खाद्यान्न की उत्पादकता और उनका उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या कदम हैं जरूरी

फसल और इकोसिस्टम दोनों हिसाब से अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से नीतिगत समर्थन की जरूरत है। किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज और कर्ज देने तथा बेहतर खेती के तौर तरीके बताने की भी जरूरत है ताकि उत्पादकता बढ़ाई जा सके। बायोफोर्टीफाइड वैरायटी/हाइब्रिड का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए। हाइब्रिड फसलों के लिए बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) हो और हाइब्रिड चावल अनुसंधान बीज उत्पादन और एक्सटेंशन एजेंसियों के बीच बेहतर लिंकेज हो। जिनोम एडिटिंग (CRISPR/Cas9) जैसी नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तत्काल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है

खाद्यान्न की उत्पादकता और उनका उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या कदम  हैं  जरूरी
प्रतीकात्मक फोटो

भारत की आबादी अभी 139 करोड़ है और 2030 तक इसके 151 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। 2030 तक देश में लगभग 35.5 करोड़ टन अनाज की जरूरत पड़ेगी। यानी अभी की तुलना में 5 करोड़ टन अधिक। इसका मतलब है हर साल अनाज उत्पादन लगभग 50 लाख टन बढ़ाना पड़ेगा। ऐसे में मौलिक सवाल उठता है कि अनाज उत्पादन में क्या भारत आत्मनिर्भर बना रहेगा। उत्पादन बढ़ाने की चुनौती सचमुच गंभीर है क्योंकि प्रति व्यक्ति औसत जमीन और सिंचाई के लिए पानी, दोनों कम होते जा रहे हैं। इसके अलावा बायोटिक और एबायोटिक दबाव बढ़ता जा रहा है।

दुनिया की आबादी 2050 तक 980 करोड़ हो जाएगी। यह विश्व की मौजूदा आबादी से 34 प्रतिशत अधिक होगी। संयुक्त राष्ट्र की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 79.46 करोड़ अल्प पोषित लोगों में 77.99 करोड़ लोग विकासशील देशों में रहते हैं। अनुमान है कि अगर खानपान का मौजूदा पैटर्न, आमदनी और खपत की परिस्थितियां यही बनी रहीं तो विश्व को 70% अधिक खाद्य पदार्थ की जरूरत पड़ेगी (एफएओ 2009)।

यील्ड यानी उत्पादकता में अंतर कम करने में आ रही दिक्कतों पर चर्चा करने और अनाज उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाने की रणनीति पर सुझाव देने के लिए तटस्थ थिंक टैंक ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने आईआरआरआई (IRRI), इक्रीसैट और आईसीएआरडीए के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। यह आयोजन 26 अगस्त 2021 को हुआ था। केंद्र और राज्य सरकारों, सीजी सेंटर, वैज्ञानिक संस्थाओं, प्राइवेट बीज उद्योग और किसान संगठनों के 119 प्रतिभागियों ने उस कार्यशाला में हिस्सा लिया।

कार्यशाला के तीन प्रमुख उद्देश्य थे। पहला, यील्ड गैप कम करने के लिए फसल के हिसाब से क्षेत्रों पर चर्चा करना और उन्हें लक्षित करना, दूसरा, अनाज उत्पादन बढ़ाने के मकसद से फसल और क्षेत्र के हिसाब से उत्पादकता बढ़ाने में आ रही दिक्कतों को पहचानना और उन्हें दूर करने के विकल्प तलाशना तथा तीसरा, अनाज उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ाने के लिए एक स्पष्ट स्ट्रेटजी का सुझाव देना और उसमें आने वाली दिक्कतों को पहचानना।

रणनीतिक पहल

वर्कशॉप में कई बहुमूल्य सुझाव आए और सिफारिशें दी गईं। यह महसूस किया गया कि फूड बास्केट में मौजूदा विविधीकरण को ध्यान में रखते हुए और भविष्य में खाद्य तथा चारे की जरूरतों को देखते हुए अनाज की अनुमानित मांग पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

वर्कशॉप में आईसीएआर, एनएएएस और तास की तरफ से एक साझा स्ट्रेटजी पेपर तैयार करने की जरूरत बताई गई, जिसमें भविष्य में अनाज की मांग को देखते हुए खाद्य और चारे की उपलब्धता का विश्लेषण हो। उस स्ट्रेटजी पेपर में विभिन्न अनाज फसलों की उत्पादकता में अंतर को कम करने का एक स्पष्ट रोड मैप हो, फसल वार और राज्यवार यील्ड गैप विश्लेषण हो ताकि सालाना आधार पर प्रमुख अनाजों के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया जा सके। इनके अलावा हर फसल के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट भी तैयार किया जाना चाहिए। वर्कशॉप में डीडीजी क्रॉप साइंस, डीडीजी हॉर्टिकल्चर साइंस, डीडीजी नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट और कृषि/बागवानी कमिश्नर को मिलाकर तत्काल एक समिति बनाने की सिफारिश की गई।

रिसर्च को मजबूत बनाना

जर्मप्लाज्म एनहांसमेंट और प्री-ब्रीडिंग पर जोर देने की जरूरत है। मॉलेक्युलर मार्कर असिस्टेड सिलेक्शन, जिनोमिक सिलेक्शन (GS), ट्रांसजेनिक और जिनोम एडिटिंग (CRISPR/Cas9), स्पीड ब्रीडिंग का इस्तेमाल, प्रिसीजन फेनोटाइपिंग, इम्पीरिकल ब्रीडिंग और जिनोमिक्स असिस्टेड ब्रीडिंग (GAB) का इंटीग्रेशन और डबल हैप्लॉयड टेक्नोलॉजी जैसी बायो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बेहतर वैरायटी विकसित करने में बढ़ाया जाना चाहिए। राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और आईसीएआर केंद्रों के ब्रीडर को इन टेक्नोलॉजी में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें एनआईपीबी जैसे आईसीएआर के केंद्रों और इक्रीसैट जैसे सीजीआईएआर के केंद्रों में प्रशिक्षित किया जा सकता है। आईसीएआर की तरफ से 1000 करोड़ रुपए के आवंटन से हाइब्रिड रिसर्च पर राष्ट्रीय मिशन मोड प्रोजेक्ट प्राथमिकता के आधार पर शुरू किया जाना चाहिए।

रिसर्च योग्य कई प्रमुख मुद्दों पर प्राथमिकता के आधार पर गौर किया जाना चाहिए। इनमें कुछ प्रमुख मुद्दे हैं- चावल के मामले में जीनोम असिस्टेड ब्रीडिंग का इस्तेमाल एनहांस्ड जेनेटिक फायदे के लिए किया जाना चाहिए। सुपर राइस (प्रति हेक्टेयर 10 टन से अधिक उत्पादन) ज्यादातर इकोलॉजी के लिए विकसित की जानी चाहिए। रोग प्रतिरोधक क्षमता और सूखे को सहने की बेहतर क्षमता वाले हाइब्रिड गेहूं की किस्मों का विकास किया जाना चाहिए।

मक्के के मामले में जेनेटिक विविधीकरण पर फोकस किया जाना चाहिए। स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न, पॉपकॉर्न, स्पेशलिटी कॉर्न, सिंगल क्रॉस और क्यूपीएम हाइब्रिड जैसे स्पेशलिटी मक्के पर अधिक फोकस किया जाना चाहिए। ऐसा करते वक्त उसके पोषण का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। बाजरा के क्षेत्र में दोहरे उद्देश्य वाले हाइब्रिड बीजों का विकास किया जाना चाहिए। यह सबसे सूखे वाले ए1 जोन के प्रति सहनशील, डाउनी मिलडायू के प्रतिरोध, सूखे और गर्मी के प्रति सहनशील तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर हो। इसके अलावा कम अवधि में तैयार और अधिक उत्पादकता वाली दालों की वैरायटी भी विकसित की जानी चाहिए।

विकास के प्रयास

वर्कशॉप में यह महसूस किया गया कि उत्पादकता में अंतर को पाटने के लिए दो तरफा नीति अपनाने की जरूरत है। एक तो उत्पादकता बढ़ाकर वर्टिकल गैप कम करना और दूसरा अधिक क्षेत्रफल में खेती करके हॉरिजॉन्टल गैप कम करना। फसल विविधीकरण के जरिए गैर पारंपरिक फसलों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में कम अवधि में तैयार होने वाले काबुली चने की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाया जाना चाहिए। केंद्रीय और प्रायद्वीपीय क्षेत्र में काला चना, हरा चना, काबुली चना जैसी फसलों की मिश्रित खेती की जा सकती है। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में कम अवधि में तैयार होने वाली अरहर की किस्म शुरू की जा सकती है। बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में धान के खेतों में मसूर और मटर की खेती की जा सकती है। उत्तर में मूंग को ग्रीष्म फसल के तौर पर प्रमोट किया जा सकता है। उत्तर पूर्वी राज्यों में दालों तथा दक्षिण के तटीय इलाकों में उड़द तथा मूंग की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है।

राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बाजरे की उत्पादकता बढ़ाने और हाइब्रिड चावल की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। पूर्वी और मध्य भारत में चावल की जगह सिंगल क्रॉस मक्के की हाइब्रिड किस्म का क्षेत्र बढ़ाया जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल और बिहार में मक्के के साथ बोरो चावल की खेती की जानी चाहिए। फली और छोटी मिलेट की पोषण से भरपूर वैरायटी तत्काल विकसित करने की भी आवश्यकता है।

हाइब्रिड फसलों की अधिक उत्पादकता वाली किस्मों की अच्छी क्वालिटी वाले बीज तैयार करने पर फोकस किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण अनाजों के मामले में सीड रिप्लेसमेंट रेट (SRR) पर भी फोकस किया जाना चाहिए। राज्यों को सेल्फ पोलिनेटेड क्रॉप्स के लिए 35 फ़ीसदी एसआरआर और क्रॉस पोलिनेटेड क्रॉप्स के लिए 90 फ़ीसदी (एसआरआर) का लक्ष्य रखना चाहिए।

मौजूदा एक्सटेंशन सिस्टम को नए सिरे से तैयार करने की जरूरत है ताकि इसे निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी और युवाओं को शामिल करते हुए ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके। कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) तथा सरकारी निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से हर किसान विकास केंद्र (KVK) एक बेहतर जानकारी और इनोवेशन का केंद्र बन सकता है।

कृषि मंत्रालय तथा आईसीएआर के बीच एक प्रभावी समन्वय की भी जरूरत है। साथ ही राज्यों के कृषि विभागों तथा कृषि विश्वविद्यालयों के बीच भी समन्वय होना चाहिए। मृदा परीक्षण, बीज रेट, बीज ट्रीटमेंट, प्लांट पॉपुलेशन, सिंचाई शेड्यूल, बायोफर्टिलाइजर के इस्तेमाल, बायो कीटनाशकों के इस्तेमाल, अकार्बनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के लिए स्थान विशेष आधारित नीति अपनाने की भी जरूरत है।

नीतियों पर अमल

वर्कशॉप में यह महसूस किया गया कि फसल और इकोसिस्टम दोनों हिसाब से अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से नीतिगत समर्थन की जरूरत है। किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज और कर्ज देने तथा बेहतर खेती के तौर तरीके बताने की भी जरूरत है ताकि उत्पादकता बढ़ाई जा सके। बायोफोर्टीफाइड वैरायटी/हाइब्रिड का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए। हाइब्रिड फसलों के लिए बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) हो और हाइब्रिड चावल अनुसंधान बीज उत्पादन और एक्सटेंशन एजेंसियों के बीच बेहतर लिंकेज हो। जिनोम एडिटिंग (CRISPR/Cas9) जैसी नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तत्काल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

सरकारी निजी साझेदारी और नीतिगत समर्थन के जरिए हाइब्रिड और बायोफोर्टीफाइड फसलों को अधिक अपनाया जाना चाहिए। मक्का किसानों को उचित उत्पादन इंसेंटिव देकर मदद की जानी चाहिए। उन्हें बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच अंतर का भुगतान किया जाना चाहिए।

अधिक उपज वाली वैरायटी और हाइब्रिड को तेजी से अपनाने के लिए सरकार को तत्काल नया नीतिगत फैसला लेना चाहिए। इसके लिए प्रतिष्ठित रिसर्च एंड डेवलपमेंट निजी बीज कंपनियों को क्षेत्रवार विशेष लाइसेंस के अधिकार दिए जा सकते हैं, ताकि वे उस क्षेत्र विशेष में अच्छी क्वालिटी के बीज तैयार कर किसानों को बेच सकें। इसके अलावा किसानों को भी किसान संगठनों, कोऑपरेटिव, एफपीओ आदि के माध्यम से संगठित होने और इंडस्ट्री के साथ सीधे जुड़ने की जरूरत है।

(डॉ. आर.एस. परोदा,  ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज-TAAS के चेयरमैन, आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग-DARE के पूर्व सचिव हैं)

Subscribe here to get interesting stuff and updates!