गुजरात के किसानों की हाईफार्म पाठशाला के साथ आलू खेती में नई पहल

हाईफार्म पाठशाला एक अनोखा फार्म स्कूल बनकर उभरा है, जिसका उद्देश्य ज्ञान को कक्षा से निकालकर सीधे खेतों में पहुँचाना है। पिछले सीजन में, 17 माइक्रो पॉकेट्स में फैले 30+ प्रदर्शन खेतों के माध्यम से 7,000 से अधिक किसानों ने इस गहन, व्यवहारिक शिक्षण में भाग लिया।

गुजरात के किसानों की हाईफार्म पाठशाला के साथ आलू खेती में नई पहल
हाईफन फूड्स के मैनेजिंग डायरेक्टर और ग्रुप सीईओ हरेश करमचंदानी और हाईफार्म के सीईओ, एस. सौंदरराजन 'पाठशाला' में भाग लेने वाले एक किसान को सर्टिफिकेट देते हुए

गुजरात में इस सप्ताह एक ऐतिहासिक पड़ाव हासिल हुआ, जब हाईफार्म (हाईफन फूड्स की एग्री-बिज़नेस यूनिट) ने पहला “हाईफार्म पाठशाला दीक्षांत समारोह” आयोजित किया। यह सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि एक आंदोलन का उत्सव था—जहाँ हाईफार्म के किसान बदलाव के अग्रणी बनकर एकजुट हुए। यह वह क्षण था जब परंपरागत ज्ञान ने आधुनिक तकनीकों से मेल खाकर खेती को नई दिशा दी। यह “बैक-टू-स्कूल” मॉडल एक उच्च गुणवत्ता वाली, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी आलू व्यवस्था का निर्माण कर रहा है, जो अतीत का सम्मान करते हुए भविष्य को गले लगाता है।

पाठशाला मॉडल
हाईफार्म पाठशाला एक अनोखा फार्म स्कूल बनकर उभरा है, जिसका उद्देश्य ज्ञान को कक्षा से निकालकर सीधे खेतों में पहुँचाना है। पिछले सीजन में, 17 माइक्रो पॉकेट्स में फैले 30+ प्रदर्शन खेतों के माध्यम से 7,000 से अधिक किसानों ने इस गहन, व्यवहारिक शिक्षण में भाग लिया।
बीज रोपण से पहले मिट्टी परीक्षण और बीज उपचार से लेकर, फसल चक्र के दौरान संतुलित पोषण और सटीक सिंचाई तक, तथा अंत में कटाई की ऐसी पद्धतियों तक, जो गुणवत्ता बढ़ाएँ और नुकसान घटाएँ—हर तकनीक को विशेषज्ञों ने किसानों के साथ मिलकर समझाया, प्रदर्शित किया और अपनाया।

किसानों पर प्रभाव
परिणाम परिवर्तनकारी रहे। पाठशाला किसानों ने ज्ञान को व्यवहार में बदलते हुए ड्रिप सिंचाई का बेहतर उपयोग किया और पानी की खपत में 40% तक की बचत की। लागत में 12–15% की कमी आई और अनुकूल रोपण तकनीकों से बीज की खपत प्रति एकड़ कम हुई। इन फायदों ने लाभप्रदता को बढ़ाया और गुणवत्ता में सुधार लाया—मजबूत कंद, अधिक ठोस सामग्री और कम आकारहीन या हरे आलू।
मेहसाणा के किसान राकेश पटेल के लिए यह अनुभव जीवन बदलने वाला रहा। उन्होंने कहा, “पानी की बचत ही हमारे लिए बड़ी राहत है। प्रति एकड़ सात बोरी बीज की बचत सीधे मेरे लाभ में जुड़ती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था मेरी फसल की गुणवत्ता। इस साल मैंने पाठशाला की रीजेनरेटिव प्रैक्टिस केवल थोड़ी ज़मीन पर आजमाई थी, और नतीजे चौंकाने वाले थे। अगले साल मैं इस सीख को अपने पूरे खेत पर लागू करूँगा।”
हाईफार्म पाठशाला दीक्षांत समारोह गर्व का क्षण था। किसान सिर ऊँचा करके, कंधों पर दुपट्टा और हाथों में प्रमाणपत्र लिए मंच पर चले। परिवारों, साथियों और कृषि उद्योग के नेताओं ने उनका उत्साह बढ़ाया। यह केवल शिक्षण की मान्यता नहीं थी, बल्कि यह घोषणा थी कि ये किसान अपने समुदायों के ज्ञान-प्रतीक और प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।

हाईफार्म पाठशाला में भाग लेने वाले किसान।

हाईफन फूड्स के प्रबंध निदेशक एवं समूह सीईओ हरेश करमचंदानी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “हाईफार्म का मिशन स्पष्ट है—हमारे साझेदार किसानों के जीवन की गुणवत्ता को उनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत करके ऊपर उठाना। पाठशाला सिर्फ प्रशिक्षण नहीं है; यह सशक्तिकरण, आत्मविश्वास और समुदाय-निर्माण है। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक को मिलाकर गुजरात के किसान बदलाव के चैंपियन बन चुके हैं, जो भारत की आलू कहानी को हमारी मिट्टी से वैश्विक बाज़ार तक ले जा रहे हैं। जब किसान उठते हैं, तो देश उठता है।”
गुजरात के किसानों के लिए हाईफार्म पाठशाला एक प्रशिक्षण कार्यक्रम से कहीं अधिक है—यह उनकी यात्रा का विश्वसनीय साथी है, जो सुनिश्चित करता है कि हर बूँद पानी, हर बीज और हर रुपया अधिक मूल्य पैदा करे। अब ये स्नातक किसान अपने गाँव लौटकर आधुनिक खेती के राजदूत बनेंगे और दिखाएँगे कि छोटे-छोटे बदलाव भी बड़े परिवर्तन ला सकते हैं।
हाईफार्म के सीईओ एस. सौंदरराजन ने गर्व के साथ कहा, “इस साल ने हमें छोटे कदमों की ताकत दिखाई है। मिट्टी परीक्षण, सटीक सिंचाई, उचित दूरी—छोटी से छोटी प्रैक्टिस भी मिलकर बड़ा असर करती है। ये न सिर्फ लागत घटाते हैं, बल्कि पैदावार और गुणवत्ता दोनों बढ़ाते हैं। किसान की सालभर की मेहनत अंत में क़्वालिटी से आँकी जाती है, और इसी वजह से हम हर कदम पर अपने किसानों के साथ चलते हैं। जब क़्वालिटी बढ़ती है, तो हमारे किसान भी आगे बढ़ते हैं। यही पाठशाला की असली भावना है—ऐसा ज्ञान जो सीधे परिणाम में बदलता है।”
हाईफार्म ने 2028–29 तक 30,000 किसानों से सहयोग और 10 लाख टन आलू की खरीद का साहसिक लक्ष्य रखा है। पाठशाला की सफलता साबित करती है कि प्रगति की शुरुआत किसान के खेत से होती है।

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