संसदीय समिति ने पीएम कुसुम और पीएम सूर्य घर योजना के अमल पर उठाए सवाल, कहा- किसानों को नहीं मिल रहा पूरा लाभ
संसदीय समिति ने चेतावनी दी है कि PM-KUSUM और पीएम सूर्य घर जैसी प्रमुख सौर योजनाएं किसानों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच पा रही हैं। वित्तीय मदद में देरी, विक्रेताओं की कमजोर सेवाएं और राज्यों की धीमी प्रगति के कारण इंस्टॉलेशन लक्ष्य से काफी पीछे हैं। किसानों को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ रही है और भारी कागजी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सौर योजनाएं किसानों को सशक्त करने की बजाय उन्हें पीछे छोड़ती दिख रही हैं।
पश्चिमी मध्य प्रदेश के सीमांत किसान रमेश चौधरी लगभग दो वर्षों से आवेदन पत्रों का पुलिंदा लेकर चल रहे हैं। इसमें बैंक फॉर्म, पहचान पत्र, पैनल में शामिल विक्रेताओं के कोटेशन आदि रहते हैं। वे इस उम्मीद में हैं कि PM-KUSUM योजना से उनकी पुरानी डीजल पंप को सौर पंप से बदलने का सपना पूरा होगा।
वे बताते हैं, “उन्होंने कहा था तीन महीने लगेंगे, लेकिन लगभग दो साल हो गए।” उनकी यह निराशा मराठवाड़ा से सौराष्ट्र तक सूखा प्रभावित जिलों के हजारों किसानों की कहानी को दोहराती है। ये किसान कभी सोलर पंप को सिंचाई का भरोसेमंद साधन मान रहे थे, लेकिन अब वे लंबी कतारों, वित्तीय मदद में देरी और खराब विक्रेता सेवाओं में फंसे हुए हैं।
एक संसदीय समिति ने पिछले हफ्ते संसद में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में इन चिंताओं को दोहराया और चेतावनी दी कि किसानों के लिए बनाई गई भारत की प्रमुख सौर योजनाएँ—PM-KUSUM और पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना—अपने लक्षित लाभार्थियों तक पहुंचने में संघर्ष कर रही हैं। समिति ने कहा कि भले ही लक्ष्य में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, लेकिन जमीनी प्रगति उम्मीद से काफी कम है, जिसके कारण किसान प्रक्रियागत अड़चनों में उलझे हुए हैं।
2019 में लॉन्च हुई PM-KUSUM योजना का उद्देश्य डीजल और अनियमित ग्रिड बिजली पर निर्भरता को कम करना और किसानों को स्वतंत्र ऊर्जा उपलब्ध कराना था। इसके लिए स्टैंडअलोन सोलर पंप, ग्रिड-कनेक्टेड पंपों को सौर ऊर्जा से चलाना और किसानों की भूमि पर छोटे सौर संयंत्र स्थापित किए जाने थे। लेकिन प्रगति कई स्तरों पर रुक गई है।
जुलाई 2025 तक 12.7 लाख स्वीकृत स्टैंडअलोन पंपों में से सिर्फ 8.5 लाख ही स्थापित हो सके। ग्रिड-कनेक्टेड पंप भी 36 लाख के आवंटन के मुकाबले केवल 6.5 लाख पर रुका है। किसानों की जमीन पर 500 किलोवाट से 2 मेगावाट तक के सौर संयंत्र लगाना 10,000 मेगावाट के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 641 मेगावाट तक पहुंचा है। ये आंकड़े बताते हैं कि योजना कागजों पर आगे बढ़ रही है, खेतों में नहीं।
समिति ने वित्तपोषण को मुख्य बाधा बताया है। कृषि अवसंरचना फंड के तहत सभी घटकों को लाने के बावजूद, बैंकों ने आवश्यकतानुसार ऋण स्वीकृत नहीं किए। फरवरी 2025 तक बैंकों को 1,254 आवेदन मिले, जिनमें से 922 स्वीकृत हुए पर सिर्फ 891 में ऋण का वितरण हुआ। बाकी आवेदन या तो फंस गए या अस्वीकृत हुए। बैंक अक्सर अतिरिक्त दस्तावेज या गारंटी मांगते हैं, जो योजना में अनिवार्य नहीं है। किसानों ने कई बार बताया कि विक्रेता इंस्टॉलेशन से पहले एडवांस भुगतान मांगते हैं, जिससे उनका बोझ और बढ़ जाता है।
विक्रेताओं की आफ्टर-सेल्स सर्विस भी बड़ी चिंता है। कई राज्यों ने स्वीकार किया कि विक्रेता जिला स्तर पर आवश्यक सेवा केंद्र स्थापित नहीं कर पाए और न ही निरंतर आफ्टर-सेल्स सपोर्ट दिया। अनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों में पंप का हफ्तों तक बंद रहना फसल नुकसान का कारण बन सकता है। रिपोर्ट में लिखा है, “बीजाई के मौसम में न चलने वाला सोलर पंप, पंप न होने से भी खराब है।”
राज्यों के बीच असमान कार्यान्वयन भी बड़ी चुनौती है। महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में अधिक स्थापना हुई है, जबकि बिहार, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल काफी पीछे हैं। फीडर-स्तरीय सौर वितरण कंपनियों के लिए अधिक लाभकारी है, लेकिन किसानों को सीधा फायदा कम मिलता है, जबकि व्यक्तिगत पंप को सौर ऊर्जा से चलाना उन्हें अतिरिक्त बिजली बेचकर आय अर्जित करने का अवसर देता है।
कंपोनेंट-A, जिसका उद्देश्य किसानों को अपनी जमीन पर सौर संयंत्र स्थापित कर अतिरिक्त आय देना था, लगभग ठप है। समिति ने इसका कारण भूमि सत्यापन में देरी, इक्विटी जुटाने में मुश्किलें और डिस्कॉम द्वारा पावर परचेज एग्रीमेंट समय पर न करना बताया है।
नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने मौजूदा इंस्टॉलेशन से 34 करोड़ लीटर डीजल की बचत और कार्बन डाई ऑक्साइड में चार करोड़ टन वार्षिक कटौती का दावा किया है। लेकिन समिति का कहना है कि यदि संरचनात्मक समस्याएं दूर हों, तो प्रभाव इससे कहीं अधिक हो सकता है।
रमेश चौधरी कहते हैं, “डीजल महंगा है, बिजली अविश्वसनीय। मैंने सोचा था सोलर मुझे इन सबसे मुक्त कर देगा, लेकिन अब मैं बैंकों, विक्रेताओं और कागजों के बीच फंस गया हूँ।” समिति का कहना है, किसान मात्र लाभार्थी नहीं, बल्कि भागीदार भी हैं। जब तक वित्तपोषण सरल नहीं होता, विक्रेता जवाबदेह नहीं बनते और पिछड़े राज्य गति नहीं पकड़ते, भारत का सौर ऊर्जा की ओर बदलवा उन्हीं किसानों को पीछे छोड़ देगा, जिनके लिए यह बनाया गया था।

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