इस साल कॉटन आयात रिकॉर्ड 40 लाख गांठ तक पहुंचने के आसार

कभी कपास का प्रमुख निर्यातक रहा भारत, घरेलू उत्पादन में गिरावट के कारण इस साल रिकॉर्ड 40 लाख गांठ कपास का आयात करने वाला है।

इस साल कॉटन आयात रिकॉर्ड 40 लाख गांठ तक पहुंचने के आसार

दस साल पहले देश में कपास का उत्पादन 390 लाख गांठ तक पहुंच गया था और भारत एक बड़े कॉटन निर्यातक देश के रूप में स्थापित हो गया था। लेकिन अब कहानी उलट गई है और चालू कॉटन सीजन में करीब 40 लाख गांठ आयात होने का अनुमान है। जुलाई तक 32 लाख गांठ कपास का आयात हो चुका है। इसके अलावा अगस्त में किये गये सौदे जो ट्रांजिट में हैं, उनके आयात और सरकार द्वारा 19 अगस्त से 30 सितंबर, 2025 तक कॉटन आयात पर शुल्क समाप्त करने के फैसले के चलते करीब आठ से 10 लाख गांठ और आयात होने की संभावना है।

यह आंकड़े पिछले दस साल में देश में कपास उत्पादन में तेजी से गिरावट के चलते भारत को एक बड़े कॉटन आयातक देश के रूप में बदलने का सुबूत हैं। उद्योग सूत्रों के मुताबिक जुलाई तक हुए 32 लाख गांठ आयात के अलावा 21 अगस्त तक हुए सौदों को जोड़कर आयात 34 लाख गांठ हो जाता है। वहीं शुल्क मुक्त आयात की अवधि में छह से आठ लाख गांठ और आयात हो सकता है।

खास बात यह है कि सरकार ने कॉटन पर आयात शुल्क कॉटन मिलों को राहत देने के मकसद समाप्त किया है। लेकिन उद्योग का कहना है कि इसका फायदा मिलों को सीमित स्तर पर ही मिलेगा क्योंकि मिलों को नए सौदों में यह भरोसा नहीं मिल रहा है कि आयात 30 सितंबर, 2025 तक की शुल्क मुक्त अवधि में पूरा हो जाएगा। ऐसे में सरकार के इस फैसले का फायदा या तो बड़े घरेलू मर्चेंट ट्रेडर उठायेंगे या फिर बड़ी बहुराष्ट्रीय कमोडिटी कंपनियां उठाएंगी। 

उनका जो आयात इस अवधि में होगा, जरूरी नहीं कि वह आयातित कॉटन को 30 सितंबर के पहले ही कॉटन मिलों को बेच दें। कॉटन कारोबार के लोगों का कहना है कि शुल्क मुक्त आयात सितंबर के मध्य या उसके बाद ही संभव होगा। ऐसे में ट्रेडर कॉटन की बिक्री 30 सितंबर के बाद ही करेंगे क्योंकि शुल्क मुक्त आयात की अवधि समाप्त होने के बाद 11 फीसदी का आयात शुल्क लागू हो जाएगा और यह कॉटन 11 फीसदी महंगी हो जाएगी। 

इस पूरे मसले में बड़ा ट्विस्ट यही है कि मर्चेंट इंपोर्टर ही सबसे बड़े फायदे में रहेंगे। मसलन वह शुल्क मुक्त कॉटन का आयात करीब 51000 रुपये प्रति कैंडी पर करेंगे और इसे कुछ दिन स्टोर करने के बाद अक्तूबर में जब बेचेंगे तो मोटा मुनाफा कमाएंगे। अक्तूबर से कॉटन कॉरपोरेशन  ऑफ इंडिया (सीसीआई)  न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर जो कॉटन खरीदेगी उसकी लागत 61000 रुपये प्रति कैंडी आएगी। जिसके चलते आयातकों को सीधे फायदा होगा। यह फायदा आयातित कॉटन की संभावित मात्रा के आधार पर 250 करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है।

दूसरी ओर, कॉटन पर आयात शुल्क समाप्त होने के बाद कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने 1100 रुपये प्रति कैंडी कीमत कम कर दी। उससे उसे यह नुकसान उठाना पड़ेगा। आयात शुल्क समाप्त होने के पहले सीसीआई 56000 रुपये से 57000 रुपये प्रति कैंडी पर कॉटन बेच रही थी। वहीं शुल्क मुक्त कॉटन का आयात मूल्य करीब 51000 रुपये प्रति कैंडी रहने की संभावना है। ऐसे में सीसीआई की महंगी कॉटन की बिक्री कम हो सकती है। इसके चलते ही सीसीआई ने दाम घटाये। लेकिन पहले दो दिन दाम घटाने के बाद और कमी नहीं की गई है। 

जहां तक देश में कपास उत्पादन की बात है, तो एक समय यह 390 लाख गांठ तक तक पहुंच गया था जो पिछले साल घटकर 290 लाख गांठ तक आ गया। वहीं अगर आयात को देखें तो अगर वह 40 लाख गांठ तक पहुंचता है तो यह घरेलू उत्पादन के करीब 12 फीसदी तक पहुंच जाएगा। जिस तरह से यह आयात बढ़ा और घरेलू उत्पादन गिरा, वह यह साबित करता है कि हमारी कपास उत्पादन को लेकर नीति और कदम कारगर नहीं हैं।

हालांकि सरकार ने चालू साल के बजट में कॉटन मिशन घोषित किया है ताकि उत्पादन में गिरावट के रुख को बदला जा सके, लेकिन चालू खरीफ सीजन में कपास का रकबा तीन लाख हैक्टेयर से अधिक घट गया है। यह बेहतरी का संकेत तो नहीं है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार मौजूदा खरीफ सीजन में अब तक 107.87 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हो रही है। यह पिछले साल के 111.11 लाख हेक्टेयर से 3.24 लाख हेक्टेयर यानी 2.91% कम है। कपास का पांच साल का औसत रकबा 129.50 लाख हेक्टेयर का है।

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