जलवायु और रोग प्रतिरोधी गन्ने की किस्मों में निवेश की जरूरत: इस्मा प्रेसिडेंट गौतम गोयल
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के संयुक्त सचिव अश्वनी श्रीवास्तव ने ग्रामीण भारत में गन्ना क्षेत्र की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह 5.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है और हर वर्ष एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करता है।

भारत के गन्ना क्षेत्र में परिवर्तन लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए, इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) ने खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) और कृषि मंत्रालय के सहयोग से "भारत में सतत गन्ना उत्पादन को बढ़ावा देने" के विषय पर एक उच्चस्तरीय विचार सत्र का आयोजन किया। चर्चा का केंद्र बिंदु था गिरती गन्ना उत्पादकता, कीट प्रकोप में वृद्धि, जलवायु अस्थिरता और घटते खेती क्षेत्र, जो किसानों की आजीविका और उद्योग को संकट में डाल रहे हैं।
सत्र की शुरुआत में इस्मा प्रेसिडेंट गौतम गोयल ने मौजूदा प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने छह सूत्रीय योजना प्रस्तुत की, जिसमें किस्मों का विविधीकरण, जीनोम इनोवेशन, विकेंद्रीकृत बीज प्रणाली, जलवायु-अनुकूल खेती, नीतिगत सुधार और राष्ट्रीय गन्ना मिशन की स्थापना शामिल हैं।
उन्होंने कहा, "इस मौसम की चुनौतियां संकेत देती हैं कि अब गन्ना उत्पादन के हमारे दृष्टिकोण को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है। हमें जलवायु और रोग प्रतिरोधी किस्मों में निवेश करना होगा और स्थानीय स्तर पर बीज प्रणालियों को मजबूत बनाना होगा। यदि हम समन्वित प्रयास करें, तो किसानों को बेहतर लाभ दिलाने के साथ एक मजबूत और टिकाऊ गन्ना क्षेत्र विकसित कर सकते हैं।"
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के संयुक्त सचिव अश्वनी श्रीवास्तव ने ग्रामीण भारत में गन्ना क्षेत्र की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह 5.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है और हर वर्ष एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करता है। उन्होंने ISMA और ICAR-शुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के बीच सहयोग की सराहना की और इसे अनुसंधान और व्यावहारिक कार्यान्वयन के एक आदर्श उदाहरण के रूप में बताया।
उन्होंने कहा, "गन्ना क्षेत्र पर विभिन्न दबाव हैं, लेकिन उपयुक्त साझेदारी और नीतियों के जरिए हम इन चुनौतियों से पार पा सकते हैं। क्षेत्र के अनुकूल और जलवायु-प्रतिरोधी किस्में और मजबूत बीज प्रणाली, उत्पादन और किसानों की आय बढ़ाने की कुंजी हैं।"
इस्मा की कृषि उप-समिति के चेयरपर्सन रोशन लाल टमक ने सत्र का संचालन किया। सत्र में बेहतर मशीनीकरण, डिजिटल उपकरण, नीति सुधार और किसान को प्रशिक्षण जैसे व्यावहारिक उपायों पर चर्चा की गई। सत्र का समापन करते हुए इस्मा उपाध्यक्ष नीरज शिरगांवकर ने कहा, "अब विचारों को ठोस परिणामों में बदलने का समय है। राष्ट्रीय गन्ना मिशन एक आशाजनक शुरुआत है, लेकिन समयबद्ध कार्रवाई और जवाबदेही अत्यंत आवश्यक है।"
इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने इनोवेशन की निरंतरता और नियमित रूप से ज्ञान साझा किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि खेती में तकनीक को तेजी से अपनाया जा सके। उन्होंने कहा, "प्रिसीजन सिंचाई से लेकर रोग पूर्वानुमान तक, इन तकनीकों को हर किसान तक पहुंचाना आवश्यक है। ISMA संवाद और सामूहिक कार्रवाई के लिए ऐसे मंच प्रदान करता रहेगा।"
इस सत्र में वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, कृषि वैज्ञानिक, उद्योग जगत की प्रमुख हस्तियां और नीति विशेषज्ञ एकत्र हुए। सत्र का समापन इस आम सहमति के साथ हुआ कि गन्ना क्षेत्र को अब लक्ष्य-आधारित मिशन दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।