जीएम सरसों की रिलीजः एक प्रगतिशील कदम

जीईएसी की सिफारिशों पर सरकार ने हाल में जीएम सरसों की हाइब्रिड किस्म डीएमएच 11 को जो मंजूरी दी है, वह वास्तव में एक बड़ा फैसला है। यह हमारे किसानों और देश के हित में है। जीएम यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर लंबे समय से चल रहे अवैज्ञानिक प्रतिबंध को हटाने का यह निर्णय आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ने की सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है। यह हमारे वैज्ञानिक समुदाय और किसानों की बहुप्रतीक्षित आकांक्षाओं को भी पूरा करता है जो इस तरह की इनोवेटिव टेक्नोलॉजी के फायदे उठाना चाहते हैं

जीएम सरसों की रिलीजः एक प्रगतिशील कदम

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन जीईएसी (GEAC) की सिफारिशों पर सरकार ने हाल में जीएम सरसों की हाइब्रिड किस्म DMH 11 को जो मंजूरी दी है, वह वास्तव में एक बड़ा फैसला है। यह हमारे किसानों और देश के हित में है। जीएम यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर लंबे समय से चल रहे अवैज्ञानिक प्रतिबंध को हटाने का यह निर्णय आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ने की सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है। यह हमारे वैज्ञानिक समुदाय और किसानों की बहुप्रतीक्षित आकांक्षाओं को भी पूरा करता है जो इस तरह की इनोवेटिव टेक्नोलॉजी के फायदे उठाना चाहते हैं।

कुछ लोग इसे लेकर जो डर जता रहे हैं वह वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है। सच कहा जाए तो इस तरह की आपत्तियां नई नहीं हैं। 1960 के दशक के उत्तरार्ध में हरित क्रांति के जरिए खाद्य के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के मकसद से जब हमने गेहूं और चावल की ड्वार्फ बीजों का आयात किया था तब भी ऐसी आपत्तियां जताई गई थी। मेरे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का प्रमुख रहते जब बीटी कॉटन रिलीज किया गया था तब भी मुझे ऐसी आपत्तियों का सामना करना पड़ा था। इन किस्मों के नतीजे दुनिया भर में सर्वविदित हैं। आज हम इन मामलों में न सिर्फ आत्मनिर्भर हैं बल्कि बड़े निर्यातक भी हैं।

विज्ञान आधारित क्रांतियों ने हमारे देश को वह आत्म सम्मान और वैश्विक पहचान दिलाई है जिसकी बेहद आवश्यकता थी। हम आज कई कृषि उपज के बड़े निर्यातक हैं जिनमें अनाज और कपास भी शामिल हैं। हम इनका साल में 50 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करते हैं। यह सब सरकार की सही नीतियों, श्रेष्ठ संस्थाओं की स्थापना, सक्षम मानव संसाधन तैयार करने, प्रोग्रेसिव किसान तैयार करने और वैश्विक साझेदारी मजबूत करने की वजह से संभव हो सका है।

प्राकृतिक संसाधनों (मिट्टी, पानी, बायोडायवर्सिटी) के अत्यधिक दोहन, फैक्टर उत्पादक घटने, सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने की जल्दी, खासकर गरीबी दूर करने और भूख की समस्या खत्म करने, जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों के समय पर समाधान जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक इनोवेशन पर अधिक निर्भरता और उनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल सर्वश्रेष्ठ विकल्प जान पड़ता है। इस लिहाज से जीएम खाद्य फसलें हमारे राष्ट्र के हित में हैं। जेनेटिकली मॉडिफाइड मक्का, सोयाबीन, कपास, टमाटर और कनोला प्रमुख फसलों में हैं जिनकी विश्व में बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। जीएम फसलों की इस समय करीब 20 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती। भारत के अलावा अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फिलिपींस, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में इनकी खेती हो रही है।

जहां तक ब्रासिका (Brassica) की बात है तो एक करोड़ हेक्टेयर (कुल का लगभग 24%) से अधिक क्षेत्र 35 जीएम इवेंट के तहत है, जिसकी कॉमर्शियल खेती अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में होती है। भारत अभी खाद्य तेलों की कमी (लगभग 55-60%) को पूरा करने के लिए हर साल करीब 130 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करता है, जिस पर 1.17 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं।

रोचक बात यह है कि इसमें से 20 से 25 लाख टन सोयाबीन तेल और 10 से 15 लाख टन कनोला तेल जेनेटिकली मॉडिफाइड होता है। इस तरह हम जीएम तेल पहले ही खा रहे हैं। इसके अलावा 15 लाख टन जीम कॉटन ऑयल का घरेलू उत्पादन होता है। यह बात वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुकी है कि रिफाइंड तेल खाने पर मनुष्य के शरीर में किसी तरह का प्रोटीन नहीं जाता है। इस तरह जीएम खाद्य तेल का इस्तेमाल सेहत के लिहाज से पूरी तरह सुरक्षित है।

हमारे किसानों की एक बड़ी समस्या यह है कि सरसों की उत्पादकता कम है। यह 1260 किलो प्रति हेक्टेयर के आसपास लंबे समय से स्थिर है, जबकि वैश्विक औसत 2000 किलो प्रति हेक्टेयर है। कनाडा, चीन और ऑस्ट्रेलिया में कनोला की उत्पादकता भारत की तुलना में लगभग 3 गुना ज्यादा है क्योंकि वहां जीएम हाइब्रिड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है।

अरसे से सरसों हमारी प्रमुख तिलहन फसल है। मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में 60 से 70 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। इस तरह जीएम सरसों हाइब्रिड के उत्पादन की अनुमति देने के सरकार के फैसले से हमारी उत्पादकता बढ़ाने और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करने में मदद मिलेगी। इसलिए कृषि मंत्रालय और आईसीएआर को तेजी से आगे बढ़ना चाहिए और मौजूदा रबी सीजन में हाइब्रिड डीएमएच 11 किस्म के उपलब्ध बीजों का परीक्षण करना चाहिए। यह परीक्षण सरसों की खेती वाले इलाकों में कुछ चुने हुए किसानों के खेतों में किया जाना चाहिए और अगले साल इसका क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए अच्छी क्वालिटी के बीज तैयार करने के मकसद से सरकारी-निजी साझेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 

यही नहीं आईसीएआर के संस्थानों और राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को जीएम सरसों की हाइब्रिड किस्में मिशन मोड में विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जीएम सोयाबीन और जीएम मक्के के उत्पादन की अनुमति देना भी अग्रगामी कदम होगा ताकि इन फसलों की भी उत्पादकता बढ़ाई जा सके और प्रधानमंत्री के विजन के मुताबिक किसानों की आय दोगुनी हो सके।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही हर्बिसाइड टोलरेंट जीएम भारतीय सरसों को मंजूरी दी है जो समान टेक्नोलॉजी पर आधारित है, जबकि वह सामान्य भारतीय सरसों की खेती नहीं करते हैं। जाहिर है कि वे दक्षिण एशियाई देशों में सरसों तेल की बढ़ती मांग को पूरा करना चाहते हैं।

(लेखक ICAR के पूर्व डायरेक्टर जनरल, DARE के पूर्व सचिव और इंडियन साइंस कांग्रेस के पूर्व प्रेसिडेंट हैं)

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