गेहूं को पाले और रोग से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी, ऐसे करें बचाव

शीतलहर और कड़ाके की ठंड के बीच हरियाणा के करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने गेहूं की फसल के लिए किसानों को एडवाइजरी जारी की है। 

गेहूं को पाले और रोग से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी, ऐसे करें बचाव

रबी सीजन की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है। इस बार गेहूं की बंपर पैदावार की उम्मीद है क्योंकि गेहूं की बुवाई का रकबा बढ़कर 340 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गया है। इस वर्ष गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में काफी ठंड पड़ रही है जो गेहूं की उपज के लिए फायदेमंद है। लेकिन इस दौरान फसल को पाले और रोग से बचाना भी जरूरी है। शीतलहर और कड़ाके की ठंड के बीच हरियाणा के करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने गेहूं की फसल के लिए किसानों को एडवाइजरी जारी की है। 

आईआईडब्ल्यूबीआर की सलाह के अनुसार, नाइट्रोजन की खुराक का प्रयोग बुआई के 40-45 दिन बाद तक पूरा कर लेना चाहिए। बेहतर परिणाम के लिए सिंचाई से ठीक पहले यूरिया डालें। जिन किसानों ने देर से गेहूं की बुवाई की है और उनके खेत में संकरी या चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार हैं तो पहली सिंचाई से पहले या सिंचाई के 10-15 दिन बाद 120-150 लीटर पानी में सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यूजी 13.5 ग्राम/एकड़ या सल्फोसल्फ्यूरॉन+मेटसल्फ्यूरॉन 16 ग्राम/एकड़ की दर से 120-150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पीला रतुआ (येलो रस्ट)

गेहूं की कुछ पत्तियां मौसम की वजह से पीली होती हैं, जबकि कुछ पीले रतुआ की वजह से। जो मौसम में कोहरा धुंध होने की वजह से फसल में पीलापन आता है वह मौसम सही होते ही सही हो जाता है। लेकिन लगातार कोहरे और वातावरण में ठंड व नमी से यह रोग गेहूं की फसल में तेजी से बढ़ता है।

पीला रतुआ की पहचान

पीला रतुआ में पत्तियां धरीदार पीले रंग लाइन दिखाई देंगी। हाथों छूने पर एक पीले रंग जो हल्दी की तरह दिखने वाला एक पाउडर निकलेगा। किसान अपनी फसल पर निगरानी बनाए रखें।

पीला रतुआ के लिए सलाह

रतुआ रोग के लिए अनुकूल आर्द्र मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों को सलाह दी गई है कि वे धारीदार रतुआ (पीला रतुआ) की घटनाओं को देखने के लिए नियमित रूप से अपनी फसल का निरीक्षण करें। यदि किसान अपने गेहूं के खेतों में पीला रतुआ देखते हैं, तो निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:

  • पीला रतुआ के प्रसार को रोकने के लिए संक्रमण क्षेत्र पर प्रोपीकोनाज़ोल 25 ईसी @0.1 प्रतिशत या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी @ 0.06% का एक स्प्रे दिया जाना चाहिए।
  • एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर रसायन मिलाना चाहिए। इस प्रकार एक एकड़ गेहूं की फसल में 200 मिलीलीटर कवकनाशी को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
  • जिन किसानों ने पिछले वर्ष अपने खेते में किसी कवकनाशी का उपयोग किया है उन्हें इस वर्ष वैकल्पिक कवकनाशी का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। किसानों को मौसम साफ होने पर फसल पर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।

अगेती बोई गेहूं की फसल में लोजिंग (फसल का गिरना) नियंत्रण के लिए ग्रोथ रेगुलेटर का उपयोग किया जा सकता है। क्लोरमेक्वाट क्लोराइड (सीसीसी) 0.2% + टेबुकोनाज़ोल 250 ईसी 0.1% मिश्रण के दो स्प्रे पहले नोड (बुवाई के 50-50 दिन बाद) और ध्वज पत्ती (बुवाई के 75-85 दिन बाद) पर करें। जिन किसानों ने अगेती बुवाई वाले गेहूं पर पहला छिड़काव नहीं किया है वे बुवाई के 70-80 दिन बाद केवल एक ही छिड़काव कर सकते हैं।

पाले से बचाव के लिए किसानों को मौसम के पूर्वानुमान को ध्यान रखते हुए गेहूं की फसल में हल्की सिंचाई करने की सलाह दी जाती है।

गुलाबी छेदक का हमला उन क्षेत्रों में देखा गया है जहां विशेष रूप से धान, मक्का, कपास, गन्ना उगाया जाता है। गेहूं की फसल को मुख्यतः इल्लियों द्वारा क्षति होती है। कैटरपिलर तने में प्रवेश करता है और ऊतकों को खाता है। इससे फसल की प्रारंभिक अवस्था में तने में डेड हार्ट बन जाते हैं। प्रभावित पौधे पीले पड़ जाते हैं और आसानी से उखाड़े जा सकते हैं। जब पौधों को उखाड़ा जाता है तो उनकी निचली शिराओं पर गुलाबी रंग की इल्लियों देखी जा सकती हैं।

कीट प्रबंधन

  • संक्रमित कल्लों को हाथ से चुनने और उन्हें नष्ट करने से छेदक का हमला कम हो जाता है।
  • संक्रमण से बचने के लिए, नाइट्रोजन उर्वरकों को विभाजित खुराकों में उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
  • यदि प्रकोप अधिक हो तो 1000 मिलीलीटर क्विनालफॉस 25% को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

मौसम का पूर्वानुमान (16-30 जनवरी, 2024)

मौसम विभाग ने 20-30 जनवरी के दौरान भारत के उत्तर-पूर्व और मध्य इलाकों में बारिश की संभावना जताई है। आने वाले सप्ताह में तापमान सामान्य से नीचे जाने की उम्मीद है।

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