गोबर आधारित जैविक खाद के इस्तेमाल को सरकार दे बढ़ावा, जमीन की सेहत सुधारने के लिए है जरूरीः नीति आयोग

रासायनिक खादों के बढ़ते इस्तेमाल से देश की कृषि भूमि में जैविक पदार्थों की लगातार कमी हो रही है। नीति आयोग ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि यदि मिट्टी में जैविक खाद और ऐसे अन्य स्रोतों के इस्तेमाल को नहीं बढ़ाया जाता है तो आने वाले वर्षों में देश को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। नीति आयोग ने इसके लिए गाय के गोबर पर आधारित जैविक खाद के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने सहित फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ) में संशोधन सहित कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।

गोबर आधारित जैविक खाद के इस्तेमाल को सरकार दे बढ़ावा, जमीन की सेहत सुधारने के लिए है जरूरीः नीति आयोग
नीति आयोग ने गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने की बताई है जरूरत।

रासायनिक खादों के बढ़ते इस्तेमाल से देश की कृषि भूमि में जैविक पदार्थों की लगातार कमी हो रही है। नीति आयोग ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि यदि मिट्टी में जैविक खाद और ऐसे अन्य स्रोतों के इस्तेमाल को नहीं बढ़ाया जाता है तो आने वाले वर्षों में देश को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। नीति आयोग ने इसके लिए गाय के गोबर पर आधारित जैविक खाद के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने सहित फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ) में संशोधन सहित कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।

गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने के लिए नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स बनाया गया था। टास्क फोर्स ने "गौशालाओं की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर विशेष ध्यान देने के साथ जैविक और जैव उर्वरकों के उत्पादन और प्रचार" नाम से जारी अपनी रिपोर्ट में कई सुझाव दिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि गाय का गोबर गौशाला की प्रमुख उपज है लेकिन इसे आमदनी का जरिया बनाने में गौशालाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गोबर को आमदनी का जरिया बनाने के लिए गौशालाओं की क्षमता विकास और अन्य माध्यमों से मदद की जानी चाहिए। बायोगैस संयंत्रों का उपयोग करके गोबर का उचित प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और गोबर आधारित जैविक खादों की मार्किटिंग और सर्टिफिकेशन किया जाना चाहिए। इसके लिए गौशालाओं को रियायती ब्याज दर पर पूंजी उपलब्ध कराई जानी चाहिए और निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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टास्क फोर्स ने अपने सुझाव में कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक वितरण एजेंसियों जैसे इफको, कृभको और अन्य राज्य स्तरीय एजेंसियों को अनिवार्य रूप से गौशालाओं द्वारा उत्पादित मानकीकृत जैविक खादों की मार्केटिंग के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। साथ ही पेट्रोल-डीजल में एथेनॉल के मिश्रण की तरह रासायनिक खादों में गोबार आधारित जैविक खादों के मिश्रण की भी संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जैविक खादों को बढ़ावा देने के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ) में भी संशोधन किया जाना जरूरी है। बायो और जैविक खादों के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियामकीय प्रक्रियाएं हैं। बायो और जैविक खादों के रजिस्ट्रेशन और मार्केटिंग के लिए पूरे देश में एक समान नियामकीय प्रक्रियाएं अपनाई जानी चाहिए। गौशालाओं की उपज की पूरे देश में बिक्री और मार्किटिंग की अनुमति देने के लिए लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रियाओं को आसान व सुसंगत बनाया जाना चाहिए। साथ ही राज्यों को किसी भी राज्य में मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से परीक्षण रिपोर्ट का भी सम्मान करना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक, जैविक और जैव उर्वरकों के निर्माण के लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग प्रक्रिया का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिए। टास्क फोर्स ने कहा है कि जैविक उर्वरकों के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहित करने के लिए उपयुक्त प्रोत्साहन और नीतिगत हस्तक्षेप जरूरी है। इसके लिए सब्सिडी/बाजार विकास सहायता (एमडीए) का विस्तार करने की जरूरत है। बायोफर्टिलाइजर के लिए सिटी कम्पोस्ट लाइन के साथ 30 सितंबर, 2021 तक 1500 रुपये प्रति टन की सहायता दी गई थी जिसका विस्तार करने की जरूरत रिपोर्ट में बताई गई है।

यही नहीं  उर्वरक कंपनियों द्वारा जैव-उर्वरक/जैविक खाद/उर्वरक का 10-20 फीसदी उठान अनिवार्य करने की भी जरूरत है। उदाहरण के लिए जैव-उर्वरक के 2 बैग या समृद्ध जैविक-उर्वरक (PROM आदि) के एक बैग का उठान यूरिया के एक बैग के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि गौशालाओं को डेयरी और पशुपालन, अपशिष्ट से धन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे गोबर-धन, सस्ते परिवहन के लिए सतत विकल्प (SATAT), पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF), राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) जैसी सभी केंद्रीय योजनाओं की लाभार्थी सूची में शामिल किया जाना चाहिए।

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