कर्नाटक के जरिये मंडल-2 का आगाज के संकेत, सिद्धारमैया मंत्रिमंडल में सोशल इंजीनियरिंग की दिखी छाप

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला पूरी तरह से कामयाब रहा है। इसी के बूते उसने भाजपा के हिंदुत्व के फार्मूले को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। इसे देखते हुए अब इस बात की संभावना ज्यादा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इसी फार्मूले पर आगे बढ़ते हुए भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे को कड़ी टक्कर देंगे यानी कर्नाटक के जरिये देश की राजनीति में मंडल-2 का आगाज हो सकता है। कर्नाटक की प्रचंड जीत के पीछे सोशल इंजीनियरिंग ही वह फॉर्मूला था जिसको लेकर कांग्रेस आगे बढ़ रही थी। उसकी छाप सरकार गठन में भी देखने को मिली।

कर्नाटक के जरिये मंडल-2 का आगाज के संकेत, सिद्धारमैया मंत्रिमंडल में सोशल इंजीनियरिंग की दिखी छाप
सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाते राज्यपाल थावरचंद गहलोत।

कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही कर्नाटक में 10 साल बाद कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार का गठन हो गया। बेंगलुरु के कांटेरावा स्टेडियम में शनिवार को आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में सिद्धारमैया के साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के अलावा 8 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सभी को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाई। शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के कई प्रमुख चेहरों को इकट्ठा कर कांग्रेस ने विपक्षी एकजुटता का संदेश देने का प्रयास किया। इसके अलावा सरकार में जिन नेताओं को मंत्री बनाया गया है उसके जरिये सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को भी साधने की कोशिश की गई है।  

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला पूरी तरह से कामयाब रहा है। इसी के बूते उसने भाजपा के हिंदुत्व के फार्मूले को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। इसे देखते हुए अब इस बात की संभावना ज्यादा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इसी फार्मूले पर आगे बढ़ते हुए भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे को कड़ी टक्कर देंगे यानी कर्नाटक के जरिये देश की राजनीति में मंडल-2 का आगाज हो सकता है। कर्नाटक की प्रचंड जीत के पीछे सोशल इंजीनियरिंग ही वह फॉर्मूला था जिसको लेकर कांग्रेस आगे बढ़ रही थी। उसकी छाप सरकार गठन में भी देखने को मिली।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अति पिछड़ी जाति कुरबा से आते हैं जो कर्नाटक की तीसरी बड़ी पिछड़ी जाति है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय के हैं जो मजबूत पिछड़ी जाति है। जिन अन्य 8 मंत्रियों ने शपथ ली है उनमें प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे दलित जाति होल्या से हैं। दलितों में होल्या की स्थिति काफी मजबूत मानी जाती है। केएच मुनियप्पा भी दलित जाति मडिगा से हैं जिन्हें मंत्री बनाया गया है। इनके अलावा एमबी पाटिल लिंगायत समुदाय से और सतीश जारकी होली अनुसूचित जनजाति वाल्मीकि-आदिवासी समुदाय के हैं। मुस्लिम चेहरे के रूप में जमीर अहमद खान को और ईसाई चेहरे के तौर पर केजे जॉर्ज को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। अगड़ी जाति रेड्डी समुदाय से रामालिंगा रेड्डी को मंत्री बनाया गया है।

सिद्धारमैया के सामने यह बड़ी चुनौती थी कि मंत्रिमंडल में सभी समुदायों, धर्मों, वर्गों और पुरानी एवं नई पीढ़ी के नेताओं का प्रतिनिधित्व हो। उन्होंने सटीक संतुलन साध कर यह संदेश देने की पूरी कोशिश की है कि भाजपा के हिंदुत्व की काट सोशल इंजीनियरिंग ही निकाल सकती है और आगे भी इसी रास्ते पर बढ़ा जाए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी भी इसी ओर इशारा कर रही है क्योंकि कर्नाटक की तरह बिहार में भी भाजपा के हिंदुत्व को सोशल इंजीनियरिंग से ही कड़ी टक्कर मिल रही है। कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान भी राहुल गांधी ने नीतीश कुमार के जातीय जनगणना के मुद्दे का समर्थन करते हुए जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के पुराने नारे को फिर से हवा देने की कोशिश की थी।  

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कर्नाटक में इस बार कांग्रेस का खास फोकस दलितों, अल्पसंख्यकों और ओबीसी पर था। इन्हें साधने में पार्टी पूरी तरह से सफल रही है। टिकटों के बंटवारे में भी इसका ध्यान रखा गया। राज्य में जीत हासिल करने के लिए पार्टी ने जो फॉर्मूला आजमाया उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आजमाने की तैयारी है। 90 के दशक में रामजन्म भूमि पर मंदिर बनाने के आंदोलन के जरिये भाजपा ने हिंदुत्व को अपना प्रमुख मुद्दा बना लिया जिसके काट के रूप में पिछड़ों को आरक्षण देने का राजनीतिक दांव चला गया। मंडल बनाम कमंडल की यह राजनीति करीब दो दशक तक चलती रही जिसमें मंडल कमंडल पर, खासतौर से उत्तर भारत में भारी पड़ा। बाद में कमंडल राजनीतिक तौर पर धीरे-धीरे मजबूत होता गया और मंडल की राजनीति पिछड़ने लगी। मगर कर्नाटक ने एक बार फिर से कमंडल को पछाड़ कर मंडल की राजनीति को न सिर्फ जिंदा कर दिया है बल्कि मजबूत बनाने की राह भी दिखा दी है।       

शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू सहित कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। विपक्षी नेताओं में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती, सीपीएम के सीताराम येचुरी सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने भी समारोह में शिरकत की।

कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर, भाजपा ने 66 सीटों पर और जेडीएस ने 19 सीटों पर जीत हासिल की है।

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