भारत-ब्रिटेन एफटीए से किसका फायदा? नहीं सुलझी बासमती निर्यात की पुरानी समस्या

भारत-ब्रिटेन एफटीए पर हस्ताक्षर के बाद दावा किया गया कि भारत के 99 फीसदी कृषि उत्पादों का ब्रिटेन को निर्यात शुल्क मुक्त हो गया है। लेकिन इस बात का जिक्र नहीं हो रहा है कि सबसे बड़े कृषि निर्यात में शुमार बासमती चावल पर शुल्क का मामला अनसुलझा रह गया है।

भारत-ब्रिटेन एफटीए से किसका फायदा? नहीं सुलझी बासमती निर्यात की पुरानी समस्या

भारत और ब्रिटेन के बीच हाल ही में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए), जिसे कॉन्प्रिहेंसिव ट्रेड एंड इकोनॉमिक एग्रीमेंट (सीटीईए) कहा जा रहा है, पर हस्ताक्षर किये गये हैं। भारत और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों ने इस पर दस्तखत किये हैं। इस समझौते को भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़े मौके के रूप में पेश किया जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि भारत से ब्रिटेन को होने वाले प्रमुख कृषि निर्यात में शुमार चावल पर ब्रिटेन में लागू शुल्क का मुद्दा इसका हिस्सा नहीं है।

ब्रिटेन द्वारा भारत से आयातित व्हाइट राइस पर 155 पाउंड प्रति टन का शुल्क वसूला जाता है जो इस समझौते के बावजूद लागू रहेगा। इसके चलते भारत को मजबूरन कम कीमत पर ब्राउन राइस का निर्यात करना पड़ता है। भारत से यूरोप को सालाना चार से पांच लाख टन बासमती चावल का निर्यात होता है जिसका 50 फीसदी से अधिक हिस्सा ब्रिटेन को निर्यात होता है। इस निर्यात में 98 फीसदी हिस्सा ब्राउन राइस का है। क्योंकि व्हाइट राइस का निर्यात व्यवहार्य नहीं है।   

चावल निर्यात उद्योग के सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि नये व्यापार समझौते में बासमती निर्यात का मुद्दा हल हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका है। असल में, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन भारत से व्हाइट राइस का आयात नहीं करते हैं। इसके आयात पर ब्रिटेन में 155 पाउंड का शुल्क लागू है। इसकी वजह भारत में चावल के प्रसंस्करण की गुणवत्ता बेहतर नहीं होने का तर्क दिया जाता है। वहीं, भारतीय चावल निर्यातकों का कहना है कि हमारे पास विश्व की बेहतर प्रसंस्करण मशीनें हैं और हम पिछले करीब 30 साल से इस शुल्क को हटाने की मांग कर रहे हैं। इस शुल्क के चलते भारतीय व्हाइट राइस का ब्रिटेन को निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाता है। 

भारत से यूरोप को अधिकतर ब्राउन बासमती राइस का निर्यात होता है जिसकी कीमत 750 से 800 डॉलर प्रति टन मिलती है। वहीं, व्हाइट बासमती राइस निर्यात करने की स्थिति में कीमत 1000 डॉलर प्रति टन को पार कर जाएगी। ब्रिटेन की चावल मिलें ब्राउन राइस की प्रोसेसिंग कर अपने ब्रांड के साथ बेचती हैं और मोटा मुनाफा कमाती हैं। लेकिन भारतीय कंपनियां अपने ब्रांड के साथ चावल नहीं बेच पाती हैं। ब्राउन राइस के साथ ब्रान होने के चलते इसका तेल और खली दोनों का फायदा वहां की चावल मिलें उठाती हैं।

जुलाई के शुरू में ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने इस संबंध में प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र लिखकर इस मुद्दे के हल की अपील की थी। रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामले विभाग ने इस संबंध में कृषि मंत्रालय को कदम उठाने के लिए लिखा था, जहां से इस मामले को उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को भेज दिया गया।

उद्योग का तर्क है कि ब्राउन राइस को एक हैल्दी उत्पाद माना जाता है। अगर हमें इसे निर्यात भी करना है तो फिर सरकार को इसके बल्क निर्यात की बजाय एक और पांच किलो के कंज्यूमर पैक में ही निर्यात  की अनुमति देनी चाहिए ताकि उसकी बेहतर कीमत हमें मिल सकेगी। इसका फायदा फिलहाल ब्रिटेन की राइस मिलें उठा रही हैं।

भारत-ब्रिटेन एफटीए पर हस्ताक्षर के बाद दावा किया गया कि भारत के 99 फीसदी कृषि उत्पादों का ब्रिटेन को निर्यात शुल्क मुक्त हो गया है। लेकिन इस बात का जिक्र नहीं हो रहा है कि सबसे बड़े कृषि निर्यात में शुमार बासमती चावल पर शुल्क का मामला अनसुलझा रह गया और उसे इस समझौते में कवर ही नहीं किया गया। यह भारत के किसानों और निर्यातकों के लिए एक बड़े मौके को गवां देने का मामला है। 

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