजरात के ऊंझा में भी जीरा का अधिकतम भाव 45 हजार रुपये प्रति क्विंटल रहा।

जीरा की तेजी के पीछे कम उत्पादन के अलावा घरेलू और वैश्विक बाजार में इसकी बढ़ती मांग भी है। जानकारों का कहना है कि अधिक मांग की वजह से कीमतों में लगातार तेजी दर्ज की जा रही है। भारत में कम उपज की वजह से वैश्विक कीमतें भी प्रभावित होंगी। जीरा उत्पादन में भारत विश्व में पहले नंबर पर है। भारत में गुजरात और राजस्थान में ही जीरा का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। गुजरात की ऊंझा मंडी में भी जीरा का भाव 45 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। सोमवार को यहां न्यूनतम भाव 35 हजार रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किया गया। 

रूरल वॉयस से बातचीत में दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और नाबार्ड कृषि निर्यात सुविधा केंद्र, जोधपुर के संस्थापक निदेशक और जीरा किसानों के लिए बायोटेक किसान प्रोजेक्ट चलाने वाले भगीरथ चौधरी इस तेजी पर कहते हैं, “पिछले तीन-चार साल में जीरे के भाव में शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल जीरा 37 हजार रुपये प्रति क्विंटल के पार गया था, इस बार 50 हजार रुपये के पार गया है। 2018 तक इसका भाव 12-13 हजार रुपये प्रति क्विंटल ही देखने को मिल रहा था।”

उनका कहना है, इसके फंडामेंटल को अगर आप देखें तो बाजार किसानों की उपज की कीमत को उन तक पहुंचने नहीं दे रहा था। जबकि उपभोक्ताओं को तो यह महंगी कीमत पर ही मिल रहा था। किसानों को इसकी सही कीमत इससे पहले कभी मिली ही नहीं। बाजार कीमत और किसानों को मिलने वाली कीमत के भारी अंतर को कम करने के लिए हमने पिछले चार-पांच साल में काफी मेहनत की है। हमने जीरे की गुणवत्ता सुधारने पर भी काफी ध्यान दिया। यही वजह है कि आज पश्चिमी राजस्थान में कीटनाशक रहित 20 हजार टन जीरे की सीधी खरीद बड़ी मसाला कंपनियां कर रही हैं। गुणवत्ता में सुधार और कीमत को कंपनियों से सीधे किसानों तक पुहंचाने की जो यह प्रक्रिया है इसकी वजह से भी लगातार सालाना भाव में तेजी दर्ज की जा रही है।”  

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भगीरथ चौधरी के मुताबिक, इस साल कीमतों में इतनी बड़ी तेजी के पीछे एक वजह यह भी है कि जीरा का बुवाई रकबा घटा है, खासकर राजस्थान में। नवंबर-दिसंबर में इसे बोया जाता है। उस समय राजस्थान में इस बार गर्मी ज्यादा थी जिसकी वजह से किसानों ने जीरा की जगह सरसों बुवाई को तवज्जो दी क्योंकि सरसों की कीमत उस समय ज्यादा थी। उसके बाद फरवरी में तापमान में अचानक से बढ़ोतरी हो गई। फिर मार्च में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हो गई। जीरा काफी संवेदनशील फसल है। इसे छुईमुई फसल भी कहा जाता है। तापमान में सामान्य से थोड़ा भी ज्यादा उतार-चढ़ाव होने का असर इस पर पड़ता है। इसकी वजह से नुकसान ज्यादा हुआ और आपूर्ति प्रभावित हुई। इसकी वजह से भी कीमतें चढ़ी हैं।

उनका कहना है कि उत्पादन में कमी को देखते हुए किसानों ने भी मंडियों में जीरे की आपूर्ति कम कर दी जिससे कीमतों में उछाल दर्ज किया गया। साथ ही वैश्विक मांग में भी तेजी आई है क्योंकि तुर्की जैसे मध्य एशिया के जीरा उत्पादक देशों में भी मौसम की वजह से उत्पादन कम हुआ है। उनके मुताबिक, अभी जीरा कुछ समय तक 45-50 हजार रुपये के स्तर पर स्थिर रहेगा। कीमतों में तेजी की वजह से इस साल इसका बेंचमार्क प्राइस भी 32 हजार रुपये के करीब रहने का अनुमान है। पिछले साल बेंचमार्क प्राइस 25 हजार रुपये प्रति क्विंटल रहा था। पिछले साल देश में 3.88 लाख टन जीरा का कुल उत्पादन हुआ था।

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