एफपीओ को क्यों नहीं मिलता बैंक लोन, क्यों एनबीएफसी से लेना पड़ता है महंगा कर्ज

एफपीओ को सस्ते दर पर कर्ज उपलब्ध करवाने के लिए नीतिगत पहल की जरूरत है। यह पॉलिसी का मामला हैं। रिजर्व बैंक की ओर से अभी तक बैंकों को इस तरह का कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया गया है कि एफपीओ को कर्ज मुहैया कराया जाए। इसलिए बैंक एफपीओ को कर्ज नहीं देते हैं। साथ ही, वे कर्ज देने के लिए टर्नओवर और बैलेंस शीट की मांग करते हैं।

एफपीओ को क्यों नहीं मिलता बैंक लोन, क्यों एनबीएफसी से लेना पड़ता है महंगा कर्ज

एक तरफ सरकार किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) को बढ़ावा दे रही है, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके, दूसरी तरफ, हकीकत यह है कि एफपीओ को सरकारी बैंकों से उनके कामकाज के लिए कर्ज नहीं मिलता है। उन्हें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से महंगे ब्याज दर पर कर्ज लेना पड़ता है। एनबीएफसी उनसे 15-17 फीसदी तक ब्याज वसूलते हैं। केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 10 हजार एफपीओ बनाने को मंजूरी दी है। अब तक 5,000 से ज्यादा एफपीओ देशभर में बन चुके हैं।  

किसान उत्पादक संगठन किसानों का समूह है जो किसानों की मदद करते हैं। एफपीओ किसानों को सस्ते दामों पर बीज, खाद, कीटनाशक, मशीनरी, कृषि तकनीक, मार्केट लिंकेज, ट्रेनिंग, नेटवर्किंग और आर्थिक मदद उपलब्ध करवाते हैं, ताकि किसान का मनोबल बढ़े और वो बिना किसी अड़चन के बेहतर खेती कर सकें। इसके अलावा, वे किसानों से बेहतर दाम पर उनकी फसल भी खरीदते हैं। एफपीओ बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद भी दी जाती है।

मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी रूरल वॉयस से कहते हैं, “एफपीओ को अपने कामकाज के लिए कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है। इसके लिए हमें अभी एनबीएफसी से महंगे ब्याज दर पर कर्ज लेना पड़ता है। एनबीएफसी 15-17 फीसदी तक ब्याज वसूलती हैं। एफपीओ को सस्ते दर पर कर्ज उपलब्ध करवाने के लिए नीतिगत पहल की जरूरत है। यह पॉलिसी का मामला हैं। रिजर्व बैंक की ओर से अभी तक बैंकों को इस तरह का कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया गया है कि एफपीओ को कर्ज मुहैया कराया जाए। इसलिए बैंक एफपीओ को कर्ज नहीं देते हैं। साथ ही, वे कर्ज देने के लिए टर्नओवर और बैलेंस शीट की मांग करते हैं। नए एफपीओ का टर्नओवर कितना होगा। शुरुआत में तो उन्हें किसानों को अपने साथ जोड़ने के लिए ही जूझना पड़ता है, तो टर्नओवर कहां से होगा। इसलिए, वे सीधे नहीं बल्कि एनबीएफसी के जरिये ही कर्ज मुहैया करवाते हैं।”

उनका कहना है, “एनबीएफसी के लिए ब्याज दरों को लेकर कोई सीमा तय नहीं की गई है। वे मनमाने दर पर एफपीओ को कर्ज देते हैं। इसकी सीमा तय करने के लिए भी रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत पहल होनी चाहिए और ब्याज दर की एक सीमा तय की जानी चाहिए कि इससे ज्यादा ब्याज वे नहीं वसूल सकते। एनबीएफसी का तर्क होता है कि उन्हें भी महंगे दर पर बैंकों या प्राइवेट लैंडर से कर्ज लेना पड़ता है, इसलिए वे सस्ते दर पर कर्ज कैसे दे सकते हैं।”

योगेश द्विवेदी के मुताबिक, महंगे कर्ज की वजह से एफपीओ को संचालन में दिक्कत आती है और मुनाफा प्रभावित होता है। जब तक एफपीओ को मुनाफा नहीं होगा, तब तक किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम कैसे दिया जा सकेगा। एफपीओ किसानों को कृषि मशीनरी भी किराये पर उपलब्ध करवाते हैं। अगर एफपीओ के पास धन की कमी होगी तो वे मशीनरी कैसे खरीद पाएंगे। अभी जो पूंजी होती है वह किसानों को खाद, बीज उपलब्ध करवाने और फसलों की खरीद में ही खर्च हो जाता है। एफपीओ का विस्तार करने और कृषि क्षेत्र एवं किसानों की मदद के लिए सस्ते कर्ज की जरूरत है।  

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