एजेंडा फॉर रूरल इंडियाः पानी की किल्लत से जूझते ग्रामीण

पानी की सुविधा न केवल कृषि, बल्कि मानव समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों को पीने, घरेलू उपयोग और खेती में पानी के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। “ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा देश भर में आयोजित कार्यक्रमों में स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी जरूरत देश भर के ग्रामीण समुदायों की एक प्रमुख आकांक्षा थी।

एजेंडा फॉर रूरल इंडियाः पानी की किल्लत से जूझते ग्रामीण

पानी की सुविधा न केवल कृषि, बल्कि मानव समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों को पीने, घरेलू उपयोग और खेती में पानी के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। “ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा देश भर में आयोजित कार्यक्रमों में स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी जरूरत देश भर के ग्रामीण समुदायों की एक प्रमुख आकांक्षा थी।

जोधपुर सम्मेलन में दो महिलाओं ने बताया कि पानी लेने के लिए वे प्रतिदिन लगभग 10 किलोमीटर पैदल जाती हैं। वे राजस्थान के अर्ध-शुष्क जिले नागौर से आई थीं और ट्यूबवेल या नल तक उनकी पहुंच नहीं थी। बाड़मेर, बालोतरा, फलोदी, सीकर, जोधपुर, पाली और उदयपुर सहित राजस्थान के अन्य जिलों से आए प्रतिभागियों ने पीने और सिंचाई के लिए पानी की कमी का मुद्दा उठाया। इन क्षेत्रों के किसानों ने भूजल स्तर में गिरावट और खेती में इस्तेमाल होने वाले केमिकल के कारण इसके प्रदूषित होने पर भी अफसोस जताया।

ओडिशा और मेघालय जैसे ज्यादा वर्षा वाले राज्यों में भी पानी तक पहुंच की समस्याएं थीं। मेघालय के तीन मुख्य पहाड़ी क्षेत्रों- गारो, खासी और जैंतिया के प्रतिभागियों को सर्दियों में पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। उन्हें पीने का पानी आसानी से उपलब्ध नहीं होता। सिंचाई के लिए पानी की कमी के कारण वे खेती के लिए वर्षा पर निर्भर हैं। इसलिए साल में केवल एक या दो फसलें ही उगा पाते हैं। ओडिशा के 30 में से 21 जिलों से प्रतिभागी आए थे। उन्होंने पीने के पानी और सिंचाई सुविधाओं की कमी को प्रमुखता से उठाया। 

किसानों के अलावा अन्य ग्रामीण नागरिकों ने भी स्थानीय जल स्रोतों के क्षरण पर चिंता जताई। मेघालय के प्रतिभागियों ने कहा कि मैकेनिकल तरीके से मछली पकड़ने से नदियां उथली हो रही हैं और मछलियों की संख्या कम हो रही है। तमिलनाडु के प्रतिभागी पश्चिमी घाट की नदियों, झीलों और जलधाराओं के प्रदूषण और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा जैसी आक्रामक प्रजातियों के पानी से संबंधित मुद्दों के बारे में अत्यधिक जागरूक थे।

 (लेखिका सॉक्रेटस में पर कार्यरत हैं।)

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