बजट में हो सकता है कॉटन मिशन लॉन्च करने का ऐलान
लगातार तीन-चार साल से कपास की फसल पर कीटों का प्रकोप रहा है जिसके चलते किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है। कॉटन मिशन के जरिए सरकार कपास से जुड़ी चुनौतियों से निपटने का प्रयास कर सकती है।
केंद्र सरकार 23 जुलाई को पेश होने वाले चालू वित्त वर्ष के बजट में कॉटन मिशन की घोषणा कर सकती है। पिछले कुछ वर्षों से देश में कपास के उत्पादन में गिरावट को देखते हुए कपास की चुनौतियों का सामना करने के लिए कॉटन मिशन की शुरुआत हो सकती है। कॉटन मिशन के तहत रिसर्च का काम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के जिम्मे होगा। वहीं डेवलपमेंट का काम भी कृषि मंत्रालय के जरिए ही होगा। जबकि मशीनरी और ऑपरेशन का काम टेक्सटाइल मंत्रालय के तहत रहेगा।
सूत्रों के मुताबिक कपास के मुद्दे पर जरूरी कदमों पर कृषि मंत्रालय, टेक्सटाइल मंत्रालय और आईसीएआर की बैठक हुई थी। इस बैठक में ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) के चेयरमैन और आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. आर एस परोदा ने एक प्रजेंटेशन दिया था। इसके पहले तास ने कॉटन पर एक विस्तृत पॉलिसी पेपर जारी किया था।
करीब एक दशक पहले भारत कपास उत्पादन में 400 लाख गांठ के साथ दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश बन गया था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उत्पादन में गिरावट के चलते देश में कपास उत्पादन 320 लाख गांठ रह गया है। कपास उत्पादन में चीन भारत से आगे निकल गया है। अधिक उत्पादन के दौर में भारत कपास के बड़े निर्यातक देश के रूप में स्थापित हो गया था। लेकिन अब इसमें बड़ी गिरावट आई है। इस स्थिति को देखते हुए कॉटन मिशन शुरू किए जाने की संभावना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कपास जैसी महत्वपूर्ण नकदी फसल पर फोकस करना जरूरी है। जिस तरह से अन्य नकदी फसलों जैसे चाय, रबर, कॉफी और कोकोनट के लिए बोर्ड बने हैं, उसी तरह कॉटन मिशन भी मिशन शुरू किया जाना चाहिए। कपास के उत्पादन में गिरावट के बारे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि बेहतर गुणवत्ता और कीट व बीमारियों से लड़ने वाले बीजों की उपलब्धता नहीं होना इसकी मुख्य वजह है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बीज की नई टेक्नोलॉजी नहीं अपनाने से यह स्थिति पैदा हुई है। इसलिए सरकार को कपास बीज की नई टेक्नोलॉजी को मंजूरी देनी चाहिए जो पिछले करीब एक दशक से लंबित है।
कपास पर पिंक बॉलवर्म का प्रकोप
इस साल भी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की कपास बेल्ट में पिंक बॉलवर्म और व्हाइट फ्लाई का प्रकोप देखा जा रहा है। लगातार तीन-चार साल से कपास की फसल पर किसी ना किसी कीट का प्रकोप रहा है जिसके चलते किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है। इस साल भी पंजाब के कई जिलों में कपास की फसल पर पिंक बॉलवर्म का प्रकोप देखा जा रहा है।
जुलाई के पहले सप्ताह तक हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुवाई हुई थी जो पिछले साल के मुकाबले करीब 30 फीसदी कम है। इस साल पंजाब में कपास का रकबा एक लाख हेक्टेयर से भी कम है जो 2019 में सवा तीन लाख हेक्टेयर से भी अधिक था। हरियाणा और राजस्थान में भी कपास का रकबा घटा है। कॉटन ट्रेडर्स इस साल कपास की खेती के क्षेत्र में लगभग 10-15 फीसदी गिरावट का अनुमान लगा रहे हैं।
कपास से होने लगा मोहभंग
कपास पर कीटों के प्रकोप, पैदावार में गिरावट और सही दाम न मिलने के कारण किसानों का कपास से मोहभंग होने लगा है। बहुत से किसान कपास छोड़कर धान का रुख कर रहे हैं। कीटों की रोकथाम और किसानों को नुकसान से बचाने के लिए सरकार की तरफ से भी कोई खास उपाय नहीं किए गये हैं। कॉटन मिशन के जरिए सरकार कपास से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने का प्रयास कर सकती है।

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