उचित तकनीक के इस्तेमाल से कर सकते हैं उर्वरकों की बचत

आईएआरआई पूसा में एग्रोऩॉमी डिवीजन के कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रवीण कुमार उपाध्याय ने बताया कि सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के चार तरीके हैं। इनका मुख्य उद्देश्य है कि किसान फसलों में उर्वरकों का बेहतर इस्तेमाल करे। उर्वरकों का इस्तेमाल तब किया जाए जब पौधों को जरूरत हो

उचित तकनीक के इस्तेमाल से कर सकते हैं उर्वरकों की बचत

अगर पौधों में उर्वरकों का उचित इस्तेमाल किया जाए तो इससे न सिर्फ उर्वरकों की बचत होगी बल्कि पर्यावरण प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा। यह तभी संभव है जब फसलों में पोषक तत्वों का उचित प्रबंधन हो। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई)  पूसा ने किसानों को चार तकनीक का उपयोग करने की सलाह दी है। आईएआरआई पूसा में एग्रोऩॉमी डिवीजन के कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रवीण कुमार उपाध्याय ने बताया कि सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के चार तरीके हैं। इनका  मुख्य उद्देश्य है कि किसान फसलों में उर्वरकों का बेहतर इस्तेमाल करे। उर्वरकों का इस्तेमाल तब किया जाए जब पौधों को जरूरत हो।

1.ग्रीन सीकर

डॉ उपाध्याय का कहना है  ग्रीन सीकर फसलों में  सामान्यीकृत अंतर वनस्पतिक सूचकांक  (जनरलाइज डिस्टेंस बाटिनकल  इंडेक्स) के आधार पर  पौधों में नाइट्रोजन की जरूरत को सुनिश्चित करता है। आजकल इसका प्रयोग बहुतायत से हो रहा है।  इस उपकरण के इस्तेमाल से पाया गया कि यह  फसलों में नाइट्रोजन के प्रयोग को काफी कम कर सकता है। इस प्रकार आवश्यकता से अधिक उर्वरक के इस्तेमाल और फसल की लागत को कम किया जा सकता है। ग्रीन सीकर खेती  में लगभग 20 फीसदी नाइट्रोजन बचाता है।

  1. क्लोरोफिल मीटर

डॉ प्रवीण  के अनुसार  क्लोरोफिल मीटर पारंपरिक पोषण स्तर मूल्यांकन उपकरणों की तुलना में अधिक विश्वसनीय और आसान है। यह पत्तियों के नाइट्रोजन स्तर के आधार पर क्लोरोफिल की मात्रा को दर्शाता है। धान की पत्तियों में जब क्लोरोफिल मीटर का औसत मान 37.5 हो तो 30 किग्रा नाइट्रोजन का प्रयोग करना चाहिए। गेहूं की पत्तियों में मान 42 होने पर उसमें 30 किग्रा नाइट्रोजन मिलाने की सलाह दी जाती है। क्लोरोफिल मीटर के प्रयोग से हम लगभग 30 किलोग्राम/हेक्टेयर तक नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं।

3- निर्णय समर्थन प्रणालियां (Decision support systems)

न्यूट्रिएंट एक्सपर्ट®फसलों में कंप्यूटर आधारित सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के लिए डिसीजन सपोर्ट साफ्टवेयर है। यह साधन परस्पर संवादात्मक विधि से फसलों में पोषण प्रबंधन के 4आर (सही समय, सही मात्रा, सही विधि एवं सही स्रोत) की संस्तुति करता है।

4- लीफ कलर चार्ट (एलसीसी)

डॉ उपाध्याय  का कहना है लीफ कलर चार्ट सुविधाजनक/सुलभ उपकरण भी है जिसमें प्लास्टिक की पट्टी में हल्के हरे से गहरे हरे रंग के कई शेड होते हैं। लीफ कलर चार्ट का उपयोग वास्तविक समय और फसल की जरूरत आधारित नाइट्रोजन प्रबंधन के लिए किया जाता है। फसलों में लीफ कलर चार्ट का उपयोग करने के लिए मक्का, धान, गेहूं के सबसे पहले कम से कम 10 ऐसे पौधों का चयन करें जो रोगों और कीटों से मुक्त हों और जिनकी पत्तियां पूरी तरह से खुली हों। सुबह (8-10 बजे के बीच) लीफ कलर चार्ट का उपयोग करने का प्रयास करें और यह भी सुनिश्चित करें कि देखते समय सीधी धूप पत्तियों पर न पड़े अन्यथा पत्ती का रंग चार्ट से मेल नहीं खाता। कोशिश ये होनी चाहिए कि एक ही व्यक्ति लीफ़ कलर चार्ट द्वारा पत्तियों के रंग को मिलाये।

तालिका 1. धान में लीफ कलर चार्ट की अनुशंसा निम्नलिखित है

 

धान के प्रकार

लीफ कलर चार्ट वैल्यू

प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन

खरीफ़ धान

गैर बासमती

≤ 4

28

खरीफ़ धान

बासमती

≤ 3

23

धान की सीधी बुवाई

गैर बासमती

≤ 3

23

बोरो धान

गैर बासमती

≤ 4

35

इसी तरह  गेहूं की फसल में जो निर्धारित उर्वरक की मात्रा है उसमें से नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस और पोटास की कुल मात्रा बुवाई के समय दें। यदि गेहूं की बुवाई निर्धारित समय से की गई है तो 46 किग्रा./हे. अथवा यदि बुवाई देरी से की गई है तो 28 किग्रा./हे. नाइट्रोजन पहली सिंचाई पर दें तथा बाकी बचा हुआ लीफ़ कलर चार्ट के निर्धारण के अनुसार दें।  इससे नाइट्रोजन की बचत होगी। मक्का की फसल में इसका इस्तेमाल करके किसान नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं।

डॉ उपाध्याय ने कहा कि इन नई तकनीकों को अपनाकर हम उर्वरकों की बचत कर सकते हैं और अपनी उत्पादन लागत कम करने के साथ पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचा सकते हैं। प्रत्येक स्थान पर मिट्टी की जलवायु, भौतिक और रासायनिक परिस्थितियों के कारण होने वाली भिन्नता के आधार पर उपलब्ध तकनीकों के उपयोग का मानकीकरण करके किसानों की आय में वृद्धि करके उर्वरकों का उचित उपयोग किया जा सकता है।

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