सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य में इस वजह से घट गया बुवाई का रकबा

राजस्थान में सरसों एवं रैपसीड की बुवाई का रकबा 22 दिसंबर तक 2.20 लाख हेक्टेयर घटकर 36,06,471 हेक्टेयर रह गया है। राजस्थान कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल की समान अवधि तक राज्य में सरसों एवं रैपसीड की बुवाई का रकबा 38,27,170 हेक्टेयर रहा था, जबकि कुल बुवाई 45,52,000 हेक्टेयर रही थी।

सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य में इस वजह से घट गया बुवाई का रकबा

रबी सीजन की प्रमुख तिलहन फसल सरसों की बुवाई का कुल रकबा बढ़ने से उत्पादन सरकार के तय लक्ष्य से ज्यादा होने की संभावना बढ़ गई है। एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश में सरसों की बुवाई के रकबे में 32 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी ओर सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में बुवाई का रकबा करीब 6 फीसदी घट गया है।    

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 22 दिसंबर तक सरसों की बुवाई का कुल रकबा 2 फीसदी बढ़कर 95.23 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। पिछले साल की समान अवधि में 93.46 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी। उत्तर प्रदेश में सरसों की बुवाई रकबे में इस अवधि तक 4.30 लाख हेक्टेयर यानी 32 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। दूसरी ओर, राजस्थान में सरसों एवं रैपसीड की बुवाई का रकबा 22 दिसंबर तक 2.20 लाख हेक्टेयर घटकर 36,06,471 हेक्टेयर रह गया है। राजस्थान कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल की समान अवधि तक राज्य में सरसों एवं रैपसीड की बुवाई का रकबा 38,27,170 हेक्टेयर रहा था, जबकि कुल बुवाई 45,52,000 हेक्टेयर रही थी।

राजस्थान के किसानों के हितों के लिए काम करने वाले जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के फाउंडर डायरेक्टर भगीरथ चौधरी ने इसकी वजह बताते हुए रूरल वॉयस से कहा, “जिस तरह से पिछले एक साल में पाम ऑयल के आयात में बढ़ोतरी हुई है, उससे घरेलू बाजार में सरसों की कीमत पर असर पड़ा है। मौजूदा समय में सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहा है। इस साल ज्यादातर समय सरसों का भाव एमएसपी के आसपास ही रहा है, जबकि दो-तीन साल पहले भाव 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। जिन फसलों का भाव बढ़ता रहता है उसकी खेती करने को तो किसान उत्साहित रहते हैं लेकिन वाजिब कीमत नहीं मिलने से किसान निराश होते हैं और दूसरी फसल की ओर रुख कर लेते हैं। राजस्थान के सरसों किसान भी यही कर रहे हैं।”

भगीरथ चौधरी के मुताबिक, राजस्थान के सरसों किसान जीरा, सौंफ, इसबगोल की खेती करने की ओर रुख कर रहे हैं क्योंकि उन्हें इनकी कीमत ज्यादा मिल रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जीरा है। तीन-चार साल पहले तक किसानों को जीरा का दाम 15-16 हजार रुपये क्विंटल से ज्यादा नहीं मिलता था। इस साल किसानों को इसकी कीमत 70 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक मिली है, जबकि औसत कीमत भी बढ़कर 35-40 हजार रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है। इसी तरह, सौंफ और इसबगोल के भी उन्हें बेहतर दाम मिल रहे हैं। इसलिए प्रदेश के किसान इनकी ओर रुख कर रहे हैं।

राजस्थान की मंडियों में सामान्य किस्म के सरसों का मौजूदा भाव 4900 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है, जबकि उच्च गुणवत्ता वाले सरसों का भाव 5400 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने रबी सीजन 2023-24 के लिए सामान्य किस्म वाले सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।

केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन के लिए 131.40 लाख टन सरसों के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। सरसों की बुवाई का कुल रकबा बढ़ने से यह उम्मीद जताई जा रही है कि कुल उत्पादन इस लक्ष्य से ज्यादा रह सकता है। 2022-23 में सरसों का कुल उत्पादन 128.43 लाख टन रहा था।

खाद्य तेल उत्पादकों के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के आंकड़ों के मुताबिक,  पिछले तेल वर्ष 2022-23 (नवंबर-अक्टूबर) में खाद्य तेलों के कुल आयात में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 56 फीसदी से बढ़कर 59 फीसदी पर पहुंच गई है। इस दौरान आरबीडी पामोलिन का आयात 18.4 लाख टन से बढ़कर 21.1 लाख टन, कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) का आयात, 54.9 लाख टन के मुकाबले 75.9 लाख टन और कच्चे पाम कर्नेल ऑयल (सीपीकेओ) का आयात 79,740 टन की तुलना में बढ़कर 94,148 टन पर पहुंच गया। तेजी से बढ़ते आयात के चलते सरसों की घरेलू कीमतें घटी हैं जिससे किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है।  

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