घरेलू कीमतों पर अंकुश के लिए गैर बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला

करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। इसके लिए जारी अधिसूचना के तहत शुल्क भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल  की श्रेणी को  शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है

घरेलू कीमतों पर अंकुश के लिए गैर बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला

करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। इसके लिए राजस्व विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के तहत भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल  की श्रेणी को  शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है। इस संबंध में वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 8 सितंबर, 2022 को अधिसूचना जारी की गई है और 9 सितंबर शुक्रवार से निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क का यह फैसला लागू हो गया है।

अधिसूचना में कहा गया है कि निर्यात शुल्क लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा संतुष्ट होने के चलते प्रदत्त अधिकारों के तहत निर्यात पर शुल्क लगाने का फैसला लिया गया है।

चालू खरीफ सीजन में देश के करीब दर्जनभर चावल उत्पादक राज्योंं में बारिश कम होने के चलते धान का रकबा कम चल रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक धान का रकबा पिछले साल से करीब छह फीसदी तक कम है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश की कमी के चलते धान का रकबा तो घटा ही है फसल की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जिला स्तर पर सूखे की स्थिति का जायजा लेने का फैसला लिया है। इन राज्यों में बारिश का स्तर सामान्य से 40 से 50 फीसदी तक कम है। ऐसे में चालू खरीफ सीजन की धान की फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना लगभग तय है। यही वजह है कि सरकार ने निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए सामान्य चावल की किस्मों के निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला लागू किया है।

पिछले वित्त वर्ष में भारत करीब 200 लाख टन चावल के निर्यात के साथ दुनिया के सबसे बड़ा चावल निर्यातक के रूप में स्थापित हो गया था जो विश्व के चावल निर्यात बाजार का 40 फीसदी हिस्सा है। भारत के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने के चलते वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी आ सकती है। हालांकि यह फैसला बासमती और सेला चावल पर लागू नहीं होगा। देश से हर साल करीब 40 लाख टन बासमती और करीब 70 लाख टन सेला चावल का निर्यात होता है। उस हिसाब से यह फैसला आधे से कुछ कम चावल निर्यात को प्रभावित करेगा। 

वहीं घरेलू बाजार में पिछले कुछ माह में चावल की कीमतें करीब पांच  से सात फीसदी तक बढ़ गई हैं। इसी के चलते किसानों को कम अवधि की साठा चावल किस्मों के धान के लिए जुलाई में 3000 रुपये से 3500 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत मिली है।जो घरेलू बाजार में चावल कीमतों में तेजी का संकेत है। लेकिन निर्यात पर शुल्क लगाने के 8 सितंबर के फैसले के चलते कीमतों में वृद्धि पर अंकुश लगने की संभावना है।

पिछले सीजन 2021-22 में मार्च में अचानक तापमान में बढ़ोतरी के चलते गेहूं के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा था और उसके चलते सरकारी खरीद भी 15 साल के निचले स्तर पर चली गई थी और केंद्रीय पूल में 1 जून को गेहूं का स्टॉक 14 साल के निचले स्तर पर था।  गेहूं की कीमतें सरकारी खऱीद के दौरान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी उपर चली गई थी। कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 13 मई, 2022 को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। वहीं पिछले दिनों गेहूं के आटा के निर्यात पर ऱोक लगा दी गई थी।

हालांकि केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक बेहतर स्थिति में है और सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली व दूसरी योजनाओं के तहत चावल के आवंटन में अभी कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जिस तरह से खरीफ फसल के कमजोर रहने की आशंका लग रही है उसके चलते सरकारी खरीद भी प्रभावित हो सकती है। यही वजह है कि सरकार घरेलू बाजार में कीमतों और चावल की उपलब्धता को लेकर कोई चांस नहीं लेना चाहती है और उसी के चलते निर्यात पर शुल्क लगाने का यह फैसला आया है।

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