उत्तराखंड: हर्षिल के सेब और राजमा पर पड़ी आपदा की मार, किसानों को मदद का इंतजार
उत्तरकाशी के धराली-हर्षिल क्षेत्र में आई आपदा में किसानों को भारी नुकसान, धवस्त हुए बगीचे, सड़क टूटने से बची खुची फसल भी नहीं पहुंच पाई बाजार

अगस्त मध्य आते-आते, उत्तरकाशी जिले की हर्षिल वैली में, सेब की महक बिखरी रहती है। ठीक इसी वक्त हर्षिल का अर्ली वैरायटी वाला सेब पककर, बाजारों में पहुंचना शुरू होता है। इसके बाद सितंबर अंत तक सेब की पूरी फसल पकने को तैयार हो जाती है। लेकिन बीती पांच अगस्त को आई प्राकृतिक आपदा ने जहां धराली के सेब बगीचों को तहस-नहस कर दिया है, वहीं सड़कें ध्वस्त होने से आस-पास के सेब उत्पादक भी अपनी तैयार फसल बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
उत्तराखंड में सेब का सालाना उत्पादन करीब 64 हजार टन होता है। इसमें उत्तरकाशी जिले में ही सर्वाधिक, 4875 हेक्टेयर क्षेत्र में सालाना करीब 26 टन सेब पैदा होता है। उत्तरकाशी में हर्षिल वैली सेब उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है। यहां झाला में ही राज्य सरकार की ओर से कोल्ड स्टोरेज भी बनाया गया है। हर्षिल का सेब अगस्त से ही पकना शुरु होता है, जिस कारण बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है। लेकिन इस बार किसानों के चेहरे मायूस हैं। स्थानीय सेब उत्पादक किसान केएस पंवार कहते हैं कि इस बार सर्दियों में बर्फ कम गिरने से सेब का उत्पादन प्रभावित हुआ। फिर जैसे तैसे फसल तैयार हुई तो आपदा की मार पड़ गई।
हजारों पेड़ तबाह हुए
हर्षिल के आस-पास कुल आठ गांव सेब उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। इसमें हर्षिल, धराली, मुखबा, झाला, सुक्खी, जसपुर, पुराली, बगौरी शामिल है। इसमें धराली गांव में सर्वाधिक सेब होता है। धराली के नव निर्वाचित क्षेत्र पंचायत सदस्य और सेब उत्पादक किसान सुशील पंवार कहते हैं कि प्रारंभिक आंकलन के बाद अकेले धराली में ढाई हजार सेब के पेड़ बह गए या फिर मलबे के नीचे दफ्न हो गए हैं। पंवार बताते हैं कि उनका 125 पेड़ों का बगीचा कुछ उंचाई पर होने से सुरक्षित बच गया, लेकिन आपदा में गांव के कई लोग लापता हुए हैं। ऐसे में सेब की सुध कौन ले? उस पर रास्ता बंद होने से इस वक्त सेब बाजार पहुंचाना भी मुमकिन नहीं है।
जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह
स्थानीय सेब उत्पादक किसान, पंकज सिंह कहते हैं, पहले आस पास के लोग बगीचे से सेब तोड़कर धराली में ही ग्रेडिंग, शॉटिंग और पैकेजिंग का काम करते थे, यहीं पर लोडिंग ट्रक खड़े होते थे। लेकिन इस बार यह पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर बह चुका है, इस कारण बची खुशी फसल भी हाथ आनी मुश्किल है। एक बड़ी समस्या यह है कि आपदा के 12 दिन बाद भी अभी धराली तक सड़क सम्पर्क बहाल नहीं हो पाया है। अभी डबरानी तक ही सड़क मार्ग खुल पाया है, यहां से धराली की दूरी करीब 25 किमी है, इसके बीच दो तीन जगह पर पूरी सड़क नदी मे समा गई है। जबकि दूसरी तरफ खड़ी चट्टान है, इस कारण सड़क मार्ग बहाल होने में अभी लंबा वक्त लगेगा। तब तक सेब का ज्यादातर सीजन निकल चुका होगा।
सब्जियों पर भी पड़ी मार
हर्षिल घाटी राजमा के लिए भी जानी जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल फरवरी में, इस क्षेत्र में दौरे पर आए थे, जहां उन्होंने हर्षिल की राजमा की विशेष तौर पर प्रशंसा की थी। हर्षिल की राजमा भी सितंबर शुरुआत से पकनी तैयार होती है। इसके साथ ही हर्षिल में गोभी, ब्रोकली, मटर राजमा, आलू भी बहुतायत में होता है। धराली की ममता पंवार बताती हैं कि तैयार सब्जी को एक या दो दिन ही खेत में रखा जा सकता है, लेकिन सड़क बंद होने से फसल मंडी तक पहुंचाने का साधन नहीं है। हालांकि, अब प्रशासन स्थानीय सब्जियों की खरीद कर, इसे आपदा प्रभावितों के लिए चलाए जा रहे कम्यूनिटी किचन में खपा रहा है। लेकिन इससे कास्तकारों को बहुत ज्यादा मदद नहीं हो पाएगी।
प्रशासन ने शुरू किया आंकलन
इस बीच जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने 16 अगस्त को उपजिलाधिकारी भटवाड़ी शालिनी नेगी की अध्यक्षता में चार सदस्यों वाली कमेटी गठित कर, किसानों और उद्यान स्वामियों को हुए नुकसान का जायजा लेते हुए, राहत वितरण के निर्देश दिए हैं। एसडीएम भटवाड़ी शालिनी नेगी के मुताबिक, सर्वे रिपोर्ट के आधार पर नियमानुसार मुआवजा वितरण किया जाएगा।