अल नीनो के चलते दाल-चावल, चीनी, तिलहन समेत अधिकांश फसलों का उत्पादन घटा, खाद्य महंगाई पर अंकुश की चुनौती

मजबूत अल नीनो के मानसून पर पड़े असर के चलते चालू फसल वर्ष (2023-24) में कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका सही साबित होती दिख रही है। चालू खरीफ सीजन (2023-24) के लिए फसल उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान इस आशंका को सच में तब्दील कर रहे हैं। इन अनुमानों के मुताबिक चावल, दाल, मोटे अनाज, तिलहन, गन्ना, कपास और जूट का उत्पादन पिछले साल (2022-23) के खरीफ उत्पादन से कम रहेगा। इन अनुमानों से महंगाई के मोर्चे पर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की मुश्किलें बनी रह सकती हैं। दाल-रोटी के मामले में आम आदमी को कीमतों के मोर्चे पर कोई बड़ी राहत जल्द मिलने की संभावना कम है। तमाम फसलों का उत्पादन गिरने के चलते किसानों को भी आय का भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है, जिसके चलते ग्रामीण इकोनॉमी का पटरी पर आना मुश्किल हो गया है।

अल नीनो के चलते दाल-चावल, चीनी, तिलहन समेत अधिकांश फसलों का उत्पादन घटा, खाद्य महंगाई पर अंकुश की चुनौती

मजबूत अल नीनो के मानसून पर पड़े असर के चलते चालू फसल वर्ष (2023-24) में कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका सही साबित होती दिख रही है। चालू खरीफ सीजन (2023-24) के लिए फसल उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान इस आशंका को सच में तब्दील कर रहे हैं। इन अनुमानों के मुताबिक चावल, दाल, मोटे अनाज, तिलहन, गन्ना, कपास और जूट का उत्पादन पिछले साल (2022-23) के खरीफ उत्पादन से कम रहेगा। इन अनुमानों से महंगाई के मोर्चे पर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की मुश्किलें बनी रह सकती हैं। दाल-रोटी के मामले में आम आदमी को कीमतों के मोर्चे पर कोई बड़ी राहत जल्द मिलने की संभावना कम है। तमाम फसलों का उत्पादन गिरने के चलते किसानों को भी आय का भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है, जिसके चलते ग्रामीण इकोनॉमी का पटरी पर आना मुश्किल हो गया है।

ऐसे में पहले से ही 14 माह से दो अंकों में चल रही खाद्यान्न महंगाई के काबू में आने की संभावना कमजोर दिख रही है। सितंबर, 2022 से खाद्यान्न महंगाई दर दो अंकों में चल रही है। अक्तूबर, 2023 में यह 10.65 फीसदी रही है जो अक्तूबर, 2022 में 12.08 फीसदी थी। जून, 2022 से दो अंकों में बनी हुई दालों की ताजा महंगाई दर 18.79 फीसदी पर पहुंच गई है, जो अगस्त 2016 के बाद का उच्चतम स्तर है।

सरकार ने 27 अक्तूबर को एक प्रेस रिलीज जारी कर चालू खरीफ सीजन (2023-24) में उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान जारी किये थे। इसमें फसलों का उत्पादन तो बताया गया था लेकिन पिछले साल के मुकाबले यह कितना कम या ज्यादा है उसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई थी। लेकिन उसी दिन तैयार की गई फसलों के उत्पादन की टाइम सीरीज को देखने से स्थिति साफ हो जाती है।

कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों के मुताबिक चालू खरीफ सीजन में कुल खाद्यान्न उत्पादन (दलहन समेत) 1485.69 लाख टन रहेगा जबकि पिछले साल खरीफ सीजन (2022-23) में 1557.11 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन हुआ था। यानी पिछले साल के मुकाबले चालू साल में खाद्यान्न उत्पादन में 71.42 लाख टन गिरावट आने का अनुमान है। चालू खरीफ सीजन में चावल उत्पादन 1063.13 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल खरीफ सीजन के चावल उत्पादन 1105.12 लाख टन से 41.99 लाख टन कम है। मोटे अनाजों में मक्का और बाजरा का उत्पादन भी पिछले साल से कम रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मिलेट साल के इस आयोजन वर्ष में श्रीअन्न न्यूट्री सीरिअल्स ज्वार, बाजरा, रागी और स्माल मिलेट्स का उत्पादन पिछले साल से 12.49 लाख टन कम होकर 126.55 लाख टन रहने का अनुमान है। मोटे अनाजों का कुल उत्पादन 25 लाख टन से अधिक गिरने का अनुमान कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों में लगाया गया है। मोटे अनाजों समेत कुल खाद्यान्न उत्पादन 1414.50 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल के खरीफ सीजन के 1480.90 लाख टन उत्पादन के मुकाबले 66.40 लाख टन कम है।

दालों के मामले में स्थिति काफी परेशान करने वाली है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक दालों की महंगाई दर 18.79 फीसदी पर है जो अगस्त, 2016 के बाद से सबसे ऊंचा स्तर है। यही नहीं, जून 2022 से दालों की महंगाई दर दहाई अंकों में बनी हुई है। अनुमानों के मुताबिक खरीफ सीजन की दालों का कुल उत्पादन 71.18 लाख टन रहेगा जो पिछले साल (2022-23) के मुकाबले करीब पांच लाख टन कम है। चिंता की बात यह है कि 2016-17 के बाद दालों का यह उत्पादन स्तर सबसे कम है। साल 2016-17 के खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन 95.85 लाख टन रहा था। उसके बाद से अभी तक खरीफ सीजन में उत्पादन 2016-17 के स्तर से कम ही रहा है।

खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम होने के आसार भी नहीं हैं। पिछले खाद्य तेल साल (2022-23) में भारत ने इनका रिकार्ड आयात किया। कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक चालू खरीफ सीजन (2023-24) में कुल तिलहन उत्पादन 215.33 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल (2022-23) के 261.50 लाख टन से 46.17 लाख टन कम है। सबसे अधिक 34.17 लाख टन की गिरावट सोयाबीन के उत्पादन में आने का अनुमान है। पिछले साल सोयाबीन का उत्पादन 149.85 लाख टन रहा था जिसके इस साल घटकर 115.28 लाख टन रह जाने का अंदेशा है।

नकदी फसलों में गन्ना का उत्पादन 4905.33 लाख टन से घटकर 4347.93 लाख टन रहने का अनुमान है। यानी पिछले साल के मुकाबले गन्ना उत्पादन में 557.40 लाख टन गिरावट आएगी। वहीं कपास का उत्पादन 336.60 लाख गांठ (170 किलो प्रति गांठ) के पिछले साल के स्तर से घटकर चालू साल में 316.57 लाख गांठ रहने का अनुमान है। जूट और मेस्ता का उत्पादन 91.91 लाख गांठ (180 किलो प्रति गांठ) रहने का अनुमान है जो पिछले साल से दो लाख गांठ कम है।

अमेरिकी एजेंसी एनओएए के मुताबिक जून 2024 तक अल नीनो के मजबूत बने रहने की संभावना 62 फीसदी है। ऐसे में चालू रबी सीजन में भी उत्पादन बहुत बेहतर नहीं रहने की आशंका बन रही है, क्योंकि मानसून के बाद की बारिश काफी कमजोर बनी हुई है और साथ ही जलाशयों में भी पानी का स्तर कम है। जहां तक खरीफ सीजन में उत्पादन गिरने की बात है तो उसकी वजह जहां मानसून का देरी से आना और कई राज्यों में बारिश का असामान्य रहना रहा है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ना, दालों और मोटे अनाजों का उत्पादन इससे सीधे प्रभावित हुआ है वहीं मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन की कमजोर फसल की वजह कम और देर से हुई बारिश रही है। वहीं कई राज्यों में पिंक बालवॉर्म ने कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है।

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