रबर किसानों ने केंद्र की कॉरपोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ जंतर-मंतर पर जताया विरोध

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) से जुड़े केरल, त्रिपुरा, तमिलनाडु और कर्नाटक के सैकड़ों रबर किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया और संसद तक मार्च किया। धरने के दौरान किसान नेताओं ने शिकायत की कि सरकार की नीतियों की वजह से रबर किसानों के सामने अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया है। उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकारों की कॉरपोरेट समर्थक नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

रबर किसानों ने केंद्र की कॉरपोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ जंतर-मंतर पर जताया विरोध
अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में संसद मार्च करते रबर किसान

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) से जुड़े केरल, त्रिपुरा, तमिलनाडु और कर्नाटक के सैकड़ों रबर किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया और संसद तक मार्च किया। धरने के दौरान किसान नेताओं ने शिकायत की कि सरकार की नीतियों की वजह से रबर किसानों के सामने अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया है। उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकारों की कॉरपोरेट समर्थक नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

धरने को संबोधित करते हुए किसान नेताओं ने कहा कि आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते को विशेष महत्व दिया गया जिसे भाजपा सरकार ने शुरू किया था और अंततः 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने उस समझौते पर हस्ताक्षर किए। मुक्त व्यापार समझौते की वजह से थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम और अन्य देशों से रबर के शुल्क-मुक्त आयात में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

ऑल इंडिया किसान सभा ने एक बयान में कहा कि प्राकृतिक रबर का देश में आयात 2005-06 में 45 टन होता था जो बढ़कर 2022-23 में 5.28 लाख मीट्रिक टन हो गया है। केरल के किसान नेताओं ने याद दिलाया कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने वादा किया था कि आसियान समझौते से भारत के सबसे बड़े रबर उत्पादक राज्य केरल के रबर किसानों को भारी लाभ होगा। मगर इससे एमआरएफ जैसी दिग्गज टायर कंपनियों को लाभ हुआ। विरोध प्रदर्शन में इस बात पर आम सहमति थी कि रबर किसानों और राष्ट्रीय हित को बचाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने रबर को कृषि फसल बनाने की भी मांग की।

किसान नेताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि रबर के लिए कम से कम 300 रुपये प्रति किलोग्राम का उचित लाभकारी मूल्य (एफआरपी) सरकार द्वारा तुरंत घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई कॉरपोरेट समर्थक नीतियों से उत्पादन लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है लेकिन इसकी तुलना में प्राकृतिक रबर की कीमत नहीं मिल रही है जिससे किसानों के लिए जिंदा रहना असंभव हो गया है।

एआईकेएस ने अपने बयान में कहा, जले पर नमक छिड़कते हुए मोदी सरकार रबर बोर्ड को खत्म करने और पूरी तरह से इसे कॉरपोरेट के हवाले करने मार्ग प्रशस्त करने की प्रक्रिया में है।

बयान में कहा गया है कि रबर (संवर्द्धन और विकास) विधेयक, 2023 भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कॉरपोरेट समर्थक नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है। वक्ताओं ने कहा कि बहुराष्ट्रीय टायर कंपनियों के नापाक मंसूबे रबर किसानों की आजीविका को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय टायर कंपनियों का भयावह खेल तब उजागर हुआ जब भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने 2022 में बाजार में हेराफेरी के लिए उन पर लगभग 1,788 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। एक तरफ रबर किसान और मजदूर आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ एमआरएफ, अपोलो, जेके, सीएट और बिड़ला जैसी अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ने भारी भरकम संपत्ति अर्जित की है। यह संपत्ति रबर किसानों के जीवन की कीमत पर अर्जित की गई है। किसान नेताओं ने दोहराया कि सीसीआई जुर्माने की राशि रबर किसानों को मिलनी चाहिए। एआईकेएस ने पहले भी इसकी मांग की थी।

एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धावले, उपाध्यक्ष ईपी जयराजन, हन्नान मोल्ला, महासचिव वीजू कृष्णन सहित अन्य नेताओं ने रबर किसानों के धरने को संबोधित किया।

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