ग्वालियर में मधु क्रांति: कैसे मधुमक्खी पालन से मोरार ब्लॉक की महिलाएं सशक्त हो रही हैं

ग्वालियर के मोरार ब्लॉक के एकारा और उदयपुर गांवों में एक प्रभावशाली बदलाव हो रहा है, जहां महिलाओं के नेतृत्व वाली मधुमक्खी पालन पहल ग्रामीण आजीविका को नया रूप दे रही है। सीएसआईआर-एनबीआरआई और ग्वालियर जिला प्रशासन के सहयोग से विंध्यांचल किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड (VFPCL) द्वारा संचालित, यह मधुमक्खी गांव मॉडल स्थानीय महिलाओं को आय, सम्मान और गौरव प्रदान कर रहा है।

ग्वालियर में मधु क्रांति: कैसे मधुमक्खी पालन से मोरार ब्लॉक की महिलाएं सशक्त हो रही हैं

मध्य प्रदेश के ग्वालियर के मोरार ब्लॉक के एकारा और उदयपुर गांव जमीनी स्तर पर बदलाव का अनुभव कर रहे हैं। जो क्षेत्र कभी पारंपरिक कृषि और दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर था, वह अब एक नए और मधुर अवसर से गुलजार है - मधुमक्खी पालन। विंध्यांचल किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड (VFPCL), CSIR-NBRI लखनऊ और ग्वालियर जिला प्रशासन की पहल की बदौलत, ये गांव ग्रामीण नवाचार और महिला सशक्तीकरण के आदर्श के रूप में उभरे हैं।

इस "मधुमक्खी गांव" मॉडल के पीछे का विचार सरल किन्तु प्रभावशाली है: महिलाओं के लिए कम लागत, उच्च-लाभ वाली आजीविका का विकल्प बनाने के लिए मौजूदा ग्रामीण बुनियादी ढांचे और वैज्ञानिक विशेषज्ञता का लाभ उठाना। इसके लिए ग्वालियर की ज़िला कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान का दूरदर्शी सहयोग मिला है। इस परियोजना की शुरुआत के लिए एकारा और उदयपुर गांवों की पहचान उनके कृषि आधार और FPO कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी के कारण की गई।

इस पहल के तहत इन गावों की 25 से ज़्यादा महिलाओं को मधुमक्खी पालन, मधुमक्खी पालन बक्सों के प्रबंधन और शहद निकालने का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया। प्रत्येक प्रतिभागी को मधुमक्खी पालन के बक्से और किट निःशुल्क प्रदान किए गए, जिससे वे तुरंत उत्पादन शुरू कर सकीं। सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक तरीकों और मौसमी फसल-मधुमक्खी इंटीग्रेशन सुनिश्चित करने में मदद की। इससे न केवल शहद का उत्पादन बढ़ा, बल्कि आसपास के खेतों में फसल परागण से जैव विविधता भी बढ़ी।

एकारा गांव की निवासी रजनी बाई ने इस बदलाव पर कहा, "पहले हम मज़दूरी पर निर्भर थे। अब हमें शहद से आय होती है और हमें अपने काम पर गर्व है।" उनकी इस भावना से कई महिलाएं सहमत हैं, जो अब शहद की बिक्री से सालाना 40,000 रुपये से 60,000 रुपये तक कमाती हैं।

वीएफपीसीएल का मौजूदा बुनियादी ढांचा परियोजना की सफलता में महत्वपूर्ण साबित हुआ। एफपीओ के ग्रामीण केंद्र में प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए, जबकि इसकी संग्रहण और भंडारण इकाइयों ने शहद एकत्रीकरण को सुगम बनाया। गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए एक स्थानीय ट्रेसेबिलिटी प्रणाली भी विकसित की गई और महिलाओं को आगे की सहायता के लिए सरकारी योजनाओं से जोड़ा गया। कलेक्टर कार्यालय ने इन प्रयासों को जोड़ने, संस्थानों के बीच समन्वय को सुगम बनाने और ग्रामीण विकास के लिए एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में इस पहल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इन गांवों में अब तक 200 से अधिक मधुमक्खी बक्सों का वितरण किया गया है। इससे जैव विविधता में सुधार हुआ है और ग्रामीण महिलाओं को आय का एक विश्वसनीय, सम्मानजनक स्रोत मिला है। इस मॉडल का अब विस्तार किया जा रहा है। एक स्थानीय प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन इकाई स्थापित करने, शहद की एक ब्रांडेड और ट्रेस करने योग्य श्रृंखला शुरू करने और शहद क्लस्टर मॉडल के हिस्से के रूप में परियोजना को पांच और गांवों तक ले जाने की योजनाएं प्रगति पर हैं।

ग्वालियर की कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने इस पहल के गहन प्रभाव पर ज़ोर देते हुए कहा, "यह पहल सिर्फ आय के बारे में नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक नवाचार और स्थानीय नेतृत्व के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं की गरिमा और उनकी शक्ति को उजागर करने के बारे में भी है।"

मोरार ब्लॉक में यह "मीठी क्रांति" देश भर में ग्रामीण सशक्तीकरण के लिए एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करती है, जो सामुदायिक लचीलेपन पर आधारित है, विज्ञान द्वारा निर्देशित है और ग्रामीण महिलाओं की उद्यमशीलता की भावना से प्रेरित है।

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