राजनीतिक दलों के मेनिफेस्टो में छाया एमएसपी का मुद्दा, किसान आंदोलनों का असर

पिछले तीन साल में एमएसपी का मुद्दा इतना जोर पकड़ चुका है कि राजनीतिक दलों के लिए इसकी अनदेखी करना मुश्किल है।

राजनीतिक दलों के मेनिफेस्टो में छाया एमएसपी का मुद्दा, किसान आंदोलनों का असर
फाइल फोटो

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 में हुए किसान आंदोलन के बाद फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी का मुद्दा किसान यूनियनों की प्रमुख मांग के तौर पर उभरकर सामने आया है। पिछले तीन साल में यह मुद्दा इतना जोर पकड़ चुका है कि राजनीतिक दलों के लिए इसकी अनदेखी करना मुश्किल हो गया है। लोकसभा चुनाव के लिए जारी सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के घोषणा-पत्र में एमएसपी का मुद्दा छाया हुआ है। हालांकि, कानूनी गारंटी के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के स्टैंड में अंतर है।

कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में किसान न्याय के तौर पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार एमएसपी की कानूनी गारंटी देने का वादा किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में किसानों की इस मांग का समर्थन कर चुके हैं। एमएसपी की कानूनी गारंटी देने से सरकारी खजाने पर अत्यधिक बोझ पड़ने के दावों को भी कांग्रेस खारिज करती रही है। 

मोदी की गारंटी के तौर पर पेश भाजपा के घोषणा-पत्र में एमएसपी की कानूनी गारंटी तो नहीं है, लेकिन फसलों के एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी का वादा किया गया है। एमएसपी कितना बढ़ेगा इसका कोई जिक्र नहीं है। उधर, आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल की छह गारंटियों के तौर पर किसानों को स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक एमएसपी निर्धारित कर फसलों के पूरे दाम दिलवाने का वादा किया है। हालांकि, एमएसपी की कानूनी गांरटी को लेकर आम आदमी पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं है। 

उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने कानूनी गारंटी के रूप में सभी किसानों को एमएसपी देने का वादा किया है। सपा के घोषणा-पत्र के अनुसार, दूध सहित सभी फसलों के लिए एमएसपी होगा तथा एमएसपी का निर्धारण स्वामीनाथन फार्मूले (C2 +50%) के आधार पर किया जाएगा।

बिहार के प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी ने अपने घोषणा-पत्र में किसानों को 10 फसलों पर एमएसपी और स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके ने भी एमएसपी के संबंध में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात कही है।

एमएसपी के मुद्दे को नजरअंदाज करना अब राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल हो गया है। लगातार चले किसान आंदोलनों के कारण यह मुद्दा आम किसान तक पहुंच चुका है। आंदोलन के चलते तीन कृषि कानून वापस हुए साथ ही उसने किसानों के बीच एमएसपी को लेकर देश भर में जागरूकता पैदा कर दी। इसका असर लोक सभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों द्वारा जारी मैनिफेस्टों में साफ दिख रहा है।

एमएसपी के मुद्दे पर किसानों के लगातार संघर्ष के कारण आम जनता की धारणा भी बदली है। 19 राज्यों में हुए सीएसडीएस प्री-पोल सर्वे के मुताबिक, 59 फीसदी लोग मानते हैं कि किसानों की मांगें जायज हैं और उन्हें विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकार है। यानी किसानों की मांगों को देश भर में व्यापक समर्थन मिल रहा है।  

 

हरियाणा-पंजाब बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल बीकेयू (शहीद भगत सिंह) के नेता तेजवीर सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग किसानों का बड़ा मुद्दा है। किसान आंदोलन नहीं होता तो एमएसपी का जिक्र भी राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र में न होता। एमएसपी के मुद्दे को देश के कोने-कोने तक पहुंचाना किसान आंदोलनों की बड़ी उपलब्धि है।  

किसान आंदोलन में शामिल रहे तराई किसान संगठन के नेता तजिंदर सिंह विर्क का कहना है कि भाजपा के घोषणा-पत्र से स्पष्ट है कि वह किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं देना चाहती है। जबकि कांग्रेस और सपा में साफ तौर पर एमएसपी की कानूनी गारंटी देने का वादा किया है। विर्क का मनाना है कि किसान संगठनों के दबाव के चलते ही एमएसपी राष्ट्रव्यापी मुद्दा बना है।        

पिछले दो महीने से हरियाणा-पंजाब के शम्भू और खन्नौरी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के नेतृत्व में आंदोलन कर रहे किसान संगठन जोरशोर से एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग उठा रहे हैं। इस किसान आंदोलन ने लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा, पंजाब और इनसे लगते राजस्थान के इलाकों में सियासी माहौल गरमा दिया है। कई जगह भाजपा और जेजेपी के नेताओं को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

2021 में दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार ने किसानों से एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर विचार करने सहित कई वादे किये थे। करीब ढ़ाई साल गुजरने के बाद भी केंद्र सरकार की ओर से एमएसपी के मुद्दे पर गठित कमेटी अपनी रिपोर्ट नहीं दे पायी। इस बीच, किसान संगठन अपनी मांग पर अड़े रहे और एमएसपी का मुद्दा बड़ा बनता गया।    

 

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