ग्रामीण भारत का एजेंडाः कृषि की चिंता सभी को, किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं

देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना, कृषि में तकनीक को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लचीली कृषि प्रणाली को अपनाने जैसे तमाम मुद्दों पर हाल के वर्षों में चर्चा तेज हो गई है। कृषि को लेकर सभी चिंता कर रहे हैं लेकिन किसानों, गांवों और ग्रामीण नागरिकों के कल्याण की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

ग्रामीण भारत का एजेंडाः कृषि की चिंता सभी को, किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं
ग्रामीण भारत का एजेंडा कार्यक्रम के पैनल चर्चा में (बाएं से दाएं) राजेश महापात्रा, डॉ. अमर पटनायक, के सी त्यागी, वी एम सिंह, युद्धवीर सिंह और ईसन।

देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना, कृषि में तकनीक को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लचीली कृषि प्रणाली को अपनाने जैसे तमाम मुद्दों पर हाल के वर्षों में चर्चा तेज हो गई है। कृषि को लेकर सभी चिंता कर रहे हैं लेकिन किसानों, गांवों और ग्रामीण नागरिकों के कल्याण की सुध लेने वाला कोई नहीं है। मीडिया संस्थान रूरल वॉयस और गैर-सरकारी संगठन सॉक्रेटस द्वारा इस महीने की शुरुआत में दिल्ली में आयोजित ‘ग्रामीण भारत का एजेंडा’ कार्यक्रम की पैनल चर्चा में यह बात उभर कर सामने आई। इस पैनल चर्चा का विषय था ‘ग्रामीण भारत चुने हुए प्रतिनिधियों से क्या चाहता है’। इस पैनल चर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और समाचार एजेंसी पीटीआई के पूर्व संपादक राजेश महापात्रा ने किया। 

किसानों के लिए होना चाहिए बदलावः ईसन

तमिलनाडु फार्मर्स प्रोटेक्शन एसोसिएशन के संस्थापक ईसन ने पैनल चर्चा के शुरुआती सवाल के जवाब में कहा, “100 साल पहले सहकारी समिति की व्यवस्था बनाई गई थी। सहकारी समितियां किसानों के लिए हैं, लेकिन पूरी व्यवस्था पर नेताओं का कब्जा हो गया है। अब वे किसानों को मजबूर कर रहे हैं। इसी तरह, एफपीओ (किसान उत्पादक संघ) निश्चित रूप से किसानों के हित में हैं, धीरे-धीरे उन पर भी नेताओं का कब्जा हो जाएगा।”  उन्होंने कहा कि देश में कृषि नीति तो है, लेकिन किसान कल्याण नीति नहीं है। किसानों के संरक्षण की बात आती है, तो कोई किसान संरक्षण अधिनियम भी नहीं है। हर जगह किसानों के अधिकारों को छीना गया है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अधिकारी कोई भी किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं है। उनके मुताबिक, ज्यादातर सांसद, विधायक, मंत्री भी किसान समुदाय से हैं, यहां तक ​​कि आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी किसान समुदाय के लोग हैं, लेकिन किसी ने भी किसानों के हित के लिए काम नहीं किया है। बार-बार यह कहा जाता है कि किसान देश की रीढ़ हैं, लेकिन बिना रीढ़ के देश कैसे चल रहा है। खाद्य सुरक्षा के लिए सभी की उम्मीदें किसानों और गांवों पर टिकी होती हैं, लेकिन जिस तरह से लागत बढ़ रही है और उपज की वाजिब कीमत नहीं मिलती है, ऐसे में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी से ही किसानों का भला हो सकता है। ये कृषि प्रधान देश है। इस देश में किसानों के लिए बदलाव होना चाहिए।

कृषि और किसान कल्याण की गति बढ़ाने की जरूरतः डॉ. अमर पटनायक

उनकी बात से थोड़ी असहमति जताते हुए बीजू जनता दल (बीजद) के सांसद डॉ. अमर पटनायक ने कहा, “मुझे नहीं लगता है कि कृषि और किसान कल्याण को अलग-अलग करके देखा जा सकता है क्योंकि कृषि के बारे में विचार किए बिना किसानों के कल्याण बारे में नहीं सोचा जा सकता है। हां, मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि किसी भी सरकार ने एमएसपी को लेकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को सही मायनों में लागू नहीं किया है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए किसानों की हालत जस की तस बनी हुई है। हालांकि, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ है। सुधार हुआ है, लेकिन उस स्तर का नहीं हुआ है।”  

उन्होंने कहा कि यह भी समझना होगा कि एमएसपी की बढ़ी हुई कीमत का असर उस कीमत पर भी पड़ता है जो उपभोक्ता को अनाज के लिए चुकानी पड़ती है। उस स्थिति में सब्सिडी का बोझ बहुत अधिक होगा। हमें यह तय करना होगा कि क्या देश के पास उस सब्सिडी का भुगतान करने के लिए संसाधन होंगे क्योंकि और भी जरूरी मुद्दे हैं जिसके लिए आर्थिक संसाधनोंं की जरूरत पड़ती है। यथार्थवादी होने के नाते मेरा मानना है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि हमें अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी। बेहतर फसल प्रबंधन, बेहतर सिंचाई, बेहतर जल प्रबंधन, बेहतर मिट्टी प्रबंधन और बेहतर उर्वरक प्रबंधन के जरिये उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। देश में ऐसा नहीं हुआ है। दूसरा, हम जो कर रहे हैं वह टुकड़ों में है। कृषि में बहु-फसल के साथ-साथ बहु-उत्पादों से संबंधित जिस नवाचार की आवश्यकता है, वह बहु-फसल के साथ-साथ मछली पालन भी हो सकता है। इन सभी संयोजनों पर काम नहीं किया गया है। कृषि और किसान कल्याण क्षेत्र में चीजें उस गति से नहीं चल रही हैं जिस गति से आगे बढ़ना जरूरी है। लेकिन यह निश्चित रूप से हुआ है कि किसानों ने कृषि को 1.4 अरब लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में भारत को आत्मनिर्भर बनाया है।

गांव की स्थिति जस की तसः के सी त्यागी

लोकसभा एवं राज्यसभा के पूर्व सांसद एवं जनता दल (यू) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने पैनल चर्चा में अपने विचार रखते हुए कहा, “अगर हम समृद्धि के टापुओं जिसे हम आर्थिक उन्नति कहते हैं, को छोड़ दें, तो गांवों की स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। गांव आज भी सरकारों की उपेक्षा के शिकार हैं। ब्रिटिश काल और आजादी के बाद सरकारों के बदलते रहने के बावजूद गांव की स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं आया। गांव की असली समस्या क्या है। खेती के अलावा गांव के जो अन्य काश्तकार थे वो कहां चले गए। गांव का लोहार, कुम्हार, बुनकर, सुनार, तेली, धोबी, मोची ये सब कहां चले गए। गांव की स्वायत्ता की जो सोच थी वो खत्म हो गए। गांव में इनके धंधे खत्म हो गए। ये लोग रोजगार की तलाश में गांव से शहर तो गए लेकिन उनमें से ज्यादातर वहां या तो मजदूरी कर रहे हैं या फिर कोई छोटा-मोटा काम कर रहे हैं। आज हम गेहूं, चावल, चीनी और कई सब्जियों और फलों के उत्पादन में दुनिया में नंबर एक हैं। इसके बावजूद गांवों की उपेक्षा हो रही है। जो प्राथमिकता है वह आज भी जस की तस है। पहली पंचवर्षीय योजना में 35 फीसदी फंड ग्रामीण क्षेत्र के लिए आवंटित हुआ था और 15 फीसदी औद्योगिक क्षेत्र के लिए। इसके बाद की पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण क्षेत्र का आवंटन घटता गया और औद्योगिक क्षेत्र का बढ़ता गया। गांव की उपेक्षा वहीं से शुरू हो गई। नीति आयोग और इन जैसी जितनी भी संस्थाएं हैं उसका गांव के विकास से, खेती से, किसान से कोई वास्ता नहीं है।”

एमएसपी गारंटी से ही किसानों का होगा भलाः वी एम सिंह

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक वी एम सिंह ने कहा, “आज की जो व्यवस्था है वह व्यवस्था ही गलत है। भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन हमारी व्यवस्था में भारतीय कृषि सेवा की व्यवस्था ही नहीं है। खेती की स्थिति को देखते हुए किसान के बच्चे अब खेती नहीं करना चाहते हैं। किसान के बच्चों को आज आजीविका चाहिए। आज भी हम अंग्रेजों की नीतियां ही अपना रहे हैं। हम खेती को खड़ा करना नहीं चाहते। आज जमीन की जोत कम हो रही है। किसानों के पास औसतन दो-ढाई एकड़ जमीन है। इतनी कम जमीन में खेती कर कोई किसान पूरे साल खा नहीं सकता है। अपना घर चलाने के लिए उन्हें खेती के साथ-साथ मजदूरी भी करना पड़ता है। ऐसे में एमएसपी गारंटी के जरिये ही उन्हें फायदा पहुंचाया जा सकता है।”

उन्होंने कहा कि पहले जहां किसान गाय-भैंस के दूध बेचकर अपनी अन्य जरूरतें पूरी कर लेता था, अब उसमें भी परेशानी हो गई है क्योंकि चारा महंगा हो गया है जिससे गाय-भैंस पालना मुश्किल हो गया है। अगर यह तय हो जाए कि किसानों से 50 रुपये लीटर से कम पर दूध की खरीद नहीं होगी तो गायों को पालने में किसानों की रूचि बनी रहेगी। इसी तरह, गन्ना किसानों की बात करें तो उन्हें अपना भुगतान कभी समय पर नहीं मिलता है। सभी सरकारें चीनी मिल मालिकों पर दयालु हैं। उनके लिए चीनी की एमएसपी (मिनिमम सेल प्राइस) की व्यवस्था कर दी गई है, लेकिन किसानों के लिए नहीं की जा रही है। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि किसानों को एमएसपी की गारंटी मिल जाए।

बाजार समर्थक नीतियों से किसानों की हालत खराबः युद्धवीर सिंह

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि चौधरी चरण सिंह कहते थे कि अगर पंडित नेहरू ने ग्रामीण विकास पर अपना फोकस कर लिया होता, औद्योगिक विकास भी जरूरी था, कृषि और गांव को अगर प्राथमिकता दी जाती आज गांव विकसित हो जाते। चौधरी चरण सिंह का यह भी कहना था कि अगर हम देश का विकास और मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं तो पलायन को रोकना होगा। पिछले 15-20 सालों से जिस तरह से गांवों से पलायन हुआ है वह भयावह है। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति की वजह से कृषि उत्पादन तो बढ़ा लेकिन उत्पादन सरप्लस होते ही बाजार किसानों पर हावी होने लगा और इसमें सरकारें भी सहायक बनीं। बाजार के हावी होते ही किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ने लगी। सरकार की किसान विरोधी और बाजार समर्थक नीतियों की वजह से किसान मर रहे हैं। जब फसल की कटाई होती है तो सरकार बाजार के समर्थन में फैसले ले लेती है और देर से फसलों की सरकारी खरीद करती है। एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, दूसरी तरफ किसान विरोधी फैसले लेती है।    

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