उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया 12 हजार करोड़ पार, चीनी मिलों को रिकॉर्ड कमाई

तीन सीजन में उत्तर प्रदेश में गन्ना के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है वहीं किसानों की लागतें लगातार बढ़ी हैं। साल दर साल गन्ना का बकाया भुगतान में देरी होती जा रही है। इस समय चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 12 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। इसमें अगर ब्याज को जोड़ लें तो यह आंकड़ा करीब 15 हजार करोड़ रुपये हो जाता है। वहीं दूसरी ओर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक कई चीनी मिलों का मुनाफा लगभग दो गुना हो गया है।

उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया 12 हजार करोड़ पार, चीनी मिलों को रिकॉर्ड कमाई

देश में सबसे अधिक चीनी उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए हर नया सीजन मुश्किलें लेकर आता है। जिस तरह से बिजली की दरें बढ़ी, डीजल के दाम बढ़े और अब उर्वरकों के दाम बढ़े वह गन्ना किसानों के मुश्किल का सबब बन रहे हैं क्योंकि जहां तीन सीजन में गन्ना के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है वहीं किसानों की लागतें लगातार बढ़ी हैं। वहीं साल दर साल गन्ना का बकाया भुगतान में देरी होती जा रही है। इस समय चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 12 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। इसमें अगर ब्याज को जोड़ लें तो यह आंकड़ा करीब 15 हजार करोड़ रुपये हो जाता है। वहीं दूसरी ओर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक कई चीनी मिलों का मुनाफा लगभग दो गुना हो गया है। इसके साथ ही स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध चीनी मिलों के शेयरों के दाम में पिछले कुछ माह के दौरान ही 75 फीसदी तक का उछाल आया है। यानी जहां चीनी मिल मिलों का मुनाफा बढ़ता जा रहा है वहीं शेयरों के दाम बढ़ने से भी उनके मालिक  मालामाल हो रहे हैं।

अगर मौजूदा और पिछली दो सरकारों की बात करें तो गन्ना के एसएपी में सबसे कम बढ़ोतरी योगी सरकार के समय में हुई है। साल 2007 में मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी की सरकार आई तो राज्य में गन्ने का एसएपी 125 रुपये प्रति क्विटंल था  लेकिन उनके कार्यकाल में यह 240 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया यानी कुल 115 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी उनके कार्यकाल में हुई। मायावती सरकार के कार्यकाल में गन्ने के एसएपी में जब बढ़ोतरी हुई तो वह 12 फीसदी से 24 फीसदी तक रही। साल 2012 में सत्ता में आई मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने गन्ने के एसएपी में कुल 65 रुपये की बढ़ोतरी दो बार में कर इसे 305 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंचाया लेकिन तीन साल एसएपी को स्थिर रखा। उनकी सरकार के कार्यकाल में दो बार की गन्ने के एसएपी की बढ़ोतरी 9 फीसदी और 17 फीसदी रही। लेकिन इन दोनों सरकारों के उलट भाजपा की मौजूदा सरकार ने 2017-18 के सीजन की अकेली 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की जो तीन फीसदी बैठती है। वहीं इसके बाद के तीन सीजन 2018-19, 2019-20 और चालू सीजन 2020-21 में  एसएपी में कोई बढ़ोतरी नहीं की और उसे स्थिर रखा है। चालू पेराई सीजन का एसएपी घोषित करने के देरी का रिकॉर्ड भी मौजूदा सरकार ने ही बनाया और इसका फैसला 14 फरवरी, 2021 को लिया गया। जबकि गन्ना का पेराई सीजन अक्तूबर से सितंबर होता है। 

इस सबके बीच दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार रिकॉर्ड भुगतान का दावा करती है और इसके लिए पिछले चार सीजन के आंकड़े जोड़कर बताती है, जबकि ताजा आंकड़ों में चालू पेराई सीजन (2020-21) का कितना बकाया है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा वह देने को तैयार नहीं है । उसी तरह की चुप्पी राज्य के निजी चीनी उद्योग के संगठन यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन ने भी साध रखी है।

हर चीनी मिल को गन्ने की आपूर्ति, उसकी पेराई और चीनी उत्पादन के साथ रिकवरी का स्तर जैसे तमाम आंकड़े सरकार के पास अपडेट होते रहते हैं। ऐसे में बकाया गन्ना भुगतान का आंकड़ा जारी नहीं करने की कोई वजह नहीं है। लेकिन इसके राजनीतिक मुद्दा बनने और उससे नुकसान की आशंका में आंकड़े जारी नहीं किये जा रहे हैं।

असल में दिलचस्प बात यह है कि 10 मई तक के गन्ना पेराई के आंकड़े 10.1 करोड़ टन के हैं। अगर 320 रुपये प्रति क्विंटल के औसत से भी देखें तो गन्ना मूल्य भुगतान करीब 32 150 करोड़ रुपये बैठता है। वहीं चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग की वेबसाइट पर 13 मई, 2021 तक का जो आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक 19658.39 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। लेकिन 10 मई से 13 मई के बीच गन्ना का पेराई का आंकड़ा भी बढ़ा होगा। हालांकि 10 मई तक के पेराई के आंकड़ों के आधार पर भी बकाया करीब 12500 करोड़ रुपये बैठता है। वैसे चीनी मिलों पर बाकया  आकलन गन्ना आपूर्ति के 14 दिन बाद होता है क्योंकि वैधानिक रूप से उन्हें इस अवधि में भुगतान करना होता है। इसके बाद की अवधि पर ब्याज देने का प्रावधान है। राज्य की अधिकांश चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं इसलिए 14 दिन के बाद के बकाया आंकड़ा उपर की गई गणना के आसपास ही होगा। इसके साथ ही इसमें अगर चीनी मिलों पर बकाया ब्याज को भी जोड़ देंगे तो बकाया का स्तर  आंकड़ा करीब 15 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। विभाग की 13 मई, 2021 की सूचना के मुताबिक 2017-18, 2018-19, 2019-20 और चालू पेराई सीजन 2020-21 की मौजूदा अवधि तक राज्य के गन्ना किसानों को 1,34,898.85 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।

गन्ना मूल्लय बकाया और इससे जुड़े मुद्दों पर रुरल वॉयस  के साथ एक बातचीत में उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा ने बताया कि मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार के समय का 13 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान कराया था। वहीं हमारे कार्यकाल में किसी भी पिछले सीजन का बकाया नहीं है। हमने अपने चार साल के कार्यकाल में गन्ना किसानों को 1.34 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान कराया है जो अभी तक का सबसे अधिक है। जहां तक चालू सीजन की बात है तो कोरोना महामारी के बावजूद अभी तक चालू पेराई सीजन का 62 फीसदी भुगतान किसानों को किया जा चुका है और हमारी कोशिश है कि बहुत जल्दी अधिकांश भुगतान करा दिया जाए। कोरोना के चलते चीनी मिलों से चीनी का उठाव बहुत कम हो गया है।

अपने गृह जिले शामली और विधान सभा क्षेत्र में चीनी मिलों पर रिकार्ड बकाया के बारे में पूछे गये सवाल पर सुरेश राणा ने कहा कि राज्य की अधिकांश चीनी मिलों ने 80 फीसदी या उससे ज्यादा भुगतान कर दिया है। लेकिन करीब आधा दर्जन चीनी मिल समूह ऐसे हैं जिनका भुगतान कम है। शामली जिले की तीनों चीनी मिलें इसमें शामिल हैं। मेरी विधान सभा थानाभवन में बजाज हिंदुस्थान समूह की चीनी मिल में सबसे अधिक गन्ना जाता है और बकाया वाली मिलों में यह समूह शामिल है। हम ऐसी चीनी मिलों पर सख्ती कर रहे हैं ताकि किसानों को भुगतान में तेजी लाई जा सके।

गन्ना भुगतान में देरी पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने रुरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि सरकार को चीनी मिलों पर शुगरकेन एक्ट के तहत कार्रवाई करनी चाहिए। जब किसानों को पैसे की सबसे अधिक जरूरत है और गांव कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं ऐसे समय में चीनी मिल मालिक किसान का पैसा ले कर बैठ गये हैं। ऐसे में सरकार को किसानों के हित को देखते हुए चीनी मिलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और किसी भी कीमत पर गन्ना किसानों का भुगतान कराना चाहिए। अगर में इसमें ढील होती तो यूनियन किसान के हक के लिए सरकार पर हर तरह से दबाव बनाने के लिए कदम उठाएगी।   

इस मुद्दे पर रुरल वॉयस  से बात करते हुए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी एम सिंह कहते हैं कि पहले तो यह बात समझ से बाहर है कि सरकार ताजा बकाया आंकड़े बताने की बजाय चार सीजन के भुगतान को जोड़कर बताती है। इसका कोई मतलब नहीं है। किसान इस आपदा के दौर में अपने गन्ना भुगतान का इंतजार कर रहा है और सरकार आंकड़ों को भी सार्वजनिक नहीं कर रही है। दूसरे इस महामारी में किसानों को एडवांस मिलना चाहिए लेकिन एडवांस की बात तो वह सोच ही नहीं सकता कम से कम उसे उसके गन्ना का बकाया भुगतान को तो समय पर करना चाहिए। महामारी के संकट में उसे पैसे की जरूरत है। वी एम सिंह कहते हैं कि सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि अभी तक केवल 60 फीसदी ही भुगतान हुआ है और 40 फीसदी बकाया है जबकि सीजन समाप्त हो रहा है। वहीं चीनी मिलों का फायदा घरेलू बाजार और निर्यात दोनों से बढ़ता जा रहा है।

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