ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस सुधार से बीज उद्योग में सालाना 800 करोड़ रुपये की वृद्धि संभव: FSII

एफएसआईआई की रिपोर्ट के अनुसार, व्यापक नीतिगत और नियामक सुधारों से भारत का 30,000 करोड़ रुपये का बीज उद्योग हर साल 800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मूल्य सृजित कर सकता है। इसके अलावा आरएंडडी निवेश में 13–15% की बढ़ोतरी कर सकता है और 2035 तक वैश्विक बीज व्यापार में अपनी हिस्सेदारी 1% से बढ़ाकर 10% तक कर सकता है। इससे किसानों को बेहतर बीज और तकनीक जल्दी मिल सकेगी।

ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस सुधार से बीज उद्योग में सालाना 800 करोड़ रुपये की वृद्धि संभव: FSII

अगर नीति और नियमों में व्यापक सुधार किया जाए, तो भारत के 30,000 करोड़ रुपये के बीज उद्योग से सालाना 800 करोड़ रुपये से ज्यादा अतिरिक्त आर्थिक मूल्य पैदा किया जा सकता है। इससे किसानों तक बेहतर किस्में जल्दी पहुंचेंगी और भारत का वैश्विक बीज व्यापार में हिस्सा लगभग 1% से बढ़कर 2035 तक 10% तक पहुंच सकता है। फेडरेशन ऑफ़ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) की एक नई रिपोर्ट में यह बताया गया है।

“भारतीय बीज उद्योग में व्यापार करने में आसानी: समग्र नीतिगत सुधारों के माध्यम से विकास को गति देना” नामक इस रिपोर्ट को FSII की 9वीं वार्षिक आम बैठक और सम्मेलन के दौरान लॉन्च किया गया। रिपोर्ट बताती है कि अगर नियमों को आसान बनाया जाए तो भारत की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा। इन सुधारों से एक औसत बीज कंपनी हर साल 3–5 नई किस्में पेश कर सकती है, अनुसंधान और विकास में ज्यादा निवेश कर सकती है और किसानों तक नई तकनीक जल्दी पहुंचा सकती है।

तमिलनाडु के प्रगतिशील किसान रविचंद्रन वांचिनाथन ने किसानों की नज़र से इस मुद्दे की अहमियत बताई। उन्होंने कहा, “किसान जीएम फसलों और दूसरी नई तकनीकों की माँग कर रहे हैं, जो हमें जलवायु परिवर्तन, कीट-पतंगों और बीमारियों से लड़ने में मदद कर सकें। हम ऐसी नीतियाँ चाहते हैं जो हमें वैज्ञानिक प्रगति का फायदा लेने दें, हमें पीछे न छोड़ें। अगर बाज़ार में ज़्यादा प्रतिस्पर्धा और विकल्प होंगे तो हमें अच्छे क्वालिटी के बीज समय पर मिलेंगे। पीछे मुड़कर देखें तो हरित क्रांति की सफलता इसलिए संभव हुई क्योंकि उस समय भ्रामक प्रचार नहीं था।”

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बीज उद्योग को हर साल करीब 300 करोड़ रुपये का नुकसान नियमों में बाधाओं के कारण होता है, खासकर लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन में देरी के कारण। इसके अलावा, अनावश्यक किस्म परीक्षण, राज्यों और केंद्र के नियमों में असंगति और जटिल प्रक्रियाएं विशेषकर MSMEs को प्रभावित करती हैं।

पीपीवीएफआरए (PPVFRA) के चेयरपर्सन डॉ. त्रिलोचन मोहापात्रा ने कहा कि बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की सुरक्षा इन बाधाओं को दूर करने की कुंजी है। उन्होंने कहा, “भारत ने इस क्षेत्र में अच्छी प्रगति की है और आगे बढ़ने के लिए एक मज़बूत IP ढांचा बेहद ज़रूरी है। ब्रीडर्स और किसानों के अधिकारों की रक्षा न सिर्फ़ रिसर्च में निवेश को बढ़ावा देती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि नई तकनीक बिना देर किए किसानों तक पहुँचे। IP सुरक्षा के साथ-साथ, आवेदनों की समय पर मंजूरी भी उतनी ही अहम है और यही हमारी अथॉरिटी की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।”

रिपोर्ट में तत्काल सुधार की सिफारिश की गई है, नियमों का डिजिटलीकरण, “वन नेशन, वन लाइसेंस” की शुरुआत, और राज्यों में असंगत नियमों और किस्म परीक्षण को समान बनाना। FSII का अनुमान है कि इससे उद्योग को सालाना 382–708 करोड़ की बचत होगी, R&D में 13–15% की वृद्धि होगी और नई किस्में जल्दी आएंगी।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव (बीज) अजीत के. साहू ने कहा, “सरकार बीज क्षेत्र की वृद्धि के लिए सभी चुनौतियों को दूर करने की दिशा में काम कर रही है। SATHI जैसी पहल बीजों की ट्रेसबिलिटी को और मज़बूत बनाएगी और किसानों तक अच्छी क्वालिटी के बीज समय पर पहुँचाएगी। मैं बीज उद्योग का स्वागत करता हूँ कि वह वैल्यू चेन अप्रोच अपनाए और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप फॉर एग्रीकल्चर वैल्यू चेन डेवलपमेंट (PPPAVCD) जैसे कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग ले।”

नियमों और कानूनों के तालमेल पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सरकार अलग-अलग कानूनों जैसे 1966 का सीड एक्ट और PPVFRA एक्ट को मिलाकर एक व्यापक ढांचा बनाने पर विचार कर रही है। उन्होंने बताया, “ड्राफ्ट सीड बिल पर काम चल रहा है और इसे जल्द ही लाया जाएगा।”

वैज्ञानिक और नियामक दृष्टिकोण जोड़ते हुए, आईसीएआर (ICAR) के सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डी.के. यादव ने मज़बूत पब्लिक–प्राइवेट सहयोग की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “भारत का निजी क्षेत्र अहम योगदान दे रहा है और पब्लिक सेक्टर को अच्छी तरह से पूरक कर रहा है। सरकार सक्रिय रूप से प्रयास कर रही है और ज़रूरत है कि पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर मिलकर काम करें, ताकि बौद्धिक संपदा जैसी चुनौतियों का समाधान किया जा सके।”

अजय राणा, FSII के अध्यक्ष और सवाना सीड्स के CEO & MD ने कहा, “हमारे सर्वे से पता चलता है कि नियमों की बाधाओं के कारण हर साल 800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है। भारत की 54% से अधिक बीज कंपनियां MSMEs हैं, जिनके लिए अनुपालन लागत सालाना लगभग 64 लाख रुपये है। अगर हम लाइसेंसिंग को एकीकृत करें और प्रक्रियाओं को डिजिटाइज करें, तो 382–708 करोड़ रुपये की बचत होगी, R&D में 15% तक वृद्धि होगी और भारत वैश्विक बीज बाजार में 10% हिस्सेदारी हासिल कर सकता है। इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि इस क्षेत्र में हजारों नई नौकरियां भी पैदा होंगी।”

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