आईएमएफ के दबाव में पाकिस्तान ने बंद की गेहूं की खरीद और एमएसपी व्यवस्था
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दबाव में पाकिस्तान ने चालू मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित नहीं किया और न ही गेहूं की सरकारी खरीद की। पाकिस्तान एग्रीकल्चरल स्टोरेज एंड सर्विसेज कारपोरेशन लिमिटेड (पीएएसएससीओ) ने इस साल गेहूं की कोई खरीद नहीं की है और वहां की सरकार हमारे देश में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की तर्ज पर काम करने वाली पाकिस्तान की इस संस्था को बंद करने की तैयारी कर रही है।

आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान में कृषि क्षेत्र में सुधारों का दौर चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दबाव में पाकिस्तान ने चालू मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित नहीं किया और न ही गेहूं की सरकारी खरीद की। पाकिस्तान एग्रीकल्चरल स्टोरेज एंड सर्विसेज कारपोरेशन लिमिटेड (पीएएसएससीओ) ने इस साल गेहूं की कोई खरीद नहीं की है और वहां की सरकार हमारे देश में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की तर्ज पर काम करने वाली पाकिस्तान की इस संस्था को बंद करने की तैयारी कर रही है। आईएमएफ द्वारा एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी लोन के तहत पाकिस्तान को 2024-25 से 2027-28 के बीच 7.11अरब डॉलर का कर्ज दिया जाएगा। उसके लिए हुए समझौते के तहत ही पाकिस्तान में कृषि क्षेत्र से जुड़े फैसले किये जा रहे हैं।
पाकिस्तान द्वारा चालू साल के लिए गेहूं की एमएसपी घोषित नहीं करने के चलते वहां गेहूं का रकबा करीब पांच लाख हैक्टेयर कम हो गया है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के मुताबिक चालू साल में पाकिस्तान का गेहूं उत्पादन का रकबा 91 लाख हैक्टेयर रह गया और नतीजतन 2024-25 मे गेहूं का उत्पादन 314.40 लाख टन से घटकर 285 लाख टन रहने का अनुमान है। यूएसडीए के मुताबिक पाकिस्तान में 2024-25 में गेहूं की खपत 315 लाख टन रहने का अनुमान है। इसके चलते पाकिस्तान को गेहूं का आयात करना पड़ेगा। वैसे पाकिस्तान ने पिछले साल भी गेहूं का आयात किया था। पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति गेहूं की खपत 124 किलो सालाना है।
पाकिस्तान ने पिछले साल (2023-24) के लिए गेहूं का एमएसपी 9750 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जो भारतीय रुपये में करीब 3000 रुपये प्रति क्विंटल बैठता है। पीएएसएससीओ ने 17.9 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। लेकिन अप्रैल, 2025 से शुरू हुए मार्केटिंग सीजन में कोई खरीद नहीं की है।
यही नहीं वहां पर संघीय और राज्यों के स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतों को तय करना और उनकी कीमतों को नियंत्रित करने की पूरी व्यवस्था को ही समाप्त किया जा रहा है। जिसे 2025 के रबी सीजन से लागू किया गया है। इस व्यवस्था बदलाव को वित्त पर्ष 2026 तक पूरा कर लिया जाएगा। पाकिस्तान के संसदीय मामलों के मंत्री तारिक फजल चौधरी ने नेशनल असेंबली को बताया कि पीएएसएससीओ को बंद करने और गेहूं की सरकारी खरीद व एमएसपी को बंद कर दिया जाएगा। यही नहीं पीएएसएससीओ के गोदामों और कार्यालयों की वैल्यूएशन के लिए टीएजीएम एंड कंपनी नाम की एक कंसल्टेंसी को नियुक्त किया गया है जो तीन माह में अपनी रिपोर्ट देगी। 1973 में स्थापित पीएएसएससीओ 51 साल पुरानी संस्था है।
इसके साथ ही पाकिस्तान ने आईएमएफ को भरोसा दिया है कि वह देश में कृषि उत्पादों के मार्केट में हस्तक्षेप से जुड़े कानून और नियमों की दिसंबर, 2025 तक समीक्षा करेगी। इसमें प्राइस कंट्रोल एंड प्रीविंशन ऑफ प्रोफिटियरिंग एंड होर्डिंग एक्ट, 1977 समेत चारों राज्यों पंजाब, बलोचिस्तान, सिंध और खैबरपख्तूनख्वा के इस तरह के कानून शामिल हैं। इसके साथ ही इन राज्यों में कृषि आय को कर मुक्त रखने वाले कानूनों को फेडरल स्तर पर व्यक्तिगत आय कर और कारपोरेट इनकम टैक्स की लाइन पर संशोधित किया जाएगा। यानी कृषि को आय कर के दायरे में लाया जाएगा जिसे जनवरी, 2025 से लागू माना जाएगा।
पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था ने आईएमएफ की इन शर्तों को किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े फैसलों को लागू करने की स्थिति पैदा हुई है। इन फैसलों से साबित होता है कि पाकिस्तान की प्राथमिकताओं पर वहां की सैनिक व्यवस्था काबिज है। इन फैसलों का क्या असर होगा यह आने वाले कुछ बरसों में ही साफ होगा। लेकिन यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कृषि क्षेत्र में सब कुछ बाजार पर छोड़ने की यह व्यवस्था किस तरह के परिणाम लेकर आएगी। हमारे देश में भी कुछ अर्थविद कृषि उत्पादन और मार्केटिंग को मार्केट के भरोसे छोड़ने की वकालत करते रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत को कभी आईएमएफ से कर्ज नहीं लेना पड़ा, साल 1991 में बैलेंस ऑफ पेमेंट का संकट खड़ा होने की स्थिति में भारत को आईएमएफ से कर्ज लेना पड़ा था। इसके चलते देश में आर्थिक सुधारों को लागू किया गया था कृषि और खाद्य सुरक्षा के मामले में किसी तरह की कोई भी शर्त भारत नहीं मानी थी।
चालू साल में देश में 11.75 करोड़ टन का गेहूं उत्पादन का अनुमान है और सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए 2425 रुपये प्रति क्विंटल की एमएपी तय की है। साथ ही गेहूं की सरकारी खरीद के भी 300 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। सरकार ने गेहूं की सरकारी खरीद को कुछ राज्यों में 30 जून तक बढ़ा दिया है। ऐसे में भारत के उत्पादन और यहां की नीतियों की पाकिस्तान के साथ कोई तुलना नहीं की जा सकती है। गेहूं के अलावा अन्य फसलों में भी वहां के मुकाबले हमारे उत्पादन और खपत में बहुत बड़ा अंतर है। पाकिस्तान की तुलना हमारे कुछ राज्यों से ही इस मामले में की जा सकती है।
भारत में आईएमएफ का दबाव तो नहीं रहा लेकिन केंद्र सरकार ने जून, 2020 में कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन केंद्रीय कानून लागू करने का फैसला लिया था। लेकिन उनके विरोध में किसान संगठनों द्वारा करीब 13 माह तक आंदोलन चलाने के चलते सरकार ने 2021 में इन कानूनों को रद्द कर दिया था। उसके बाद सरकार ने कृषि क्षेत्र सुधारों को लेकर कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है।
वहीं आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान को आईएमएफ की तमाम शर्तों का पालन करना पड़ा रहा है। इन कदमों के चलते पहले ही गेहूं का आयात करने वाले पाकिस्तान का आयात बढ़ेगा। यूएसडीए के मुताबिक पाकिस्तान ने 2023-24 में 35.90 लाख टन गेहूं का आयात किया था जबकि इस साल उत्पादन घटेगा और वहां गेहूं की खपत 315 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया है।
हालांकि चावल के मामले में पाकिस्तान की स्थिति बेहतर है और वह भारत, वियतनाम और थाइलैंड के बाद चौथा बड़ा चावल निर्यातक देश है। पाकिस्तान करीब 98 लाख टन चावल पैदा करता है और उसकी खपत करीब 42 लाख टन है। साल 2024-25 में पाकिस्तान ने 55 लाख टन चावल का निर्यात किया था जो उसके पहले साल 64.9 लाख टन रहा था। बासमती चावल के निर्यात बाजार में पाकिस्तान भारत का मुख्य प्रतिस्पर्धी है।