सिविल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय पौध संधि को खारिज करने की अपील, कहा- इससे भारत की जैव-संपदा को खतरा

किसान संगठनों और सिविल सोसायटी समूहों ने ITPGRFA में प्रस्तावित संशोधनों को भारत की जैव-संपदा और किसानों के अधिकारों के लिए खतरा बताया है। उनका कहना है कि मल्टीलेटरल सिस्टम का विस्तार भारत की संप्रभुता को कमजोर करेगा और बीजों को वैश्विक कंपनियों के लिए खोल देगा। उन्होंने सरकार से पारदर्शिता, ट्रैकिंग और जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा संशोधनों को खारिज करने की मांग की है।

सिविल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय पौध संधि को खारिज करने की अपील, कहा- इससे भारत की जैव-संपदा को खतरा

एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (ASHA) और कई सिविल सोसायटी संगठनों ने केंद्र सरकार से अंतरराष्ट्रीय पौध संधि (ITPGRFA) में प्रस्तावित संशोधनों को तुरंत खारिज करने की अपील की है। 15 नवंबर 2025 को केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री और पर्यावरण मंत्री को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि ये संशोधन भारत की कृषि जैव-संपदा पर गंभीर खतरा पैदा करते हैं। 

सबसे चिंताजनक प्रस्ताव है मल्टीलेटरल सिस्टम (MLS) का विस्तार, जिसके तहत लगभग सभी प्लांट जेनेटिक संसाधनों को विकसित देशों की बीज कंपनियों के लिए खुला कर दिया जाएगा। संगठन कहते हैं कि इससे भारत अपने बीजों पर नियंत्रण खो देगा और निर्णय लेने की क्षमता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चली जाएगी। 

इस विषय पर आयोजित परामर्श बैठक में यह दावा किया गया था कि भारत अपनी इच्छा से यह तय कर सकेगा कि वह कौन-सी फसलें साझा करेगा। लेकिन संगठनों ने अनुच्छेद 11, 12 और 30 का हवाला देते हुए कहा कि इस संधि में शामिल होने पर कोई आरक्षण स्वीकार नहीं किया जाएगा। यानी सभी PGRFA साझा करना अनिवार्य हो जाता है। यह भारत के जैव विविधता अधिनियम 2002 और पीपीवीएफआर अधिनियम 2001 के विपरीत है।

पत्र में जर्मप्लाज्म एक्सचेंज (NBPGR) के प्रभारी अफसर डॉ. सुनील आर्चक की कई बातों पर भी आपत्ति जताई गई है, जिनमें यह दावा भी शामिल है कि भारत अपने किसानों की किस्मों को MLS में साझा नहीं करता है। जबकि ITPGRFA वेबसाइट के अनुसार भारत अब तक 4 लाख से अधिक बीज के नमूने, जिनमें किसानों की किस्में भी शामिल हैं, साझा कर चुका है। 

संगठनों ने यह भी कहा कि सोयाबीन, टमाटर, पाम ऑयल और मूंगफली जैसी चार फसलों की आनुवंशिक सामग्री पाने के लिए भारत को अपनी संप्रभुता नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि इन फसलों में भारत खुद समृद्ध विविधता रखता है और MLS के अतिरिक्त अन्य मार्ग भी उपलब्ध हैं। MLS की पारदर्शिता और ट्रैकिंग की कमी को “गंभीर विफलता” बताते हुए संगठनों ने चेतावनी दी कि इससे डिजिटल बायोपायरेसी और अनियंत्रित डेटा-निकासी को बढ़ावा मिलेगा। 

पत्र में सरकार से मांग की गई है कि वह इन संशोधनों को खारिज करे, MLS से जुड़े सभी उपयोगकर्ताओं की सूची सार्वजनिक कराए, गोपनीयता प्रावधानों का विरोध करे, DSI/जीनोमिक डेटा की निगरानी सुनिश्चित करे और GB11 में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक अनुभवी वार्ताकार की नियुक्ति करे। पत्र के अंत में कहा गया है कि किसानों द्वारा पीढ़ियों से संरक्षित भारत की जैव-संपदा को किसी भी स्थिति में बिना सुरक्षा उपायों के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में नहीं जाने देना चाहिए।

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