आईसीएआर मौजूदा रबी सीजन में ही जीएम सरसों का फील्ड डिमांस्ट्रेशन और ट्रायल कर सकती है

नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) के प्रेसिडेंट डॉ. त्रिलोचलन महापात्र और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) के चेयरमैन डॉ. आर.एस. परोदा ने सोमवार को एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जीईएसी द्वारा इनवायरमेंटल रिलीज के लिए मंजूर की गई जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की हाइब्रिड किस्म डीएमएच-11 के फील्ड डेमांट्रेशन और ट्रायल की शुरुआत चालू रबी सीजन में ही कर सकती है। जीएम सरसों की इस किस्म का बीज किसानों तक पहुंचने में तीन साल का समय लग सकता है

आईसीएआर मौजूदा रबी सीजन में ही  जीएम सरसों का फील्ड डिमांस्ट्रेशन और  ट्रायल  कर सकती है
प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हए तास चेयरमैन, डॉ. आर.एस. परोदा और नास प्रेसिडेंट, डॉ. त्रिलोचन महापात्रा

नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) के प्रेसिडेंट डॉ. त्रिलोचलन महापात्र और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) के चेयरमैन डॉ. आर.एस. परोदा ने सोमवार को एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) चालू रबी सीजन में ही जीईएसी द्वारा इनवायरमेंटल रिलीज के लिए मंजूर की गई जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की हाइब्रिड किस्म डीएमएच-11 के फील्ड डेमांस्ट्रेशन और ट्रायल की शुरुआत कर सकती है। जीएम सरसों की इस किस्म का बीज किसानों तक पहुंचने में तीन साल का समय लग सकता है। इस समय जो 10 किलो बीज उपलब्ध है उसका इस्तेमाल इन डिमांस्ट्रेशन और ट्रायल में सरसों उत्पादक राज्यों में आईसीएआर द्वारा आल इंडिया कोआर्डिनेशन ट्रायल के तहत और आईसीएआर के सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर द्वारा किया जाएगा। इस साल की फसल से अधिक बीज उपलब्ध हो सकेगा और उसके बाद इस हाइब्रिड के बीज के उत्पादन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। उम्मीद है कि तीन साल में यह व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए किसानों को उपलब्ध हो सकेगा।   

प्रेस कांफ्रेंस में दी गई जानकारी के मुताबिक जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने 18 अक्तूबर की बैठक में जीएम सरसों के इनवायरमेंटल रिलीज की सिफारिश दी थी। उसके बाद 25 अक्टूबर को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच -11 को विकसित करने वाले प्रोफेसर  दीपक पेंटल को एक पत्र लिखकर बार्नेज, बारस्टार और बार जीन युक्त पैतृक लाइनों के पर्यावरणीय रिलीज को मंजूरी की जानकारी दी। इस मंजूरी के तहत आईसीएआर की देखरेख में नए संकर विकसित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। इस मौके पर मंत्रालय द्वारा प्रोफेसर पेंटल को लिखा पत्र भी जारी किया गया।

नास के प्रेसिडेंट डॉ. त्रिलोचन महापात्र और तास के अध्यक्ष  डॉ आर .एस. परोदा ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि डीएमएच-11 की इनवायरमेंटल रिलीज एक ऐतिहासिक निर्णय है जिससे जीएम तकनीक के इस्तेमाल को लेकर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध समाप्त हुआ है। अब इस आधुनिकतम तकनीक का उपयोग कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान देगा।

एक सवाल से जवाब में डॉ. महापात्र ने कहा कि आईसीएआर प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में डीएमएच-11 के फील्ड प्रदर्शन और परीक्षण की व्यवस्था अगले 10-15 दिनों के भीतर करनी चाहिए।

नास प्रेसिडेंट ने आगे के परीक्षणों की जरूरतों के बारे में बताते हुए कहा कि पहले ही आईसीएआर के राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर द्वारा डीएमएच-11 हाइब्रिड किस्म की उपज औऱ एग्रोनामिकल टेस्ट किया जा चुका है। लेकिन वह इसके परीक्षण की कानूनी स्थिति को देखते हुए सीमित स्तर पर ही किया गया था। हालांकि इसके तहत डीएमएच-11 का परीक्षण दूसरे सरसों उत्पादक राज्यों में भी किया गया था। उस समय अधिक जगहों पर इसका परीक्षण नहीं किया जा सकता था क्योंकि टेक्नालॉजी को रेगुलेटरी मंजूरी नहीं मिली थी।

महापात्र ने कहा कि डीएमएच-11 के इनवायरमेंटल रिलीज के साथ प्रौद्योगिकी को नियंत्रण से छूट दे दी गई है और अब इसे और अधिक स्थानों और खेतों में से परीक्षण व प्रदर्शित किया जा सकता है। साथ ही नई संकर किस्मों को विकसित करने के लिए टेक्नॉलोजी  का उपयोग किया जा सकता है।

महापात्र ने संवाददाताओं से कहा कि तीनों गतिविधियां एक साथ की जाएंगी। आईसीएआर इस रबी सीजन से आसानी से फील्ड में डिमान्सट्रेशन शुरू कर सकता है। अभी कम मात्रा में बीज उपलब्ध हैं, पहले इसका उपयोग प्रदर्शन के उद्देश्य से किया जा सकता है। कुछ मात्रा का उपयोग अधिक स्थानों पर फील्ड परीक्षण के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि डीएमएच-11 की उपज क्षमता का पता लगाने के बाद सीड मल्टीप्लाई किया जाएगा।

तास के चेयरमैन डॉ. आर. एस. परोदा ने कहा कि उपलब्ध बीज के साथ आईसीएआर इस रबी सीजन में नियंत्रित वातावरण में पचास से सौ फील्ड प्रदर्शन आसानी से कर सकता है। इसके बीज की मात्रा की कम जरूरत होती है। एक हैक्टेयर के लिए एक किलो बीज काफी होता है। उन्होंने कहा कि निजी और सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से अधिक संकर बीज पैदा करने के प्रयास की जरूरत है ताकि अगले साल रबी सीजन में बड़े क्षेत्र को कवर किया जा सके।

डॉ. परोदा ने कहा कि भारत में खाद्य तेलों की कुल खपत को पूरा करने के लिए आधे से अधिक खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है। इसमें करीब 50 लाख टन सोयाबीन का तेल होता है जो जीएम सोयाबीन से बना होता है। वहीं करीब पांच लाख टन जीएम कैनोला तेल का आयात होता है। इसके साथ ही देश में जीएम कॉटन से पैदा होने वाले करीब 15 लाख टन कॉटन सीड तेल का भी देश में उपभोग हो रहा है। इसलिए पहले से ही देश में जीएम फसलों का तेल उपयोग हो रहा तो जीएम सरसों के तेल को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। डॉ. महापात्रा ने कहा कि जीएम उत्पादों के मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर का कोई प्रमाण नहीं है।

नास के सेक्रेटरी प्रोफेसर के.सी बंसल ने डीएमएच-11 के संबंध में आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि डीएमएच-11 खरपतवारनाशी के प्रति सहनशील नहीं है जैसा कि कई लोग गलत समझते हैं। संकर बीज उत्पादन के लिए ही खरपतवारनाशी की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि किसानों को इसकी अधिक अधिक उपज पाने के लिए खरपतवारनाशी का प्रयोग करना जरूरी नही  है। उन्होंने कहा कि डीएमएच -11 मौजूदा किस्मों की तुलना में 28 प्रतिशत अधिक उपज देती है और देश की खाद्य तेल की के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। भारत की सरसों की औसत उपज एक टन से 1.3 टन प्रति प्रति हेक्टेयर है।

प्रोफेसर बंसल ने आगे कहा कि अब तक जो  जानकारी मिली है  इससे ये बात साफ हो गई कि  इस जीएम सरसों से  मधुमक्खियों को कोई खतरा नहीं  है और मानव स्वास्थ्य के लिए भी इससे कोई जोखिम नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि देश खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर हो जाए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय सरसों की हर्बिसाइड टॉलरेंट जीएम किस्म के कमर्शियल रिलीज को मंजूरी दी है। अगर हम अपना उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे तो आस्ट्रेलिया के लिए भारता का सरसों तेल का बाजार खुल सकता है। 

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