टमाटर के पकने में जीन की भूमिका पर शोध, इससे बढ़ सकती है शेल्फ लाइफ

हैदराबाद विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीन और उस तरीके का पता लगाने में सफलता हासिल की है जिनसे उचित तरीके से पकने वाले फलों और ज्यादा शेल्फ लाइफ वाले टमाटर का उत्पादन किया जा सकता है

टमाटर के पकने में जीन की भूमिका पर शोध, इससे बढ़ सकती है शेल्फ लाइफ

हम सब चाहते हैं कि हमारे खाने की मेज पर जो भी फल और सब्जियां रहें, वे ताजी, रंगीन और स्वास्थ्यवर्धक हों। खाने-पीने के विज्ञापनों में जो तस्वीरें दिखाई जाती हैं उनमें भी अक्सर इन बातों का ख्याल रखा जाता है। लेकिन कोई व्यक्ति यह कैसे सुनिश्चित करे कि सब्जियां ताजी और स्वादिष्ट हैं, अथवा फल पके हुए हैं और उनका रंग अच्छा है। किसान खेतों में तो अपना सर्वश्रेष्ठ देते ही हैं। अब वैज्ञानिक जेनेटिक्स में अपनी जानकारी का इस्तेमाल उपभोक्ताओं के लिए इन बातों को तय करने में इस्तेमाल कर रहे हैं।
अब यह बात पूरी तरह स्थापित हो चुकी है कि पौधों के बढ़ने, उनमें फूल और फल लगने में जीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छी क्वालिटी के जीन का मतलब है कि पौधे की उस किस्म की उत्पादकता बेहतर होगी, कीटों से बचाव और सूखा आदि से निपटने में भी सक्षम होगा। अगर आप चाहते हैं कि फल अच्छी तरह पक जाएं, उनका रंग अच्छा हो तो उसके लिए आपको उन जीन के बारे में समझना जरूरी है जो इनके लिए जिम्मेदार होते हैं। 
हैदराबाद विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीन और उस तरीके का पता लगाने में सफलता हासिल की है जिनसे उचित तरीके से पकने वाले फलों और ज्यादा शेल्फ लाइफ वाले टमाटर का उत्पादन किया जा सकता है।

अब तक किया गया शोध
गूदेदार फलों के पकने में एथिलीन की भूमिका के बारे में तो सब जानते हैं। टमाटर जैसी फसलों में एथिलीन के बायोसिंथेसिस और सिग्नलिंग के बारे में काफी अध्ययन किया जा चुका है। अब फलों को पकाने में काम आने वाले कई तरह के एथिलीन रिस्पांस फैक्टर (ERF) जीन की पहचान की गई है जो गूदेदार फलों के पकने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। हालांकि एथिलीन के कारण पकने की प्रक्रिया में जेनेटिक रेगुलेटरी मेकैनिज्म कैसे काम करता है इसे पूरी तरह समझा जाना अभी बाकी है।
वैज्ञानिक उन मॉलिक्यूलर गुणों को समझने का प्रयास कर रहे हैं जिनसे फलों के फ्लेवर, रंग और उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए एक प्रभावी बायोटेक्नोलॉजिकल पद्धति विकसित की जा सके। ज्यादा शेल्फ लाइफ वाले पौधों की किस्म से फलों और सब्जियों की तुड़ाई के बाद (पोस्ट हार्वेस्टिंग) होने वाले नुकसान को ट्रांसपोर्टेशन तथा भंडारण के समय कम किया जा सकता है। ऐसी बेहतर किस्मों से किसानों को भी फायदा होगा। उन्हें निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलेगा। दूसरी ओर उपभोक्ताओं को भी ताजी और अच्छी क्वालिटी की फल सब्जियां मिलेंगी।

क्या है नया शोध
वनस्पति विज्ञानी हैदराबाद यूनिवर्सिटी के डॉ राहुल कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण के शर्मा की अगुवाई में एक ताजा शोध किया गया है जिसमें टमाटर को पकाने में काम आने वाले ERF जीन SlERF.D7 का पता लगा है।
शोधकर्ताओं की टीम ने SlERF.D7 का कई तरीके से इस्तेमाल किया। एक तरीके में उन्हें ज्यादा लाल और अधिक लाइकोपिन स्तर वाले टमाटर मिले। दूसरी तरफ SlERF.D7 RNAi साइलेंट वाले फलों में रंग तो हल्का था लेकिन वह ज्यादा सख्त थे।
इस प्रक्रिया को देखने के बाद शोधकर्ताओं ने यह देखा कि SlERF.D7 कैसे काम करता है। उनके अध्ययन से टमाटर पकने की प्रक्रिया में मॉलिकुलर रेगुलेशन के बारे में नई जानकारियां मिलीं।
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रिया गंभीर और सहयोगी विजेंद्र सिंह, अद्वैत परीदा, उत्कर्ष रघुवंशी और अरुण कुमार शर्मा तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर राहुल कुमार का यह साझा शोध प्लांट फिजियोलॉजी पत्रिका में सितंबर 2022 में प्रकाशित हुआ है। प्लांट फिजियोलॉजी अमेरिकन सोसायटी ऑफ प्लांट बायोलॉजी द्वारा प्रकाशित एक विज्ञान पत्रिका है।

हैदराबाद विश्वविद्यालय में सुविधा
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने वर्ष 2021-25 के लिए 6.18 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। यह ‘रिसर्च एंड सर्विस फैसिलिटी फॉर प्लांट मेटाबोलोमिक्स एंड प्रोटियोमिक्स’ प्रोजेक्ट के लिए है। विभाग ने इस फंड की मंजूरी हैदराबाद विश्वविद्यालय के रिपोजिटरी ऑफ टोमेटो जिनोमिक्स रिसोर्सेज (RTGR) को दी है।
RTGR की स्थापना 2010 में की गई थी। उसका उद्देश्य टमाटर के जिनोमिक्स, प्रोटियोमिक्स और मेटाबोलोमिक्स के क्षेत्र में एडवांस वैज्ञानिक शोध करना था। RTGR में होने वाले शोध और उसकी सर्विसेज हैदराबाद विश्वविद्यालय तथा अन्य अकादमिक संस्थानों, उद्योगों, बीज कंपनियों को शुल्क के बदले मुहैया कराई जाती है।
RTGR मेटाबोलोमिक और प्रोटियोमिक डाटा विश्लेषण का भी प्रशिक्षण देता है। इसके लिए वह हर साल वर्कशॉप का आयोजन करता है। RTGR में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ वाई श्रीलक्ष्मी इस प्रोजेक्ट को कोऑर्डिनेट करेंगी। आगे यह फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषण के मामले में भी राष्ट्रीय स्तर पर शोध करेगा।

(एम. सोमशेखर, हैदराबाद के स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह डेवपलमेंट से संबंधित मुद्दों, साइंस, टेक्नोलॉजी, कृषि, बिजनेस  और स्टार्ट-अप पर  विशेषज्ञता रखते हैं )

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