गन्ना पर राष्ट्रीय परामर्श में आए नई वैरायटी और छोटे मशीन विकसित करने के सुझाव
देश की गन्ना अर्थव्यवस्था पर मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय परामर्श में कई अहम मुद्दे उभर कर सामने आए। किसानों ने फसल में कीड़े लगने और उत्पादकता घटने का मुद्दा उठाया। खेती में मेकैनाइजेशन पर किसानों का कहना था कि मशीनों को छोटी जोत के किसानों के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए। परामर्श में शामिल विशेषज्ञों ने किसानों को इसके कई समाधान बताए। उन्होंने गन्ने की वैरायटी 0238 के कुछ विकल्प भी बताए।

देश की गन्ना अर्थव्यवस्था पर मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय परामर्श में कई अहम मुद्दे उभर कर सामने आए। किसानों ने फसल में कीड़े लगने और उत्पादकता घटने का मुद्दा उठाया। खेती में मेकैनाइजेशन पर किसानों का कहना था कि मशीनों को छोटी जोत के किसानों के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए। परामर्श में शामिल विशेषज्ञों ने किसानों को इसके कई समाधान बताए। उन्होंने गन्ने की वैरायटी 0238 के कुछ विकल्प भी बताए। इस सेमिनार का मकसद किसानों के इनपुट और विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर एक प्रस्ताव तैयार करना था, जिससे एक मजबूत राष्ट्रीय गन्ना नीति बनाई जा सके।
यह परामर्श चार सत्र में विभाजित था। पहले सत्र को कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संबोधित किया। डेयर सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एम एल जाट ने किसानों को कुछ सुझाव दिए। उनके अलावा विशेषज्ञों ने भी अपनी राय दी। दूसरा तकनीकी सत्र 'किस्म विकास और सतत तीव्रता/विविधीकरण' विषय पर, तीसरा तकनीकी सत्र 'प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, यांत्रिकीकरण, सूक्ष्म सिंचाई, एआई और भविष्य की तकनीक' विषय पर और चौथा एवं अंतिम सत्र 'गन्ना नीति और मूल्य निर्धारण' विषय पर था।
आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट तथा अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
यह आयोजन कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को समर्पित मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस और नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (NFCSF) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहयोग से किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह ने कहा, गन्ने की अर्थव्यवस्था अपने आप में बहुत बड़ी है। पिछले दिनों इसे लेकर कई तरह की चिंताएं जताई गईं। गन्ने का रकबा और पैदावार में गिरावट आई है। गन्ने की कई प्रजातियों से अब किसानों को नुकसान हो रहा है। इसका रास्ता निकालने के लिए इस राष्ट्रीय परामर्श का आयोजन किया गया है।
कार्यक्रम का संचालन करते रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह।
उन्होंने कहा कि गन्ना अब सिर्फ चीनी देने वाली फसल नहीं है। यह हरित ईंधन (एथेनॉल), हरित ऊर्जा, (बिजली और सीबीजी) तथा सहउत्पाद जैसे डिस्टिलरी राख से प्राप्त पोटाश (PDM) और फर्मेंटेड ऑर्गेनिक मैन्योर (FOM) के लिए भी महत्वपूर्ण है। शीरा (molasses), जिसे पहले देशी शराब और पोटेबल अल्कोहल बनाने के लिए उपयोग किया जाता था, अब एथेनॉल और कई रसायन-आधारित उत्पादों के लिए एक प्रमुख कच्चा माल है।
सबसे पहले किसानों ने रखी अपनी बात
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के उधरनपुर गांव के किसान अनुराग शुक्ल ने कहा कि गन्ने की 0238 वैरायटी का लाभ निश्चित रूप से मिला है, ऐसी और वैरायटी विकसित की जाए। महाराष्ट्र की तरह मशीनीकरण के लिए अनुदान मिले। पैसा सीधे बटाईदार किसानों के खाते में आए। पंजाब के किसान अवतार सिंह ने बीज तथा अन्य उत्पादन लागत कम करने की जरूरत बताई। उन्होंने भी कहा कि 0238 वैरायटी के बाद कोई अच्छी वैरायटी अभी तक नहीं मिली है। वैसी और वैरायटी विकसित की जानी चाहिए। ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती करने वाले उत्तर प्रदेश के मेरठ के किसान विनोद सैनी ने इंटरक्रॉपिंग के महत्व के बारे में बताया। सैनी इंटरक्रॉपिंग में गन्ने के साथ मूंगफली की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि इससे गन्ने के उत्पादन में भी 10-12 प्रतिशत की वृद्धि हुई। गन्ने में कीट लगने की संभावना कम होती है।
उत्तर प्रदेश के शामली जिले के गांव भैंसवाल के उमेश कुमार ने कहा कि 0238 के बाद कोई वैरायटी उत्पादन बढ़ाने में सक्षम नहीं हुई। महंगाई के कारण गन्ने से किसानों का मोहभंग हो रहा है। इसलिए रकबा भी घटा है। कम लागत, कम मेहनत और अधिक उत्पादन से ही किसान को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में उर्वरकों के दाम दोगुने से ज्यादा हो गए, लेकिन गन्ने की कीमत उस हिसाब से नहीं बढ़ी। गन्ना किसानों की आय मनरेगा से भी कम रह गई है। उन्होंने खेती को ज्यादा से ज्यादा मेकैनाइज करने और छोटे हारवेस्टर पर फोकस करने का आग्रह किया।
पहला सत्रः विशेषज्ञों ने दिया नई वैरायटी किसानों तक जल्द पहुंचाने का सुझाव
गन्ना बुवाई-कटाई के लिए मेकैनाइजेशन की जरूरतः केतन कुमार पटेल
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरिटेव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट केतन कुमार पटेल ने कहा, किसानों के लिए गन्ना कल्प वृक्ष जैसा है। चीनी के अलावा अन्य कई सह-उत्पाद तैयार किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात में बटाईदार किसान का रजिस्ट्रेशन होता है और उसे ही गन्ने का भुगतान किया जाता है। उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में भी ऐसा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गन्ना बुवाई-कटाई के लिए मेकैनाइजेशन की जरूरत है। लेकिन भारत में खेत छोटे हैं, इसलिए छोटे मशीन चलाना मुश्किल है। आसपास के खेत वाले किसान मिल कर खेती करें तो मेकैनाइजेशन आसान होगा।
राष्ट्रीय गन्ना विकास बोर्ड की स्थापना होः दीपक बल्लानी
इंडियन शुगर एवं बॉयो-इनर्जी मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने कहा कि पैदावार बढ़ाने के लिए नई वैरायटी जल्दी से जल्दी किसानों तक पहुंचाने की जरूरत है। अभी 10-12 साल लगते हैं, इसे 6-7 साल तक लाने की जरूरत है। बीमारी प्रतिरोधी वैरायटी विकसित करने के साथ यह देखना होगा कि कैसे बीज किसानों तक जल्दी पहुंचे। इसमें टिश्यू कल्चर फैसिलिटी को विकसित करने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश में किसानों को ड्रिप इरिगेशन को बढ़ाना चाहिए। राज्य में कुछ जगहों पर एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे पैदावार 30-40 प्रतिशत बढ़ने के आसार हैं। उन्होंने कहा कि एफआरपी बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन साथ ही चीनी के दाम को भी बढ़ने दिया जाए। एसबीआई कोयंबटूर ने जीन एडिटिंग पर काम शुरू किया है। उसका विस्तार किया जाना चाहिए। छोटे हारवेस्टर का विस्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीय गन्ना विकास बोर्ड की स्थापना का भी सुझाव दिया।
दूसरा सत्रः किस्म विकास और सतत तीव्रता/विविधीकरण
वैरायटी 0238 से मोनेक्रॉपिंग को बढ़ावाः डॉ. देवेंद्र कुमार यादव
आईसीएआर में क्रॉप साइंस के उप महानिदेशक डॉ. देवेंद्र कुमार यादव ने कहा कि शुरू में किसानों को गन्ने की वैरायटी 0238 बहुत पसंद आई, लेकिन उससे मोनोक्रॉपिंग को बढ़ावा मिला। ऐसा नहीं कि इस वैरायटी का विकल्प नहीं है। कई वैरायटी आई हैं, लेकिन नई वैरायटी आने में समय लगता है। उन्होंने बताया कि हर वैरायटी की तीन साल टेस्टिंग होती है। इस दौरान बीमारी या कीड़े की समस्या को भी देखा जाता है। फसल की यील्ड भी देखी जाती है। यील्ड गैप का अध्ययन ज्यादातर फसलों में जरूरी है। डॉ. यादव ने कहा कि इस सेमिनार में आए सुझावों पर गौर किया जाएगा और देखा जाएगा कि उससे किसानों की समस्याओं का कैसे समाधान किया जा सकता है।
डॉ. यादव ने इससे पूर्व के सत्र को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि किसानों की शिकायत है कि लागत के हिसाब से गन्ने के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। इसे केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इन-ऑर्गेनिक खेती करने वालों को कई तरह की सब्सिडी का लाभ मिलता है। ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसान उन सब्सिडी का इस्तेमाल नहीं करते हैं। यह देखा जाना चाहिए कि उसका फायदा किसानों को कैसे मिले। खेती में मशीनीकरण एक महत्वपूर्ण अवयव है, लेकिन छोटे खेतों में मशीनीकरण को कैसे सफल बनाएं।
मेकैनाइजेशन से कम होगी किसान की लागतः शक्ति सिंह
हरियाणा कोआपरेटिव शुगर फेडरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर शक्ति सिंह ने कहा कि जिस वैरायटी में चीनी ज्यादा होती है, उसमें रोग भी ज्यादा लगते हैं। जिस वैरायटी में चीनी कम मिलेगी, वह किसानों के लिए कम फायदेमंद होगी। उन्होंने गन्ना किसानों की लागत कम करने और उन्हें अधिक दाम दिलाने के उपाय तलाशने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गन्ने की फसल की कीमत का 15 प्रतिशत कटाई और छिलाई में ही लग जाता है। इसलिए आईसीएआर को एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में भी ध्यान देना चाहिए। मेकैनिकल हारवेस्टिंग इसका एक समाधान हो सकता है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी। इसके साथ बाकी मेकैनाइजेशन पर भी जोर दिया जाना चाहिए।
किसानों की सहूलियत के लिए छोटा हारवेस्टर डेवलप होः रोशन लाल टामक
डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के सीईओ एवं ईडी तथा यूपी-इस्मा के पूर्व अध्यक्ष रोशन लाल टामक ने वैज्ञानिक की बताई परफॉर्मेंस और फील्ड परफॉर्मेंस में अंतर पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अभी यह अंतर बहुत ज्यादा है, यह कम होना चाहिए। आईसीएआर को देखना चाहिए कि वैरायटी रिलीज करने की प्रक्रिया को जल्दी और आसान कैसे किया जाए। देश में वैरायटी विकसित करने पर बहुत काम हो रहा है। लेकिन ये काम साइलो में, अलग-अलग हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रायरिटी तय करने में किसान और इंडस्ट्री की सहभागिता जरूरी है। मेकैनाइजेशन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि छोटा हारवेस्टर डेवलप करना जरूरी है ताकि किसानों को सहूलियत हो। बीज के लिए टिश्यू कल्चर को प्रमोट करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बदलाव तेजी से हो रहे हैं। इसलिए टिश्यू कल्चर को स्पेशल प्रोजेक्ट की तरह डेवलप किया जाना चाहिए।
तीसरा सत्रः प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, यांत्रिकीकरण, सूक्ष्म सिंचाई, एआई और भविष्य की तकनीकें
तीसरे सत्र को संबोधित करते आईसीएआर में उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. राजबीर सिंह।
मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद गन्ने में मेकैनाइजेशन कमः डॉ.सी.आर. मेहता
आईसीएआर-केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल के निदेशक डॉ.सी.आर. मेहता ने बताया कि देश में गन्ना हारवेस्टिंग में क्या काम हुआ है। उन्होंने सीडबेड की तैयारी, प्लांटिंग, ट्रांसप्लांटिंग, रटूनिंग में लगने वाली मशीनों के बारे में बताया। उन्होंने ट्रैक्टर से ऑपरेट होने वाली मशीनों के बारे में भी जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि अभी हारवेस्टिंग की बड़ी मशीनें हैं, छोटी जोत वाले किसानों के लिए इनका प्रयोग करना मुश्किल होगा। कुछ राज्यों में चीनी मिलों की मदद से इनका प्रयोग शुरू किया गया है। होल केन हारवेस्टर में सारे ऑपरेशन एक साथ होते हैं। अभी यह लाइसेंसिंग की प्रक्रिया में है। इसकी लागत पांच से छह लाख रुपये है। उन्होंने यह भी कहा कि मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद गन्ने में मेकैनाइजेशन कम है।
गन्ने के साथ दलहन-तिलहन की इंटरक्रॉपिंग की गुंजाइशः डॉ. सुनील कुमार
आईसीएआर-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIFSR) मोदीपुरम, मेरठ के निदेशक डॉ. सुनील कुमार ने गन्ने में इंटरक्रॉपिंग के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि तिलहन और दलहन की इंटरक्रॉपिंग से देश में इनका आयात भी कम होगा। उन्होंने बताया कि खास कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इंटरक्रॉपिंग कम होती है।
उन्होंने कहा कि सिर्फ एक फसल लगाने पर पानी की अधिक खपत, कीट एवं रोग प्रबंधन की समस्या, छोटी जोत, मृदा स्वास्थ्य में गिरावट, सह-उत्पादों का कॉमर्शियलाइजेशन जैसी समस्याएं हैं। गन्ने की सीओ-0238 किस्म के अलावा सीओ-0118 और 15023 में भी रोगों और कीटों का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। लागत भी बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि इंटरक्रॉपिंग में यूपी में मूंग, उड़द, चना, सरसों, आलू प्याज, लहसुन, पत्ता गोभी, फूलगोभी राजमा, कद्दू की खेती होती है। इंटरक्रॉपिंग से नाइट्रोजन फिक्सिंग होती है। पानी की आवश्यकता कम होती है। कम अवधि वाली फसलें इस्तेमाल होती हैं। इसके लिए अलग से पानी या पोषक तत्व देने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए उन्होंने कई उदाहरण प्रस्तुत किए।
एआई के प्रयोग से बढ़ा गन्ने का उत्पादनः डॉ. विवेक भोइटे
केवीके बारामती, पुणे के वैज्ञानिक डॉ. विवेक भोइटे ने गन्ने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के प्रयोग की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि रिसर्च को अपनाने में एआई मदद करता है। बारामती में गन्ने पर इसका प्रयोग किया गया है। इसके लिए हब एंड स्पोक मॉडल अपनाया गया। हर किसान के खेत में मिट्टी में नमी की जानकारी देने के लिए यंत्र लगाया। सैटेलाइट से रोजाना इमेज (मैपिंग) लिए जाते हैं। इन सब जानकारी के आधार पर तैयार अल्गोरिद्म का प्रयोग खेतों में किया गया। महाराष्ट्र में सभी सहकारी, गैर-सहकारी सभी मिलों से जुड़े किसानों को इसकी जानकारी दी जा रही है। पांच हजार किसानों के यहां ये यंत्र लगाए गए हैं। इससे प्रति एकड़ 100 टन से ज्यादा उत्पादन हासिल करने में सफलता मिली है। लेकिन इन सबके लिए किसानों को टेक्नोलॉजी को समझना पड़ेगा। हॉर्टीकल्चर और फ्लोरीकल्चर में भी एआई का प्रयोग कर रहे हैं। एआई बीमारी के बारे में पहले अनुमान लगा लेता है। उन्होंने कहा कि एआई की मदद से 40 प्रतिशत ज्यादा यील्ड हुई और श्रम 20-40 प्रतिशत कम लगता है।
एनएफसीएसएफ के मुख्य सलाहकार (गन्ना) डॉ. आर एस. डाउले ने कहा कि आने वाले समय में पॉलिसी एआई पर निर्भर करेगी। मोबाइल एप पर सारी जानकारियां मिलेंगी। किसान एआई और ड्रिप का इस्तेमाल करके पानी की बचत कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इनपुट लागत बढ़ रही है। इसलिए अब खेत में मैनेजमेंट करने की जरूरत है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अभियांत्रिकी विभाग के सहायक महानिदेशक (एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग) डॉ. के.पी. सिंह ने कहा कि एआई के उपयोग से इनपुट की लागत कम की जा सकती है। पानी का इस्तेमाल भी आधा किया जा सकता है।
डॉ. के.पी. सिंह ने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा पीने के पानी का इस्तेमाल 700-800 अरब घन मीटर सिंचाई में करते हैं। इसलिए किसानों को सोचना चाहिए कि मेकैनाइजेशन के साथ एआई की इस्तेमाल कैसे करना है। इस सत्र को जैन ग्लोबल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और चीफ एग्रोनॉमिस्ट डॉ. पी. सोमन ने भी संबोधित किया।
चौथा सत्रः नीति और मूल्य निर्धारण
गन्ना भुगतान का सबसे ज्यादा बकाया यूपी मेंः प्रकाश नाइकनवरे
एनएफसीएसएफ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने बताया कि गन्ना तथा अन्य फसलों के दाम कैसे तय होते हैं। उन्होंने बताया कि हर विषय की एक पैरेंट मिनिस्ट्री होती है। गन्ने के लिए यह कृषि और खाद्य मंत्रालय है। पॉलिसी की शुरुआत पैरेंट मिनिस्ट्री से होती है। वह नोट जारी करती है। उसे सचिवों की समिति के पास भेजा जाता है जिसमें 12 सचिव होते हैं। उनके सुझाव के बाद प्रस्ताव अंतर मंत्रालयी समिति के पास जाता है। उसके बाद यह मंत्री समूह को भेजा जाता है। अभी इसके प्रमुख सहकारिता मंत्री अमित शाह हैं। उनके अलावा इस समिति में कृषि मंत्री, वाणिज्य मंत्री, खाद्य मंत्री और वित्त मंत्री हैं।
नाइकनवरे ने बताया कि हाल ही सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि पैरंट मिनिस्ट्री नोट बनाने से पहले नेशनल शुगर फेडरेशन और इस्मा के प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस साल गन्ने का करीब साढ़े छह हजार करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश का है।उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड समेत कुछ राज्यों में गन्ने का दाम राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) होता है और यह राज्य सरकारें तय करती हैं और उसके निर्धारण में काफी कुछ राजनीतिक मकसद होता है। जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात समेत दक्षिण के राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा तय फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) के आधार पर गन्ना मूल्य का भुगतान होता है।
इथेनॉल बनाना अब फायदेमंद नहीं, दाम बढ़ाने की जरूरतः अतुल चतुर्वेदी
श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि किसान की सेहत अच्छी है तभी फैक्ट्री की सेहत अच्छी रहेगी और फैक्ट्री की सेहत अच्छी है तो किसान की स्थिति भी अच्छी रहेगी। वर्ष 2025 शुगर के लिए बहुत खराब रहा है। यूपी में चीनी मिलें 150 दिन बाद ही बंद हो गईं जो 200 दिन चला करती थीं। यही स्थिति दूसरे राज्यों में भी है। उन्होंने कहा कि तीन साल से इथेनॉल की कीमत में इजाफा नहीं हुआ, जबकि गन्ने की कीमतें बढ़ी हैं।
उन्होंने एक और मुद्दा उठाया। कहा कि मक्के का इथेनॉल तेल कंपनियां महंगा खरीद रही हैं जबकि गन्ने के इथेनॉल के दाम 5-7 रुपये कम देती हैं। नीति आयोग ने कहा था कि इथेनॉल 55 प्रतिशत शुगर से आना चाहिए और बाकी अनाज से। आज शुगर से सिर्फ 35% इथेनॉल आता है बाकी 65% अनाज से आता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गन्ने से चीनी बनाने की लागत 40-41 रुपये प्रति किलो आती है। एथनॉल बनाना अब फायदेमंद नहीं रह गया है। इसके दाम बढ़ाए जाने चाहिए।
जमीनी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर नीति बनेः यू.एस. तेवतिया
इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) के सीजीएम डॉ. यू.एस. तेवतिया ने नीति बनाने में जमीनी परिस्थितियों का ध्यान रखने पर जोर दिया और उत्तर प्रदेश में गन्ना कटाई के लिए हारवेस्टर चलाने में आ रही समस्याओं का जिक्र किया।
तेवतिया ने किसानों से कहा कि जब कोई मशीन के बारे में बताए, तो उसे खेत पर चला कर देखना चाहिए कि वह कामयाब है या नहीं। चाहे वह वैरायटी का डेवलपमेंट हो या मशीन का, तब तक वह सफल नहीं होगा जब तक वह खेतों में काम नहीं करेगा। उन्होंने सवाल किया कि शोध पत्रिकाओं में अनक रिसर्च प्रकाशित हुए, लेकिन उनमें से कितने ऐसे हैं जिनसे किसानों को फायदा हुआ। ऐसा इसलिए कि उस रिसर्च में किसानों को भागीदार नहीं बनाया गया।