2030 तक एपीडा उत्पादों का निर्यात 55 अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्यः अभिषेक देव

भारत ने 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। अभी निर्यात इसका लगभग आधा है। अगले पांच वर्षों में कृषि निर्यात दोगुना करने के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने क्या रणनीति बनाई है? एपीडा चेयरमैन अभिषेक देव ने रूरल वर्ल्ड के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह और एक्जिक्यूटिव एडिटर अजीत सिंह के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि निर्यात में तेज वृद्धि के लिए उन बाजारों और उत्पादों पर फोकस किया जा रहा है जो अधिक मूल्य दिला सकते हैं। बातचीत के मुख्य अंश-
सवाल: भारत ने कृषि निर्यात में 100 अरब डॉलर का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एपीडा क्या रणनीति अपना रहा है?
अभिषेक देव: कृषि निर्यात में 100 अरब डॉलर के व्यापक लक्ष्य के मद्देनजर और कृषि निर्यात बास्केट में एपीडा की हिस्सेदारी को ध्यान में रखते हुए, हमने 2030 तक अपने अनुसूचित उत्पादों का 55 अरब डॉलर से अधिक निर्यात का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एपीडा कई रणनीतिक पहलुओं पर कार्य कर रहा है। प्रमुख और अधिक संभावना वाले उत्पादों पर केंद्रित निर्यात संवर्धन पर जोर दिया जा रहा है। यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, ओशेनिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे बड़े लेकिन कम निर्यात वाले बाजारों में विविधीकरण और गहरी पैठ बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
इस लक्ष्य की दिशा में एपीडा ने इक्रियर को नॉलेज पार्टनर के रूप में जोड़ा है, जो 20 प्रमुख और अधिक संभावना वाले उत्पादों की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला का विश्लेषण कर रहा है। क्षेत्र एवं देश के हिसाब से निर्यात योजनाएं तैयार की जा रही हैं। एपीडा उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग को बेहतर बनाने पर भी कार्य कर रहा है ताकि उनकी मांग और निर्यात मूल्य में वृद्धि हो सके। जल्दी नष्ट होने वाले उत्पादों के किफायती और सस्टेनेबल समुद्री परिवहन के लिए प्रोटोकॉल विकसित किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, एपीडा में एक मार्केट इंटेलिजेंस सेल की स्थापना की गई है, जिसमें क्रिसिल को नॉलेज पार्टनर के रूप में जोड़ा गया है। यह सेल कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाले वैश्विक और घरेलू घटनाक्रमों पर नियमित जानकारी और विश्लेषण प्रदान करता है, जिससे सभी हितधारकों को लाभ हो सके।
सवाल: आने वाले समय में किस सेक्टर या प्रोडक्ट में संभावना है जहां निर्यात अधिक बढ़ेगा?
अभिषेक देव: एपीडा ने विभिन्न क्षेत्रों में अधिक संभावना वाले उत्पाद श्रेणियों की पहचान की है, जो कृषि निर्यात के अगले चरण को गति दे सकते हैं। हमारे प्रमुख फोकस क्षेत्रों में चावल (बासमती और गैर-बासमती), केला, आम, अनार, अंगूर, अनानास जैसे ताजे फल शामिल हैं। इनकी वैश्विक बाजारों में उल्लेखनीय मांग रही है। सब्जियों में आलू, हरी मिर्च, अदरक और भिंडी को प्रमुख उत्पादों के रूप में चिन्हित किया गया है। एपीडा प्रसंस्कृत और मूल्यवर्धित खाद्य पदार्थों की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग को भी देख रहा है। इनमें मूंगफली, मखाना, सॉस, जूस, पापड़, पास्ता, बिस्किट, मादक पेय और मिठाइयां जैसे उत्पाद अधिक संभावनाओं वाले माने जा रहे हैं। प्राकृतिक शहद, दुग्ध उत्पाद (घी, पनीर) और अंडे जैसे उत्पादों से भी और उम्मीदें हैं। इन फोकस उत्पादों का कुल निर्यात वर्ष 2030 तक 40 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।
सवाल: आप 100 अरब डॉलर निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने में कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ देखते हैं?
अभिषेक देव: कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं - कोल्डचेन नेटवर्क में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, खेत स्तर पर प्रसंस्करण की कमी, आपूर्ति श्रृंखला की कमी। इन वजहों से उपज नष्ट होते हैं और निर्यात गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। रेड सी संकट और मध्य पूर्व संघर्ष के कारण हवाई और समुद्री मार्गों से परिवहन लागत में वृद्धि हुई है। उत्तर-पूर्वी राज्यों से बंदरगाहों तक परिवहन लागत भी अधिक आती है। एक और चुनौती किसानों में अच्छी कृषि पद्धतियों के बारे में जानकारी का अभाव है, जिससे उत्पादों में कीटनाशकों के अवशेष पाए जाते हैं और गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
सवाल: भारत का 2024-25 में कृषि निर्यात प्रदर्शन कैसा रहा? प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं?
अभिषेक देव: वर्ष 2024–25 में भारत का कृषि निर्यात प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है। एपीडा के अनुसूचित उत्पादों का निर्यात अब तक के सर्वोच्च स्तर, 27.90 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसमें प्रमुख योगदान गैर-बासमती चावल (6.5 अरब डॉलर), बासमती चावल (5.9 अरब डॉलर), बफेलो मीट (4 अरब डॉलर), ताजे फल और सब्जियां (2.06 अरब डॉलर) जैसे उत्पादों का रहा। इसके अलावा अनाज-आधारित प्रसंस्कृत उत्पाद, दालें, दुग्ध उत्पाद, प्रसंस्कृत सब्जियां, फलों के प्रसंस्कृत रस, कोको उत्पाद आदि के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। यह प्रदर्शन भारत के प्रसंस्कृत और अधिक मूल्य वाले कृषि उत्पादों की वैश्विक मांग में वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा जैविक उत्पादों का निर्यात इस वर्ष 35% बढ़ा है। इसमें अनाज, चाय, प्रसंस्कृत उत्पाद, एसेंशियल ऑयल, आयुर्वेदिक और औषधीय उत्पाद जैसी सभी प्रमुख श्रेणियों में अच्छी वृद्धि देखी गई।
सवाल: एपीडा पारंपरिक जगहों से अलग कृषि निर्यात बाजारों में कैसे विविधता ला रहा है?
अभिषेक देव: भारत का कृषि निर्यात पारंपरिक रूप से मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक सीमित रहा है। लेकिन यूरोप, इंग्लैंड, जापान, कोरिया, चीन जैसे बाजारों में अब भी अपार संभावनाएं मौजूद हैं। एपीडा भारतीय दूतावासों के माध्यम से इन बाजारों से प्रतिक्रिया प्राप्त करके और निर्यातकों के साथ रणनीति पर चर्चा कर इन बाजारों में प्रवेश की योजना बना रहा है। भारत के कृषि उत्पादों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के मकसद से एपीडा प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों में भाग ले रहा है। जैसे गल्फूड (दुबई), बायोफैक (जर्मनी), सियाल (पेरिस), एनूगा (जर्मनी), नैचरल प्रोडक्ट एक्सपो वेस्ट (अमेरिका), वर्ल्ड फूड इंडिया, इंडस फूड और आहार। इसके अतिरिक्त, एपीडा व्यापार प्रतिनिधिमंडलों के आवागमन को प्रोत्साहित करता है और प्रमुख राज्यों और पूर्वोत्तर में नियमित रूप से बायर-सेलर मीट का आयोजन करता है, ताकि भारतीय निर्यातकों को वैश्विक आयातकों से जोड़ा जा सके।
सवाल: कुछ बाजारों में उत्पादों की गुणवत्ता प्रमुख मुद्दा है। अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों, सर्टिफिकेशन और ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए एपीडा किसानों और निर्यातकों को किस प्रकार सहायता कर रहा है?
अभिषेक देव: एपीडा खेत स्तर पर गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज (जीएपी) को अपनाने और उनके सर्टिफिकेशन को प्रोत्साहित कर रहा है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उत्पाद आयातक देशों की सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी आवश्यकताओं के अनुरूप हो। एपीडा किसानों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को ग्लोबल जीएपी सर्टिफिकेट प्राप्त करने में भी सहयोग करता है, जिससे इन उत्पादों की यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों के बाजारों में मार्केटिंग क्षमता बढ़ती है।
खाद्य प्रसंस्करण करने वालों और निर्यातकों को वैश्विक बाजार में बेहतर स्वीकृति दिलाने के मकसद से एपीडा खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली सर्टिफिकेशन में भी उनकी मदद कर रहा है। एपीडा ने अंगूर, मूंगफली, ऑर्गेनिक उत्पादों के लिए ट्रेसेबिलिटी सिस्टम को विकसित और लागू किया है, जिसे आयातक देशों ने सराहा भी है। निर्यात वाले उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एपीडा ने देश में 117 प्रयोगशालाओं को मान्यता दी है। उन्हें एनएबीएल की तरफ से आईएसओ-17025 मान्यता प्राप्त है। ये प्रयोगशालाएं चावल जैसे एपीडा द्वारा अनुसूचित उत्पादों के लिए परीक्षण और विश्लेषण सेवाएं देती हैं।
सवाल: क्या वैश्विक बाजारों में जैविक और जीआई टैग वाले उत्पादों को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है?
अभिषेक देव: एपीडा वैश्विक स्तर पर भारत के कृषि निर्यात को विस्तार देने की रणनीति के तहत जैविक और जीआई-टैग वाले उत्पादों को बढ़ावा देने पर विशेष जोर देता है। जैविक उत्पादों के निर्यात इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिए राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) को हितधारकों से मिले सुझावों के आधार पर संशोधित किया गया है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और न्यूजीलैंड के साथ इस सिलसिले में समझौते पर कार्य जारी है। जैविक निर्यात प्रमोशन के लिए एक समर्पित पोर्टल लांच किया गया है। जर्मनी के बायोफैक, अमेरिका के नेचुरल प्रोडक्ट एक्सपो वेस्ट और दुबई के ऑर्गेनिक एंड नेचुरल प्रोडक्ट एक्सपो जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों में भागीदारी बढ़ाई गई है। एपीडा ने ‘ब्रांड इंडिया’ अभियान के अंतर्गत भारतीय जैविक उत्पादों की वैश्विक पहचान को सशक्त करने के लिए इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आईबीईएफ) के साथ सहयोग भी किया है।
अब तक कुल 242 जीआई उत्पाद पंजीकृत हो चुके हैं, जो भारत की विविध कृषि और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। प्रमुख जीआई निर्यात उत्पादों में बासमती चावल, जीआई किस्मों के आम, केले, अनानास, प्याज, सांगली अंगूर/किशमिश, पूर्वोत्तर के उत्पादों में असम का जोहा चावल, काला चावल (चक-हाओ), नगा मिर्च, मिथिला का मखाना एवं इनसे बने प्रसंस्कृत उत्पाद शामिल हैं। इनका निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन, यूएई, ईरान, इराक, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सऊदी अरब, उज्बेकिस्तान आदि प्रमुख आयातक देशों को किया गया है।
सवाल: वैश्विक व्यापार में तनाव की स्थिति और अमेरिकी टैरिफ के संदर्भ में भारतीय कृषि निर्यात के लिए क्या चुनौतियां और अवसर हैं?
अभिषेक देव: वैश्विक व्यापारिक तनाव और उभरते हालातों के बावजूद अपनी विशिष्ट और अलग स्वाद प्रोफाइल के कारण भारतीय कृषि निर्यात मजबूत बना रहेगा।
सवाल: निर्यात में तेजी लाने के लिए नीति, इन्फ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय प्रोत्साहन के मोर्चे पर सरकार की तरफ से किन कदमों की आवश्यकता है?
अभिषेक देव: भारतीय कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई प्रमुख क्षेत्रों में कार्य किया जा रहा है।
प्रमुख उत्पादों पर जैसे केले, बासमती चावल, गैर-बासमती चावल, बफेलो मीट, काजू, जैविक उत्पाद जैसे 20 से अधिक उत्पादों की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला पर केंद्रित एक्सपोर्ट प्रमोशन।
ब्रांडिंग को बढ़ावा: प्रमुख बाजारों में ब्रांडिंग और प्रचार। बासमती चावल, गैर-बासमती चावल, ताजे फल, जैविक उत्पाद के लिए प्रचार की शुरुआत।
लॉजिस्टिक्स की बाधाएं दूर करना: जल्दी नष्ट होने वाले उत्पादों के लिए समुद्री परिवहन प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन और उन्हें मुख्यधारा में लाना।
उत्पाद गुणवत्ता में सुधार: वैश्विक जीएपी सर्टिफिकेशन, उत्पादों की ट्रेसेबिलिटी
कोल्डचेन नेटवर्क और आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती: विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों के साथ समन्वय।
सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी अवरोधों को दूर करना और उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना
सवाल: बेहतर बाजार पहुंच के लिए एपीडा भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के साथ अपने प्रयासों को कैसे जोड़ कर रहा है?
एपीडा यह काम सक्रिय रूप से कर रहा है ताकि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के लिए बाजार पहुंच को बढ़ाया जा सके। ट्रेड वार्ताकारों के साथ मिलकर उन उत्पादों और टैरिफ लाइन की पहचान की जा रही जिनमें एफटीए से अधिक लाभ हो सकता है।
सवाल: एपीडा निर्यात वृद्धि को सस्टेनेबिलिटी से संबंधित चिंताओं जैसे कीटनाशकों का उपयोग, कार्बन उत्सर्जन और जैव विविधता के साथ कैसे संतुलित करता है?
अभिषेक देव: निर्यात वृद्धि को सस्टेनेबिलिटी के साथ संतुलित करने के लिए एपीडा कृषि निर्यात मूल्य श्रृंखला में पर्यावरण हितैषी प्रथाओं को बढ़ावा दे रहा है। कीटनाशक अवशेषों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए खेत स्तर पर जीएपी को अपनाने और प्रमाणित करने को प्रोत्साहित किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद आयातक देशों की सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी आवश्यकताओं का पालन करें।
सवाल: एपीडा एग्री-स्टार्टअप्स, एफपीओ/एफपीसी और सहकारी संस्थाओं को निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में किस प्रकार मदद कर रहा है?
अभिषेक देव: इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैंः
क्लस्टर-आधारित निर्यात संवर्धन: एपीडा ने अधिक संभावना वाले कृषि खाद्य क्लस्टरों की पहचान की है। यह उत्पादकता, गुणवत्ता और बाजार बहुंच बढ़ाने के लिए लक्षित हस्तक्षेप करता है।
टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशनः ट्रेसेबिलिटी, इनोवेटिव पैकेजिंग और कोल्डचेन लॉजिस्टिक्स जैसी उन्नत तकनीक को अपनाने में सहयोग।
विभागों के साथ सहयोग: नाबार्ड, एसएफएसी और नाफेड के साथ एमओयू के माध्यम से एफपीओ/सहकारी संस्थाओं के लिए कौशल विकास और बाजार पहुंच को मजबूत करना।
क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: 2024–25 में 879 कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें 78,264 हितधारकों को निर्यात प्रक्रिया, सर्टिफिकेशन और श्रेष्ठ प्रथाओं के लिए प्रशिक्षित किया गया।
स्टार्टअप और निर्यात समर्थनः 500 स्टार्टअप का मूल्यांकन किया जाएगा, इनमें से बेहतरीन 25 स्टार्टअप को निर्यात और निवेश के लिए तैयार करने के मकसद से सहायता दी जाएगी।
वित्तीय सहायता योजना: इसमें तीन तरह से मदद- निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर (पैकहाउस, कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयां), क्वालिटी डेवलपमेंट (सर्टिफिकेशन, फूड सेफ्टी, ट्रेसेबिलिटी) और मार्केट डेवलपमेंट (व्यापार मेले, बायर-सेलर मीट, प्रमोशन)।
इन पहलों का उद्देश्य किसान समूहों और स्टार्टअप को निर्यात में सफलता हासिल के लिए सशक्त बनाना है।