मालधारी समुदाय की आजीविका बचाना जलवायु समेत कई संकटों का समाधान

मालधारी भारत के उन देसी समुदायों में शामिल हैं जिन्होंने कच्छ में जलवायु परिवर्तन की समस्या में सबसे कम योगदान किया है, फिर भी उन्हें इसके विपरीत प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि भारत का पशुधन क्षेत्र फल-फूल रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि इसमें समावेशिता होनी चाहिए

मालधारी समुदाय की आजीविका बचाना जलवायु समेत कई संकटों का समाधान

मालधारी भारत के उन देसी समुदायों में शामिल हैं जिन्होंने कच्छ में जलवायु परिवर्तन की समस्या में सबसे कम योगदान किया है, फिर भी उन्हें इसके विपरीत प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि भारत का पशुधन क्षेत्र फल-फूल रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि इसमें समावेशिता होनी चाहिए। भारत में लगभग 14.89 करोड़ बकरियां और 7.43 करोड़ भेड़ें हैं। मालधारी ऐसे भूमिहीन चरवाहे किसान हैं जो गुजरात में मौसमी पशुधन पालन पर आश्रित रहते हैं। भारत की आबादी का 8 से 9 फ़ीसदी मालधारी हैं। देश के विभिन्न राज्यों में इनके 15 से अधिक समुदाय हैं। पारंपरिक रूप से ये दूध का व्यवसाय करते आए हैं और एक जमाने में रजवाड़ा परिवारों को दूध और पनीर आदि की सप्लाई किया करते थे। उच्च क्वालिटी का घी, दूध, ऊन, मवेशी और हस्तशिल्प इनकी आय का प्रमुख साधन हैं। गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मालधारियों का जीवन पशुधन, खासकर छोटे मवेशियों और ऊंट के साथ जुड़ा रहा है।

कच्छ में मालधारी चरवाहों की समस्याएं

20वीं पशुधन गणना के अनुसार गुजरात में 17.87 लाख भेड़ें हैं। 70% से अधिक भेड़-बकरियां छोटे और सीमांत किसान तथा भूमिहीन मजदूर पालते हैं। मालधारी गुजरात के सीमाई इलाकों में स्थित गांवों में रहते हैं। उन इलाकों में पानी तथा हरे चारे की कमी की वजह से ये भेड़-बकरी जैसे छोटे मवेशी और ऊंट पालते हैं। उन इलाकों में मवेशियों के लिए चरागाह नहीं है।

बकरी के दूध को गरीब आदमी का दूध भी कहा जाता है। भेड़ और बकरी के दूध को करीबी दुग्ध कोआपरेटिव में स्वीकार नहीं किया जाता इसलिए निजी डेयरियां मालधारियों का शोषण करती हैं। दूध, दुग्ध उत्पाद, बाल तथा ऊनी प्रोडक्ट के लिए मार्केट वैल्यू चेन, लॉजिस्टिक्स की कमी के कारण मालधारी अपने प्रोडक्ट अच्छी कीमत पर नहीं बेच सकते हैं। गांव में उच्च शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध ना होने के कारण राबरी और जट मालधारियों का कौशल विकास नहीं हो पाता है। इसलिए पीढ़ियों से वे जीविकोपार्जन के लिए मवेशी चराने का काम करते आए हैं। मौसम के हिसाब से वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। इसलिए सरकार के अधिकारी भी उन्हें कोई दीर्घकालिक ग्रांट देने से कतराते हैं।

मालधारियों के लिए क्या किया जा सकता है?

1.हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मालधारी एक अलग दुग्ध संग्रह प्रणाली व्यवस्था के तहत पास की कोऑपरेटिव में भेड़ और बकरियों का दूध जमा करें।

2.नाबार्ड की मदद से छोटे पशुधन और ऊंट के दूध के लिए प्रोड्यूसर कंपनियां बनाने की जरूरत है।

3.मालधारियों को आम सार्वजनिक संपत्ति तक पहुंच और उनका नियंत्रण दिया जाना चाहिए।

4.मालधारियों के लिए चरागाह की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।

5.मौसम के हिसाब से मालधारी जब एक इलाके से दूसरे इलाके में जाते हैं तब जमीन और चरागाहों पर उनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

6.दूरदराज के सीमाई इलाकों में मालधारियों के लिए एक सस्टेनेबल मार्केट लिंकेज स्थापित किया जाना चाहिए।

7.अकादमीशियन और शोधार्थियों द्वारा मालधारियों के पारंपरिक ज्ञान को स्वीकार करने के साथ उन्हें पहचान दी जानी चाहिए।

वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का स्किल डेवलपमेंट और ट्रेनिंग वर्कशॉप

वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस आईआरएमए ने मालधारी रूरल एक्शन ग्रुप (MARAG) नाम के गैर सरकारी संगठन की मदद से कच्छ क्षेत्र में मालधारियों का एक सर्वेक्षण किया था। इस समुदाय के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने तथा स्मार्ट डेरी प्रैक्टिस के माध्यम से कौशल विकास एवं आय बढ़ाने के मकसद से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ने ‘रूरल हॉट बाय मालधारी’ का आयोजन किया। यह आयोजन 23 सितंबर 2022 को इंस्टीट्यूट आफ रूरल मैनेजमेंट आणंद (आईआरएमए) में किया गया था। इस आयोजन में मालधारी महिला संगठन और MARAG ने सहयोग किया।

गुजरात के कच्छ और पाटन जिलों के दूरदराज सीमाई गांवों की मालधारी महिलाओं ने नवरात्रि और दिवाली के आसपास अपनी खूबसूरत हस्तकला का प्रदर्शन किया। वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ने 24 फरवरी 2023 को एक वर्कशॉप का भी आयोजन किया जिसका विषय था जलवायु परिवर्तन और डेयरी के माध्यम से मालधारियों के लिए सस्टेनेबल आजीविका सुनिश्चित करना। इस आयोजन से मालधारी महिलाओं को वैकल्पिक आजीविका की ओर बढ़ने का प्रोत्साहन मिला। अंजार ब्लॉक की लक्ष्मी रबारी हस्तकला उनमें से एक है।

वर्कशॉप में ‘कैमल क्रेजी’ की लेखिका क्रिस्टीना एडम्स कैलिफोर्निया से ऑनलाइन जुड़ी थीं। उन्होंने ऑटिज्म से ग्रस्त अपने बेटे का अनुभव बताया कि कैसे मध्य पूर्व से बेडुइन कैमल दूध से उनके बेटे की सेहत में सुधार आया। इस आयोजन को बीकानेर स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल के डायरेक्टर डॉ. अर्तबंधु साहू ने भी संबोधित किया। उन्होंने ऊंट के दूध से एसिडिटी की गलत धारणा के बारे में बात की। अंजर तालुका की खारा पसवारिया ग्राम पंचायत की सरपंच धानी बेन ने कच्छ जिले में मालधारी समुदाय के संघर्षों की बात की।

निष्कर्ष

जैविक विविधता के संरक्षण और वन तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा में मालधारी जैसे देसी समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण के बारे में उनका पारंपरिक ज्ञान वैज्ञानिक आधार को समृद्ध बना सकता है। वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रिसर्च प्रोजेक्ट और उसके बाद आयोजित वर्कशॉप से यह एहसास हुआ कि पशुचारणता दुनिया की 5 संकटों का समाधान है- जलवायु, खाद्य, जॉब, उर्जा और शांति। 

गांवों में छोटे मवेशियों का दूध भी महत्वपूर्ण है। राज्य के कुल मवेशियों में 8.47% भेड़ें हैं। इनके विस्तार की प्रचुर संभावनाएं भी हैं। रिसर्च से यह भी पता चला है कि गाय के दूध में भेड़ का थोड़ा सा दूध मिलाया जाए तो उससे सर्वोत्तम क्वालिटी का पनीर बनता है। भारत डेयरी एक्सपोर्ट का पावर हाउस है, इसलिए यहां छोटे पशुधन के दूध से लस्सी, श्रीखंड, योगर्ट, मिल्क पाउडर और मिठाइयां आदि बनाने की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही एक सस्टेनेबल वैल्यू चेन का निर्माण किया जाना चाहिए।

(डॉ. जे.बी. प्रजापति वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, इरमा के चेयरपर्सन हैं, डॉ. स्मृति स्मिता महापात्र इसी सेंटर में रिसर्च फेलो हैं)

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