मखाना किसानों के चेहरों पर लौटी मुस्कान, गुर्री का भाव पहुंचा 17 हजार रुपये प्रति क्विंटल

बिहार का कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र मखाना की खेती के लिए मशहूर है। इसे उजला सोना भी कहा जाता है। पिछले साल उत्पादन में तेज बढ़ोतरी की वजह से मखाना गुर्री या गुड़िया (कच्चा मखाना) का भाव गिरकर औसतन 5,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया था जिससे किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। यहां तक कि इस भाव पर भी इसके खरीदार नहीं मिल रहे थे। मगर इस साल कच्चा मखाना का भाव फिर से वर्ष 2021 के स्तर पर पहुंच गया है जिससे किसानों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है। फिलहाल मुखाना गुर्री का भाव 15-17 हजार रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।

मखाना किसानों के चेहरों पर लौटी मुस्कान, गुर्री का भाव पहुंचा 17 हजार रुपये प्रति क्विंटल

बिहार का कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र मखाना की खेती के लिए मशहूर है। इसे उजला सोना भी कहा जाता है। इस साल कच्चा मखाना का भाव फिर से वर्ष 2021 के स्तर पर पहुंच गया है जिससे किसानों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है। फिलहाल मुखाना गुर्री का भाव 15-17 हजार रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। पिछले साल उत्पादन में तेज बढ़ोतरी की वजह से मखाना गुर्री या गुड़िया (कच्चा मखाना) का भाव गिरकर औसतन 5,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया था जिससे किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। यहां तक कि इस भाव पर भी इसके खरीदार नहीं मिल रहे थे। 

दरअसल, मखाना की खेती और उत्पादन बढ़ाने के लिए बिहार और केंद्र की सरकार ने योजनाएं शुरू की हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती के लिए प्रेरित हुए हैं। मखाना की खेती से होने वाले मुनाफे ने भी किसानों को आकर्षित किया है। सरकार ने उत्पादन बढ़ाने की तो योजनाएं बनाई लेकिन उत्पादन के मुकाबले बाजार विकसित करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। यही वजह है कि पिछले साल मखाना का रकबा बढ़ने की वजह से उत्पादन में तेज बढ़ोतरी हुई तो बाजार भाव आसमान से जमीन पर आ गया।

यहां एक बात और समझने वाली है कि मखाना की खेती आमतौर पर गड्ढे वाली जमीन या जल जमाव वाली जमीन या फिर वैसी जमीन में की जाती है जिसमें हमेशा पानी जमा रहने की वजह से दूसरी फसल बोई नहीं जा सकती है। बिहार के कोसी, सीमांचल और मिथलांचल क्षेत्र में ऐसी जमीनें बहुतायत में हैं और ये बाढ़ प्रभावित इलाके हैं। मगर उत्पादन बढ़ाने की सरकार की योजनाओं से प्रेरित होकर किसानों ने उन खेतों में भी गड्ढा कर मखाना लगाना शुरू कर दिया जिसमें दूसरी फसल बोई जाती थी। ऐसे खेतों में पहली बार मखाना लगाने पर लागत ज्यादा आती है। वर्ष 2022 में ऐसे किसानों की संख्या बहुत ज्यादा थी जिन्होंने ज्यादा मुनाफे के लालच में दो फसली या तीन फसली जमीनों में भी मखाना की खेती की। इससे उत्पादन तो बढ़ा लेकिन बाजार भाव काफी गिर गया जिससे उन्हें नुकसान झेलना पड़ा।

सीमांचल क्षेत्र के मुख्यालय पूर्णिया जिले के गढ़िया बलुआ गांव निवासी कन्हैया कुमार मेहता पिछले एक दशक से मखाना की खेती कर रहे हैं। मखाना खेती की बारिकियों से वह अच्छी तरह से परिचित हैं। उन्होंने रूरल वॉयस को बताया, “जिन किसानों ने खेतों में गड्ढा कर मखाना की खेती शुरू की थी पिछले साल हुए भारी नुकसान की वजह से उन्होंने इस साल इसकी खेती से दूरी बना ली और उन खेतों में दूसरी फसल लगाई ताकि घाटे से उबरा जा सके। मखाना खेती से मुनाफे का आकर्षण उन्हें इस ओर खींच लाया था मगर नुकसान ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया, खासकर उनकी जिन्होंने पिछले साल पहली बार इसकी खेती की थी। ऐसे नए किसानों की तादाद जिले में बहुत ज्यादा थी। इस वजह से भी पिछले साल भाव काफी गिर गया था। मगर इस साल भाव फिर से 2021 के स्तर पर पहुंच गया है। मैंने 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर कच्चा मखाना बेचा है।”

मखाना प्रोसेसिंग से जुड़े कारोबारी और फार्म टू फैक्ट्री के संचालक मनीष कुमार कहते हैं, “पिछले साल लंबे समय बाद ऐसा हुआ था जब मखाना किसानों को भाव गिरने की वजह से नुकसान उठाना पड़ा था। इस साल अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चा मखाना का भाव 17 हजार रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया है। इससे किसानों की मुस्कान फिर लौट आई है। सरकार अगर मखाना की खेती और उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है तो बाजार विकसित करने पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। मखाना औषधीय गुणों से भरपूर एवं सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसके इस्तेमाल के लिए और ज्यादा प्रचार-प्रसार की जरूरत है जिससे इसका बाजार और बढ़ाने में मदद मिलेगी।”

मखाना गुर्री का भाव भले ही 2021 के स्तर पर पहुंच गया है लेकिन इस साल बिहार में कम बारिश होने की वजह से किसानों के मुनाफे में गिरावट आई है, खासकर जून महीने में मखाना खेती वाले इलाकों में सामान्य से 40 फीसदी से भी कम बारिश हुई। इसकी वजह से सिंचाई की लागत बढ़ गई। दरअसल, मखाना के खेत में हमेशा एक तय स्तर तक पानी रहना जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर पैदावार और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। जून में बहुत कम बारिश होने और गर्मी ज्यादा पड़ने की वजह से किसानों को खेतों में तय स्तर तक पानी रखने के लिए सिंचाई ज्यादा करनी पड़ी जिससे लागत में इजाफा हुआ और मुनाफा घट गया। उन किसानों के मुनाफे में ज्यादा गिरावट आई है जिन्हें डीजल वाले पंप सेट के जरिये सिंचाई करनी पड़ती है। महंगे डीजल की वजह से खेती की उनकी लागत पहले के मुकाबले ज्यादा रही।

मखाना की बुवाई फरवरी-मार्च में होती और जुलाई-अगस्त में इसे निकाला जाता है। बिहार के कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल के जिलों में मखाना के कुल उत्पादन का करीब 90 फीसदी उत्पादन होता है। बाकी 10 फीसदी उत्पादन बंगाल और ओडिशा में होता है। बिहार के मखाना उत्पादन वाले जिलों में पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और पश्चिम चंपारण शामिल हैं। पूर्णिया से सटे हरदा में मखाना की सबसे बड़ी मंडी है।

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