टिकाऊ खाद्य प्रणाली के लिए इनोवेशन, निवेश और सही पॉलिसी की जरूरतः डब्लूआरआई

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने जो चार कदम जरूरी बताए हैं उनमें पहला इनोवेशन है। इसका कहना है कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने और बदलती जलवायु के हिसाब से अनुकूलन के लिए नए वैज्ञानिक कदम उठाने पड़ेंगे। यह इनोवेशन कृषि टेक्नोलॉजी अथवा बीज की नई वैरायटी तक सीमित नहीं होगा, हालांकि यह महत्वपूर्ण है।

टिकाऊ खाद्य प्रणाली के लिए इनोवेशन, निवेश और सही पॉलिसी की जरूरतः डब्लूआरआई
फोटो साभारः डब्लूआरआई

पिछले साल दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन (कॉप 28) में सस्टेनेबल खाद्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था। दुनिया के 159 लीडर्स ने सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, रेसिलियंट फूड सिस्टम एंड क्लाइमेट एक्शन (टिकाऊ कृषि, मजबूत खाद्य प्रणाली और जलवायु बचाने की दिशा में कार्रवाई) पर अमीरात डिक्लेरेशन पर अपनी सहमति जताई थी। ऐसा पहली बार हुआ था जब विभिन्न देशों ने कृषि को राष्ट्रीय जलवायु तथा अन्य नीतियों के केंद्र में रखा और टिकाऊ खाद्य प्रणाली में निवेश बढ़ाने पर वे सहमत हुए। इस बात पर भी सहमति बनी की 2025 में आयोजित होने वाले कॉप 30 में इस दिशा में प्रगति की समीक्षा की जाएगी। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में कहा है कि टिकाऊ खाद्य प्रणाली के लिए तमाम देशों को चार कदम उठाने की जरूरत है। ये कदम हैं- इनोवेशन, निवेश में वृद्धि, व्यवहार में बदलाव और नीतिगत कदम।

इसने कहा है कि कृषि एवं खाद्य प्रणाली दुनिया में एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। जैव विविधता को होने वाले नुकसान और ताजे पानी में प्रदूषण का प्रमुख कारण भी यही है जिसका नकारात्मक प्रभाव खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर पड़ता है। इसका नतीजा मानवीय संकट, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा, माइग्रेशन और युद्ध के रूप में नजर आता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में इस तरह के जोखिम और बढ़ेंगे क्योंकि वर्ष 2050 तक खाद्य पदार्थों की मांग 50% बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों को नुकसान होगा तथा आपदाओं का जोखिम बढ़ेगा। इस तरह की घटनाएं घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल होगा।

अमीरात डिक्लेरेशन में इस दिशा में प्रगति के लिए 2 साल का समय तय किया गया है। अजरबैजान के बाकू में कॉप 29 मंत्रिस्तरीय बैठक होनी है, जिसमें इस दिशा में प्रगति पर चर्चा होगी और ब्राजील के बेलेम में होने वाले कॉप 30 सम्मेलन में पूरी प्रोग्रेस रिपोर्ट रखी जाएगी।

कृषि में इनोवेशन

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने जो चार कदम जरूरी बताए हैं उनमें पहला इनोवेशन है। इसका कहना है कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने और बदलती जलवायु के हिसाब से अनुकूलन के लिए नए वैज्ञानिक कदम उठाने पड़ेंगे। यह इनोवेशन कृषि टेक्नोलॉजी अथवा बीज की नई वैरायटी तक सीमित नहीं होगा, हालांकि यह महत्वपूर्ण है। यह इनोवेशन डिलीवरी सर्विस में भी करने की जरूरत है जहां खाद्य प्रणाली में शामिल किसानों तथा अन्य को मदद चाहिए। इसने कहा है कि कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने के साथ रसायन के प्रयोग से दूर हटने और एक ही फसल बार-बार लगाने से बचने की जरूरत है। इसकी जगह स्थानीय स्तर पर होने वाली विविध फसलें उपजाई जानी चाहिए। इसके लिए इसने मिलेट, मूंगफली, सोरघम, मीठा आलू जैसी फसलों को चिन्हित किया है। इसने कहा है कि मिट्टी और पानी बचाने के लिए मिश्रित खेती जरूरी है।

फोटो साभारः डब्लूआरआई

निवेश में वृद्धि

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट का कहना है कि कम कार्बन उत्सर्जन वाली पद्धति की ओर लौटने की कीमत बहुत ज्यादा है। फूड एंड लैंड यूज कोलिशन (फोलू) की ग्रोइंग बेटर रिपोर्ट में बताया गया है कि सस्टेनेबल खाद्य प्रणाली अपनाने के लिए हर साल 300 से 350 अरब डॉलर की जरूरत है। यह बहुत बड़ी राशि है। लेकिन मौजूदा खाद्य प्रणाली की छिपी हुई नेगेटिव कॉस्ट से तुलना करें तो यह बहुत कम है। इसी साल जारी फूड सिस्टम इकोनॉमिक्स कमीशन ग्लोबल पॉलिसी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यह लागत सालाना 15 लाख करोड़ डॉलर है। यह हर साल उपजाई जाने वाली फसलों के कुल इकोनामिक वैल्यू से भी ज्यादा है।

इसके विपरीत सस्टेनेबल खाद्य प्रणाली हमें हर साल 5 लाख करोड़ डॉलर के आर्थिक फायदे दे सकती है। फोलू की फ्यूचर फिट फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2025 से 2030 तक अगर हर साल 205 अरब डॉलर (खाद्य सेक्टर के रेवेन्यू के दो प्रतिशत से भी कम) का निवेश किया जाए तो खाद्य प्रणाली से होने वाला उत्सर्जन लगभग आधा हो जाएगा तथा इसके अनेक फायदे होंगे।

रिपोर्ट के अनुसार क्लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 4.3% कृषि और खाद्य प्रणाली में जाता है और इसमें भी सिर्फ 0.3 प्रतिशत छोटे किसानों को मिलता है। जहां तक सरकारी फाइनेंस की बात है तो जीवाश्म ईंधन, कृषि और फिशरीज पर इस समय हर साल 7 लाख करोड़ डॉलर की सब्सिडी दी जाती है। इसका जलवायु और प्रकृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

व्यवहार में बदलाव

यह बात स्पष्ट है कि खाद्य प्रणाली की समस्या को सिर्फ उत्पादन की पद्धति में बदलाव करके नहीं सुलझाया जा सकता है। किस चीज का उत्पादन करना है यह अक्सर खपत के पैटर्न पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए विकसित और मध्य आय वाले देशों में विशेष तौर से बीफ की बढ़ती मांग से वनों की कटाई बढ़ रही है और इसका पर्यावरण पर बड़ा बुरा असर हो रहा है। बीफ उत्पादन के लिए 20 गुना अधिक जमीन चाहिए। वनस्पति आधारित एक ग्राम प्रोटीन की तुलना में मांस आधारित एक ग्राम प्रोटीन के लिए 20 गुना अधिक उत्सर्जन होता है।

अभी हम जो खाद्य उत्पादन करते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा नुकसान या बर्बाद होता है। दुनिया में हर साल जितनी खाद्य कैलोरी का उत्पादन होता है उसका लगभग 24% खाया नहीं जाता। यह नुकसान सालाना एक लाख करोड़ डॉलर के आसपास है और इससे ग्रीनहाउस गैसों का 8 से 10% उत्सर्जन होता है। अगर इस नुकसान को आधा किया जाए तो दुनिया में खाद्य पदार्थों की मांग 15% कम हो जाएगी और इन्हें उपजाने के लिए जमीन पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा।

नीतिगत कदम

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी नीतियां उत्पादकों, ट्रेडरों निवेशकों तथा खाद्य प्रणाली में शामिल अन्य लोगों के लिए इंसेंटिव तय करती हैं। यही नीतियां तय करती हैं कि लोग कहां, क्या और कैसे उपजाएं, प्रोसेस्ड फूड खरीदें और कौन सी चीज खाएं। यह स्थिति हर देश में अलग होती है। दुनिया भर की सरकारें कृषि क्षेत्र को हर साल 700 अरब डॉलर से अधिक की मदद करती हैं, लेकिन इस खर्च का ज्यादा हिस्सा व्यर्थ जाता है। यह लैंड यूज में बदलाव, रसायनों के ज्यादा प्रयोग तथा मिट्टी के क्षरण जैसे नुकसानदायक प्रैक्टिस के लिए इंसेंटिव के रूप में होता है। इससे मिट्टी की सेहत और पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है और यह दोनों कृषि उत्पादकता को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। वर्ल्ड बैंक तथा आईएफपीआरआई की रिसर्च के अनुसार कृषि पर सरकार के एक अरब डॉलर के खर्च में किसान को औसतन 0.35 डॉलर का फायदा होता है। इसके अतिरिक्त बायोफ्यूल के लिए खाद्य वाली फसलों को बढ़ावा देने की नीति से खाद्य उत्पादन की जमीन का इस्तेमाल बदल रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव खाद्य सुरक्षा और जलवायु पर पड़ता है।

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